भोपाल, डेस्क रिपोर्ट। मध्य प्रदेश का सामान्य प्रशासन विभाग कमलनाथ सरकार के समय किए गए क्रियाकलापों को लेकर कठघरे में है। सूत्रों की मानें तो मध्य प्रदेश के लोकायुक्त के प्रतिवेदन में सामान्य प्रशासन विभाग के कामकाज को लेकर नकारात्मक टिप्पणियां की गई है।
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तीन दिन पहले पृथ्वीपुर की चुनावी सभा में कमलनाथ ने मध्य प्रदेश के वर्तमान लोकायुक्त को नकली कहते हुए कांग्रेस सरकार आने पर असली लोकायुक्त बनाने की बात कही थी। इस पर प्रदेश के गृह एवं जेल मंत्री डॉ नरोत्तम मिश्रा ने कहा था कि कमलनाथ सरकार को लेकर लोकायुक्त ने राज्यपाल को सौंपे प्रतिवेदन में काफी नकारात्मक टिप्पणी की है इसलिए कमलनाथ बौखला गए हैं।
सूत्रों की मानें तो लोकायुक्त ने वर्ष 2019-20 के अपने प्रतिवेदन में लोकायुक्त में दो पुलिस अधिकारियों को पदस्थ किए जाने को लेकर आपत्ति जताई है और लिखा है कि इनकी पदस्थापना में लोकायुक्त से परामर्श नहीं लिया गया और अपने आदमी पदस्थ कराने की कोशिश की गई। प्रकरण क्रमांक 282/19 का हवाला देते हुए लिखा गया है कि सामान्य प्रशासन विभाग ने FIR निरस्त करने कर दी जबकि सामान्य प्रशासन विभाग एक नोडल एजेंसी है उसके बावजूद इसने ऐसा कैसे कर दिया। सामान्य प्रशासन के दुरुपयोग के बाद एक और मामला 27734/19 था जिसमें सामान्य प्रशासन विभाग ने यह लिख दिया कि इस अधिकारी के खिलाफ मामला बनता ही नहीं है और उसे अतिरिक्त मुख्य सचिव ने क्लीन चिट दे दी। लेकिन 6 अगस्त 2020 को हाईकोर्ट के जस्टिस ने कहा कि FIR निरस्त करना सामान्य प्रशासन विभाग के अधिकार क्षेत्र में नहीं था। सामान्य प्रशासन विभाग ने अपना निष्कर्ष अनुसंधान एजेंसी पर थोपने की कोशिश की और याचिकाकर्ता को बचाने में सहयोग किया। प्रतिवेदन में यह भी लिखा गया है कि जबलपुर, इंदौर और ग्वालियर जिलों में लोकायुक्त द्वारा चयनित दो-दो विशेष अभियोजक सीएम समन्वय से बनते हैं। लेकिन सामान्य प्रशासन विभाग ने इनकी पुन नियुक्ति के आदेश यह कहकर लौटा दिए कि शासन के अभिभाषकों से काम क्यों नहीं चलाया जा रहा। रिपोर्ट में इस बात का भी हवाला है कि कई बार कई अभियोजन स्वीकृतियां अस्वीकार कर दी गई और इसके लिए विधिक राय तक नहीं ली गई। अब्दुल्लागंज और भिंड में तो ऐसे मामलों में अध्यक्ष की समिति ने ही अभियोजन स्वीकृति अस्वीकार कर दी।