जीतू पटवारी ने मुख्य सचिव एवं लोकायुक्त को लिखा पत्र, दलित-आदिवासियों की जमीन बेचने की अनुमति देने का मामला

अपने पत्र में जीतू पटवारी ने लिखा है कि भारतीय जनता पार्टी के कार्यकाल में अनुसूचित जाति और जनजाति के गरीबों को शासन की ओर से दी गई पट्टे की जमीन को बेचने की अनुमति धड़ल्ले से दी जा रही है इससे गरीबों का हक छिन रहा है। उन्होंने मांग की कि सारे मामले की जांच कर मध्यप्रदेश में जितने भी कलेक्टरों ने अजा अजजा वर्ग की पट्टे की जमीन बेचने की अनुमति दी है, उन अवैधानिक अनुमतियों को निरस्त किया जाए और कलेक्टरों को जेल भेजा जाए व आर्थिक क्षतिपूर्ति की जाए।

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MP News : मध्य प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष जीतू पटवारी ने मुख्य सचिव एवं लोकायुक्त को पत्र लिखा है। इस पत्र में दलित आदिवासियों की जमीन बेचने की अनुमति का मामला उठाया है। उन्होंने कलेक्टरों को जेल भेज उनकी वैध-अवैध संपत्तियां बेच क्षतिपूर्ति करने एवं दलित आदिवासियों को जितने में जमीन बिकी उतने मुआवजे एवं मूल जमीन पर पट्टे की मांग की है।

ये पत्र नीमच जिले के पूर्व कलेक्टर अजय सिंह गंगवार और रतलाम के पूर्व एडीएम कैलाश‌ बुंदेला द्वारा अनुसूचित जाति जनजाति के सदस्यों की शासकीय पटटे की भूमि (मप्र भू राजस्व संहिता की धारा 181) बेचने की थोकबंद अनुज्ञाएं देने से शासकीय भूमि‌ बेचने की अनुमति देने के मामले में सख्त दण्डात्मक कार्यवाही करने हेतु लिखा गया है।

जीतू पटवारी द्वारा लिखा गया पत्र

अपने पत्र में जीतू पटवारी ने लिखा है कि ‘भारतीय जनता पार्टी के कार्यकाल में अनुसूचित जाति और जनजाति के गरीबों को शासन की ओर से दी गई पट्टे की जमीन को बेचने की अनुमति धड़ल्ले से दी जा रही है इससे गरीबों का हक छिन रहा है। रतलाम जिले के बाजना सैलाना में भी जनजाति के पट्टों की अनुमति धडल्ले से दी जा रही है। नीमच में कलेक्टर पद पर रहते हुए, पूर्व कलेक्टर अजय सिंह गंगवार ने मध्यप्रदेश भू राजस्व संहिता की धारा 181 के अंतर्गत शासकीय पट्टे की भूमि अहस्तांतरणीय भूमि को बेचने की थोकबंद 24 अनुज्ञाएं जारी कर दी है। आरसीएमएस की ऑनलॉईन वेबसाईट का अवलोकन करने पर पता चलता है कि कलेक्टर अजय गंगवार ने भू राजस्व संहिता की धारा 165 के अंतर्गत लगभग 100 से अधिक अनुज्ञाएं जारी कर दी है जबकि उज्जैन व रतलाम जिले के अंतर्गत इस प्रकार की अनुज्ञाएं दिए जाने के मामलों को पूर्व संभागायुक्त महोदय श्री एम बी ओझा ने संज्ञान में लेकर मध्यप्रदेश भू राजस्व संहिता की धारा 32, 50 ए के अंतर्गत पुनरीक्षण में लिया था। इस प्रकार गंभीर अनियमितता करते हुए मप्र भू राजस्व संहिता की धारा 165 (6) की मूल भावना के अनुरूप अनूसूचित जाति और जनजाति और आदिवासी खातेदारों के हितों का संरक्षण नहीं किया जाकर धारा 165(6) के प्रावधानों का पालन नहीं करते हुए अनुसूचित जाति एवं जनजाति और आदिवासी के खातेदारों की भूमि विक्रय की अनुमति प्रदान की गई है। ऐसा लेख करते हुए सारी अनुमतियां निरस्त की थी।’

‘इसी प्रकार उज्जैन में आईएएस आर एस थेटे ने जो अनुमतियां दी। आयुक्त अरूण पाण्डेय ने वे भी निरस्त की। रतलाम में एडीएम रहते हुए कैलाश बुंदेला ने जो अनुमतियां दी वे अनुमतियों आयुक्त एमबी ओझा ने निरस्त की। इस प्रकार पहले अनुमति देकर जमीन बिकवाने और बाद में अनुमति निरस्त कर अजा अजजा के गरीब लोगों को कोर्ट कचहरी के केस में लंबे समय तक उलझा कर रखने का षड्यंत्र चल रहा है। जिससे इस वर्ग के लोग अपनी रोजी रोटी छोड़ कर कर्ज के शिकार हो जाएं और इनकी बहू बेटियों से कर्ज की आड़ में विभिन्न प्रकार का शारीरिक एवम मानसिक शोषण कर सकें। जबकि मध्यप्रदेश भू राजस्व संहिता की धारा 165 (3) में साफ लिखा है कि भूमि बेचने से विक्रेता (शासकीय पटटेदार ) के सामाजिक सांस्कृतिक आर्थिक हितों पर क्या प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। इस बात की सूक्ष्मता से जांच होना चाहिए थी, किस आयोग की रिपोर्ट के आधार पर यह माना जा रहा है कि अजा अजजा वर्ग के व्यक्तियों की भूमि की विक्रय अनुज्ञा देने से उनके हितों पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा ?’

‘क्या गांवों और शहरों में पति द्वारा शराब पीकर पत्नी के साथ मारपीट करने की घटनाएं बंद हो गई है ? क्या गांवों में जाति के आधार पर छूआछूत और भेदभाव की घटनाएं बंद हो गई है? क्या गांवों और शहरों में सवर्ण जाति के व्यक्तियों के कुंए बावड़ी से अजा अजजा वर्ग के लोगों को पानी नहीं लेने देने की घटनाएं बंद हो गई है ? क्या गांवों और शहरों में काम कराने के बाद भी मजदूरी नहीं देने की घटनाएं बंद हो गई है? क्या गांवों और शहरों में सूदखोरी की घटनाएं बंद हो गई है। क्या गांवों में शराब के लिए पत्नी और जमीन को बेच देने की घटनाएं बंद हो गई है ? क्या भू माफिया अजजा अजा व्यक्तियों की जमीनों को सस्ते दामों में खरीद कर महंगे दामों में पूंजीपतियों को नहीं बेंच रहे है ? इस प्रकार से शासकीय भूमि को बेचने से क्या शासन का हित प्रभावित नहीं हो रहा है, क्या अवैध कब्जे द्वारा दलितों एवम आदिवासियों को उनकी जमीन कौड़ी के दाम बेचने पर मजबूर नही किया जा रहा? कलेक्टर किस सीमा तक अनुज्ञा दे सकते हैं, जितनी भी सरकारी जमीनें है क्या सभी जमीनों को बेंचने की अनुज्ञा कलेक्टर दे सकते हैं क्या ? इससे सरकारी जमीने कम होती चली जाएगी तो इसका जवाबदार कौन होगा ? यदि किसी महत्वपूर्ण मास्टर प्लान या योजना में जमीन की आवश्यकता पड़ेगी तो जमीन की पूर्ति कहां से होगी?’

‘आपसे आग्रह है कि संपूर्ण मामले की जांच कर मध्यप्रदेश में जितने भी कलेक्टरो ने अजा अजजा वर्ग की पट्टे की जमीन बेचने की अनुमति दी है उन सभी कलेक्टरों की अवैधानिक अनुमतियों को निरस्त करें और कलेक्टरों को जेल भेजें और आर्थिक क्षतिपूर्ति इन कलेक्टरों की वैध-अवैध संपत्तियां बेचकर की जाए जिससे कि समाज में उदाहरण स्थापित हो सके तथा प्रभावित दलित आदिवासियों को उनकी जमीन का पट्टा एवं कब्जा वापस देकर जितने में जमीन बिकी उतना मुआवजा भी दिया जाए जिससे उनके आर्थिक हितों पर कुठाराघात ना हो।’

जीतू पटवारी ने मुख्य सचिव एवं लोकायुक्त को लिखा पत्र, दलित-आदिवासियों की जमीन बेचने की अनुमति देने का मामला

जीतू पटवारी ने मुख्य सचिव एवं लोकायुक्त को लिखा पत्र, दलित-आदिवासियों की जमीन बेचने की अनुमति देने का मामला

 

 


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श्रुति कुशवाहा

श्रुति कुशवाहा

2001 में माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय भोपाल से पत्रकारिता में स्नातकोत्तर (M.J, Masters of Journalism)। 2001 से 2013 तक ईटीवी हैदराबाद, सहारा न्यूज दिल्ली-भोपाल, लाइव इंडिया मुंबई में कार्य अनुभव। साहित्य पठन-पाठन में विशेष रूचि।

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