National Ayurveda Day : भारत में अब 23 सितंबर को राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस मनाया जाएगा। प्राचीन चिकित्सा पद्धति आयुर्वेद को वैश्विक मंच पर और अधिक प्रचारित करने के लिए ये महत्वपूर्ण कदम उठाया गया है। आयुष मंत्रालय ने इसकी अधिसूचना जारी घोषणा कर दी है। बता दें कि पहले यह दिवस धनतेरस पर मनाया जाता था, लेकिन धनतेरस की तारीख हर साल बदलती है इसलिए अब ‘आयुर्वेद दिवस’ के लिए तिथि निश्चित कर दी गई है।
आयुर्वेद क्या है
आयुर्वेद संस्कृत शब्दों “आयुः” (जीवन) और “वेद” (ज्ञान) से मिलकर बना है जिसका अर्थ है – जीवन का विज्ञान। यह चिकित्सा पद्धति शरीर, मन और आत्मा के संतुलन पर आधारित है। आयुर्वेद विश्व की सबसे प्राचीन चिकित्सा प्रणालियों में से एक है। इसकी जड़ें भारतीय उपमहाद्वीप में 5000 साल से भी अधिक पुरानी हैं। आयुर्वेद सिर्फ रोगों के उपचार तक सीमित नहीं है बल्कि यह शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक स्वास्थ्य को संतुलित करने पर जोर देता है।

यह पांच महाभूतों (पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश) और तीन दोषों (वात, पित्त, कफ) के सिद्धांत पर आधारित है जिनका संतुलन स्वास्थ्य और असंतुलन रोग का कारण माना जाता है। आयुर्वेदिक उपचार में जड़ी-बूटियां, विशेष आहार, योग, ध्यान, मालिश और पंचकर्म जैसी शोधन प्रक्रियाएं शामिल हैं। चरक संहिता, सुश्रुत संहिता और अष्टांग हृदय जैसे प्राचीन ग्रंथ आयुर्वेद के मूल आधार हैं। ये ग्रंथ न केवल चिकित्सा के सिद्धांतों को विस्तार से बताते हैं, बल्कि जीवन जीने की कला और स्वस्थ जीवनशैली के महत्व को भी रेखांकित करते हैं।
आयुर्वेद का महत्व
आयुर्वेद का महत्व सिर्फ चिकित्सा तक सीमित नहीं है बल्कि ये एक समग्र जीवन पद्धति है। इसमें रोगों के उपचार के साथ उनकी रोकथाम पर भी बल दिया जाता है। आयुर्वेद का आधार प्राकृतिक चिकित्सा है। आयुर्वेदिक औषधियां जड़ी-बूटियों, खनिजों और प्राकृतिक तत्वों से बनाई जाती हैं, जिसके कारण इनके दुष्प्रभाव न्यूनतम होते हैं। इसके अलावा, आयुर्वेद में आहार और जीवनशैली को विशेष महत्व दिया जाता है।
आधुनिक युग में आयुर्वेद की प्रासंगिकता
आयुर्वेद, जो हजारों वर्षों से भारत की चिकित्सा और सांस्कृतिक परंपरा का हिस्सा रहा है, आज भी उतना ही प्रासंगिक है। आज के समय में जब तनाव, डायबिटीज़, हाई बीपी, कैंसर जैसी जीवनशैली से जुड़ी बीमारियां बढ़ रही हैं, आयुर्वेद की प्रासंगिकता और बढ़ गई है। आयुर्वेदिक आहार, योग, और विश्राम तकनीकें इन बीमारियों की रोकथाम में प्रभावी साबित हुई हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने भी आयुर्वेद को एक पारंपरिक चिकित्सा प्रणाली के रूप में मान्यता दी है। आयुर्वेद का प्राकृतिक और समग्र दृष्टिकोण इसे आधुनिक युग में लोकप्रिय बनाता है।