नई दिल्ली, डेस्क रिपोर्ट। मध्यप्रदेश (MP) में एक अजीबोगरीब मामला सामने आया है। जहां पति द्वारा अपने पत्नी पर धोखाधड़ी के आरोप लगाया गया। दरअसल पति का कहना है कि उसकी पत्नी एक महिला नहीं बल्कि पुरुष है। इस मामले में मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय (MP High court) से याचिका निरस्त होने के बाद यह मामला सुप्रीम कोर्ट (supreme court) पहुंच गया है। सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल करते हुए पुरुष ने यह दावा किया है कि उसकी शादी जिससे महिला बताकर हुई थी। वह एक पुरुष है क्योंकि पत्नी के प्राइवेट पार्ट पुरुषों की तरह है और पति ने इसे धोखाधड़ी माना है।
इस व्यक्ति द्वारा दायर याचिका में कहा गया है कि उसकी पत्नी और ससुर ने उससे इस तथ्य को छिपाया है और ससुर सहित पत्नी पर आरोप लगाते हुए सख्श ने उसकी पत्नी के प्राइवेट पार्ट की जगह उसने जननांग पुरुष संरचना होने का दावा किया है। इधर सुप्रीम कोर्ट ने पति द्वारा दायर याचिका में नोटिस जारी किया है। जिसमें कथित रूप से सच छिपाने के लिए अपनी पत्नी के खिलाफ धोखाधड़ी का मामला दर्ज करने की मांग की गई थी। पति ने तर्क दिया कि उसकी पत्नी एक लिंग और एक अभेद्य हाइमन की उपस्थिति के कारण महिला नहीं है और इस तथ्य को छुपाना भारतीय दंड संहिता की धारा 420 के तहत धोखाधड़ी का अपराध है।
याचिकाकर्ता-पति के अनुसार, उनकी पत्नी को “कॉन्जेनिटल एड्रेनल हाइपरप्लासिया” का पता चला था। हालाँकि, सच उससे छुपाया गया था, जो उसकी पत्नी और उसके पिता द्वारा धोखा देने के बराबर है। जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस एमएम सुंदरेश की बेंच ने इस मामले में नोटिस जारी किया है। इससे पहले ये मामला मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय पहुंचा था। धोखाधड़ी के अपराध में संज्ञान लेने वाले ट्रायल कोर्ट के आदेश को निरस्त करने वाले मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ विशेष अनुमति याचिका दायर की गई है।
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दरअसल पत्नी और उसके पिता के खिलाफ धोखाधड़ी के अपराध के लिए संज्ञान लेने वाले ट्रायल कोर्ट के आदेश को रद्द करने वाले मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ विशेष अनुमति याचिका दायर की गई। बेंच ने पति की इस दलील पर गौर किया कि प्रतिवादी का मेडिकल इतिहास “लिंग + इम्परफोरेट हाइमन” है , इसलिए उसकी पत्नी महिला नहीं है। बेंच ने आदेश में कहा कि याचिकाकर्ता के वकील ने अन्य बातों के साथ-साथ पेज 39 पर हमारा ध्यान आकर्षित किया है कि प्रतिवादी का चिकित्सा इतिहास “लिंग + इम्परफोरेट हाइमन” दिखाता है, जिसमे प्रतिवादी एक महिला नहीं है।
इधर मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय ने पति की शिकायत को यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि केवल मौखिक साक्ष्य के आधार पर और बिना किसी चिकित्सीय साक्ष्य के भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 420 के तहत कोई अपराध नहीं बनता है। हाईकोर्ट ने कहा था कि पत्नी के खिलाफ मेडिकल रिपोर्ट में कुछ भी प्रतिकूल नहीं है।
याचिकाकर्ता के अनुसार पत्नी ने वैवाहिक घर छोड़ दिया है। याचिकाकर्ता ने यह भी आरोप लगाया है कि उसके ससुर अन्य लोगों के साथ जबरन उसके घर में घुस गए और उसे अभद्र भाषा में गाली दी और पत्नी को ससुराल में रखने से इनकार करने पर जान से मारने की धमकी दी। इसके बाद याचिकाकर्ता ने हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 12(1)(ए) के तहत एक आवेदन दायर कर अपनी पत्नी के विवाह को पूरा करने में असमर्थता के कारण विवाह को अमान्य घोषित करने के लिए आवेदन किया।
याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया है कि जनवरी 2017 में पत्नी ने प्रतिशोध के रूप में उसके खिलाफ धारा 498 ए आईपीसी के तहत क्रूरता के लिए प्राथमिकी दर्ज की। इसके बाद उसने अपनी पत्नी और उसके पिता के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई। युवक ने न्यायिक मजिस्ट्रेट, प्रथम श्रेणी, ग्वालियर (MP) के समक्ष यह दावा करते हुए याचिका दर्ज की कि उनकी पत्नी और उनके पिता ने धोखाधड़ी की।