Fri, Dec 26, 2025

जब PWD अधिकारी ने SDM से पूछा ‘किस नियम के तहत किया निर्देशित’, पत्र लिखकर जवाब मांगा

Written by:Shruty Kushwaha
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जब PWD अधिकारी ने SDM से पूछा ‘किस नियम के तहत किया निर्देशित’, पत्र लिखकर जवाब मांगा

Tension between SDM and Executive Engineer : कहावत है कि सेर को सवा सेर मिल ही जाता है। इसकी बानगी गाहे-बगाहे हम देखते ही रहते हैं। लेकिन हाल ही में जो मामला सामने आया है, वो जानकर आप इस दुविधा में पड़ जाएंगे कि इसपर हंसा जाए या सिर पीटा जाए। बात शुरु हुई थी सरकारी ख़तो-किताबत से लेकिन मामला जा पहुंचा आन बान और शान पर। और सरकारी सलीके में ही एक दूसरे पर जबावतलबी होने लगी।

जलालपुर का रोचक मामला 

मामला है उत्तर प्रदेश का। यहां अंबेडकर नगर जिले के जलालपुर में उप जिलाधिकारी यानी एसडीएम ने पीडब्ल्यूडी के अधिशासी अभियंता यानी एग्जीक्यूटिव इंजीनियर को एक पत्र लिखा। इस पत्र में लिखा गया है कि ‘तहसील जलालपुर जनपद अंबेडकरनगर क्षेत्रान्तर्गत मालीपुर से जलालपुर सड़क मार्ग पर किनारे किनारे झाड़ियां व पेड़ की शाखाएं लटकी हुई है जिसके कारण उक्त मार्ग पर दुर्घटना की प्रबल संभावना है। उक्त के दृष्टिगत आपको निर्देशित किया जाता है कि सड़क किनारे लटकी हुई झाड़ियों पर पेड़ की शाखाओं को साफ कराना सुनिश्चित करें।’ कुल मिलाकर एसडीएम ने लोक निर्माण विभाग के इंजीनियर को कहा कि अमुक सड़क किनारे लगी झाड़ियां हटा दी जाए। लेकिन मामले ने तो कुछ और ही रुख ले लिया।

‘निर्देशित’ शब्द पर जताई आपत्ति

पीडब्ल्यूडी के इंजीनियर साहब को जब ये पत्र मिला तो वो तमतमा गए। सारा फोकस ‘निर्देशित’ शब्द पर आकर टिक गया। झाड़ियां..सड़क..दुर्घटना..सफाई तो रह गए एक कोने में और इस ‘निर्देशित’ शब्द ने मेन लीड ले ली। दरअसल नियमानुसार एसडीएम महोदय उत्तर प्रदेश शासन द्वारा तैनात द्वितीय श्रेणी/श्रेणी ‘ख’ के अधिकारी हैं और पीडब्ल्यूडी एग्जीक्यूटिव इंजीनियर प्रथम श्रेणी/श्रेणी ‘क’ के अधिकारी पद पर तैनात हैं। लिहाज़ा..उन्हें अपने से कनिष्ठ स्तर के अधिकारी द्वारा लिखे गए पत्र में ‘निर्देशित’ लिखा जाना सख्त नागवार गुजरा। इसके बाद इंजीनियर साहब ने उस पत्र के जवाब में लंबा पत्र लिखा।

शासकीय नियमों का हवाला दिया

इस पत्र में पीडब्ल्यूडी इंजीनियर ने लिखा है कि जानकारी के अनुसार आप उत्तर प्रदेश लोकसेवा आयोग द्वारा चयनित एवं उत्तर प्रदेश शासन द्वारा तैनात द्वितीय श्रेणी-ख के अधिकारी हैं जबकि वे स्वयं उत्तर प्रदेश लोकसेवा आयोग द्वारा चयनित एवं उत्तर प्रदेश शासन द्वारा तैनात प्रथम श्रेणी-क के अधिकारी है। अत: किस नियमावली के तहत द्वितीय श्रेणी के अधिकारी प्रथम श्रेणी के अधिकारी को ‘निर्देशित’ कर सकते हैं। इसकी के साथ उन्होने नियमों का हवाला देते हुए लिखा है कि ‘क्या आप द्वारा निर्देशित किया जाना उत्तर प्रदेश सरकारी सेवक आचरण नियमावली 1956 के नियम-3 में वर्णित नियमों के अनुसार उपयुक्त है। वहीं झाड़ियों को हटाने के लिए क्या कोई बजट उपलब्ध कराया है तथा इस कार्य के लिए धनराशि को किस मद से खर्च किया जाएगा, ये भी पूछा गया है।

बात निकली है तो दूर तलक जाएगी..

बहरहाल..यहां बात ‘पद’ और ‘कद’ पर आकर ठहर गई है। क्षेत्र को दो बड़े अधिकारी इस बात में उलझ गए हैं कि आखिर छोटा बड़े को ‘निर्देशित’ कैसे कर सकता है और इसे लेकर बाकायदा सरकारी दस्तावेजीकरण और चिठ्ठी-पत्री हो रही है। इस बीच अहम मुद्दा कि झाड़ियों के कारण दुर्घटना हो सकती है गौण हो गया है और आखिर आपने मुझे ऑर्डर कैसे दिया, ये प्रमुख मुद्दा बन गया है। अब चूंकि बात बड़े-छोटे पर आकर ठहर गई है इसलिए हाल फिलहाल तो झाड़ियों का कटना दीगर बात ठहरी। अभी तो ये मामला सुलझना है कि ‘निर्देशित’ शब्द से हुई मानहानि का पटाक्षेप किस तरह से होता है। अब बड़े साहब का पत्र जारी हो चुका है और देखना होगा कि इसपर छोटे साहब का क्या जवाब आता है। जब ‘निर्देशित’ शब्द को लेकर मसला सुलझेगा तब बात झाड़ियों और उसे कटवाने की प्रक्रिया तक पहुंचेगी। फिलहाल तो ये खत आगे पहुंचा है और इसके जवाब का इंतजार है।