हे मोहन यादव जी..मुझे और मेरे अजन्मे शिशु को न्याय चाहिए

Gandhi Medical College

इंसाफ का इंतज़ार : “मैं डॉक्टर बाला सरस्वती….आज से लगभग 6 महीने पहले अपने भौतिक शरीर को त्याग पंचतत्व में विलीन हो चुकी बाला। आपमें से अधिकांश के ह्रदय से भी मैं विस्मृत हो चुकी हूं। मेरे चंद परिजनों और दोस्तों को छोड़, जिनके लिए मैं एक ऐसी फांस बन चुकी हूं जो गाहे बगाहे उनके दिल में चुभती रहती है और आज फिर आपकी सरकार के एक आदेश ने मानों उन जख्मों पर नमक छिड़क दिया हो। वह आदेश हैै मेरी मौत के मामले में सबसे ज्यादा आरोपों में घिरी डॉक्टर अरुणा कुमार की पुन: गांधी मेडिकल कॉलेज, भोपाल में वापसी का। हालांकि मेरे जूनियर साथियों ने इसका विरोध किया और भारी विरोध को देखते हुए चंद घंटे में यह आदेश वापस भी हो गया। लेकिन इसने एक बार फिर यह साबित कर दिया कि मध्य प्रदेश में निज़ैम भले ही बदल गया हो, स्वास्थ्य महकमें में अभी भी डॉ अरुणा कुमार जैसे लोगों का बोलबाला है।

अगर नहीं..तो फिर क्या वजह कि मेरी मौत के जिम्मेदार लोगों पर कार्रवाई जस की तस एक जगह अटकी पड़ी है। मैंने खुदकुशी से पहले अपनी कॉलेज की मित्र को व्हाट्सएप पर जो संदेश भेजा था और उसमें पांच डॉक्टरों को अपनी मौत का जिम्मेदार बताया था। उसके बाद भी आखिर ऐसा क्या दबाव कि वे लोग आज भी खुले में जिंदगी जी रहे हैं। आखिर क्या आपने कभी सोचा कि मुझे यह कदम उठाने पर क्यों मजबूर होना पड़ा। आंध्र प्रदेश से हजारों किलोमीटर दूर जब इस प्रदेश में मैं आई और झीलों की इस नगरी में डॉक्टरी जैसे पवित्र पेशे की स्नात्कोत्तर पढ़ाई की तो फिर आखिर क्या वजह बनी कि मुझे खुद को एनेस्थीसिया का इंजेक्शन लगाकर जिंदगी खत्म करनी पड़ी।

मेरे द्वारा दोस्त को भेजा गया मेरा संदेश ही इस आत्मघाती कदम की कहानी कहता है जिसमें मैंने लिखा था कि “गांधी मेडिकल कॉलेज में पढ़ाई का विकल्प मेरे जीवन की सबसे बड़ी गलती थी। इस कॉलेज को चुनने के बाद मुझे सबसे ज्यादा पछतावा है। इन लोगों में बहुत जहर है। मैं यह जहर अब नहीं खा सकती। मैं बहुत शर्मिंदा हूं।” आखिर सोचिए, कैसे कोई अपने हंसते खेलते परिवार और इतने प्यारे पति जय को छोड़ सकता था और अपनी जिंदगी खत्म करने के साथ-साथ एक अजन्मे शिशु को भी इस दुनिया में आए बिना खत्म करने का फैसला ले सकता था। लेकिन मैंने लिया। वजह..पानी सिर से ऊपर हो चुका था। उसके बाद जब मेरे परिजन सहायक पुलिस आयुक्त को बाकायदा लिखित में शिकायत दे चुके और यह बता चुके की HOD समेत पांच डॉक्टर मुझे प्रताड़ित करने के लिए जिम्मेदार हैं तो फिर कार्रवाई क्यों नहीं। क्या फिर इस बात का इंतजार कि कोई बाला सरस्वती ऐसा आत्मघाती कदम उठाये और एक बार फिर गांधी मेडिकल कॉलेज के चेहरे पर  कालिख पुत जाए। उम्मीद है कि आपने अब शासन की बागडोर संभाली है और आपके इस प्रदेश के मुखिया रहते हुए किसी लड़की, किसी बेटी, किसी बहू, किसी पत्नी को मेरे जैसा आत्मघाती कदम उठाने के लिए मजबूर नहीं होगी। बशर्ते दोषियों पर समय रहते कड़ी कार्रवाई हो जाए।”


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श्रुति कुशवाहा

श्रुति कुशवाहा

2001 में माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय भोपाल से पत्रकारिता में स्नातकोत्तर (M.J, Masters of Journalism)। 2001 से 2013 तक ईटीवी हैदराबाद, सहारा न्यूज दिल्ली-भोपाल, लाइव इंडिया मुंबई में कार्य अनुभव। साहित्य पठन-पाठन में विशेष रूचि।

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