लक्ष्मीबाई की समाधि पर पहुंची इमरती, कांग्रेस ने कसा तंज

ग्वालियर, अतुल सक्सेना। वीरांगना रानी लक्ष्मी बाई के बलिदान दिवस पर आयोजित कार्यक्रम में ग्वालियर में फूल बाग में उनकी समाधि पर पहुंची प्रदेश की पूर्व मंत्री इमरती देवी ने राजनीतिक हलचल पैदा कर दी। दरअसल वे कट्टर सिंधिया समर्थक मानी जाती हैं और बलिदान कार्यक्रम का आयोजन ही सिंधिया विरोधियों की उपज रहा है। इसे लेकर अब कांग्रेस तंज कस रही है।

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फूलबाग मैदान में लक्ष्मी बाई की समाधि स्थल पर इमरती देवी का पहुंचना राजनीतिक हलकों में तूफान मचा गया। दरअसल लक्ष्मीबाई के बलिदान दिवस का आयोजन वर्षों पूर्व सिंधिया के कट्टर समर्थक रहे जयभान सिंह पवैया ने शुरू किया था। पवैया ने इसे व्यापक स्तर पर यह कहते हुए शुरू किया था कि सिंधिया राजवंश की गद्दारी के चलते रानी लक्ष्मीबाई को बलिदान देना पड़ा और इतिहास में ऐसे वीरांगनाओं की बदौलत ही देश आज आजाद हो पाया है। तब से लेकर आज तक लगातार बलिदान दिवस हर वर्ष मनाया जाता रहा है लेकिन सिंधिया या उनके परिवार का कोई सदस्य आज तक इस कार्यक्रम में शामिल नहीं हुआ। उनके कट्टर समर्थक भी इन कार्यक्रमों से दूरी बनाए रखते हैं। ऐसे में प्रदेश की पूर्व महिला एवं बाल विकास मंत्री और वर्तमान में कांग्रेस की विधायक इमरती देवी का वहां पहुंचना समझ से परे है। इमरती को यह आश्वासन दिया गया था कि वह भले ही चुनाव जीते है ना जीते, उन्हें राजनीतिक रूप से पुनर्स्थापित जरूर किया जाएगा। लेकिन साल भर बीतने को आया और इमरती अभी भी अपनी राजनीतिक पुनर्स्थापना की बाट जोह रही है। कोरोना की दूसरी लहर के समय भी उनकी अनुपस्थिति लोगों में चर्चा का विषय रही थी और तब यह बताया गया था कि स्वास्थ्य खराब होने के चलते हुए लोगों के बीच नहीं जा पा रही है।

अब इस मुद्दे को कांग्रेस ने लपक लिया है और तंज कसते हुए कहा है कि वीरांगना झांसी की रानी लक्ष्मीबाई के बलिदान दिवस पर “झांसे के सौदागर” के चक्कर मे आकर अपना राजनैतिक कैरियर बर्बाद कर देने वाली इमरती देवी जी ने ग्वालियर में प्रतिमा स्थल पर माल्यार्पण किया! इसके गूढ़ अर्थ गंभीर हो सकते हैं?


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श्रुति कुशवाहा

श्रुति कुशवाहा

2001 में माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय भोपाल से पत्रकारिता में स्नातकोत्तर (M.J, Masters of Journalism)। 2001 से 2013 तक ईटीवी हैदराबाद, सहारा न्यूज दिल्ली-भोपाल, लाइव इंडिया मुंबई में कार्य अनुभव। साहित्य पठन-पाठन में विशेष रूचि।

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