भोपाल।
पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ की पीसी में एक पत्रकार के कोरोना संक्रमित होने के बाद प्रशासन ने उस प्रेस कांफ्रेंस मैं मौजूद सभी नेताओं एवं अधिकारियों को क्वॉरेंटाइन होने का निर्देश दिया है। माना जा रहा है कि संक्रमित पत्रकार के संपर्क में आने से यह वायरस अन्य लोगों तक भी फैल सकते हैं। जिसके लिए अधिकारियों नेताओं सहित पत्रकारों को शाम को क्वारांटिन करना चाहिए। इस विषय को लेकर भोपाल के जर्नलिस्ट क्लब ने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को पत्र लिखा है। जिस पर उन्होंने सरकार से सकारात्मक कार्रवाई की उम्मीद की।
जर्नलिस्ट क्लब ने मुख्यमंत्री चौहान को पत्र लिखते हुए कहा कि जैसा आप जानते हैं कि वर्तमान में पूरा राष्ट्रीय कोरोना वायरस के कारण संक्रमित है और प्रदेश में भी यह वायरस तेजी से फैल रहा है इस बीच जिला प्रशासन द्वारा एक तुगलकी निर्णय लिया गया है। अपने पत्र में जर्नलिस्ट्स क्लब ने मुख्यमंत्री शिवराज के समक्ष अपनी बात रखते हुए 10 कारण गिनाए हैं।
500 से 1000 के बीच रही संख्या
जर्नलिस्ट क्लब ने कहा कि 20 मार्च, 2020 को 12 बजे दोपहर तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री कमल नाथ द्वारा विधान सभा में फ्लोर टेस्ट के लिए जाने से पहले मीडिया कर्मियों को सम्बोधित करने हेतु एक प्रेस कांफ्रेंस का आयोजन श्यामला हिल्स स्थित मुख्यमंत्री आवास में किया गया। इसकी सूचना जनसम्पर्क विभाग द्वारा 19 मार्च को रात में दिया गया। चूँकि मध्य प्रदेश कि राजनीति में ये बहुत ही महत्वपूर्ण क्षण था तथा तत्कालीन कांग्रेस सरकार का भविष्य कुछ घंटो बाद ही तय होना था अतः मीडिया कर्मी बहुत ही बड़ी संख्या में पहुंचे। न सिर्फ दिल्ली, भोपाल वरन प्रदेश के अन्य जगहों के मीडिया प्रतिनिधि भी मुख्यमंत्री आवास पहुंचे। बल्कि तत्कालीन मुख्यमंत्री तथा उनके मंत्रिमंडल के 21 मंत्री, कांग्रेस के लगभग 80 विधायक तथा कांग्रेस पार्टी के बहुत से पदाधिकारी, मुख्यमंत्री के सुरक्षा में लगे अधिकारी और कर्मचारी, जनसम्पर्क विभाग के अधिकारी तथा कर्मचारी, कई आईएएस तथा आईपीएस अधिकारी तथा कैटरिंग स्टाफ वहां पर मौजूद था। सबकी संख्या 500 से 1000 के बीच रही होगी जैसा की हम लोगों को वहां अनौपचारिक सूचना दी गयी।
फैलते संक्रमण के बीच भी नहीं थी कोई व्यवस्था
जब मीडिया प्रतिनिधि मुख्यमंत्री आवास पहुंचे तो वहां कोरोना संक्रमित किसी भी व्यक्ति को पहचानने तथा उसका प्रवेश मुख्यमंत्री आवास में न होने पाए इस हेतु न तो वहां स्वास्थ्य विभाग की कोई टीम थी (और अगर थी भी तो उसका पता नहीं था) और न ही वहां कोई थर्मल स्कैनर था, न ही सैनेटाइजर और कोई मास्क था। और उससे भी ज्यादा जो गंभीर लापरवाही वहां की गयी कि पत्रकारों को बैठाने में एक निश्चित दूरी नहीं बनायी गयी। सभी कि कुर्सियां पास पास थीं। सभी एक बड़े समूह में उपस्थित थे। यानि कि कोई भी ऐसी व्यवस्था नहीं थी कि उससे कोरोना से संक्रमित किसी भी व्यक्ति की पहचान और उसका प्रवेश मुख्यमंत्री आवास में रोका जा सके या अगर किसी संक्रमित व्यक्ति ने वहां प्रवेश कर लिया हो तो उससे दूसरों का बचाव किया जा सके जिसमेँ तत्कालीन मुख्यमंत्री सहित बहुत सारे गणमान्य लोग शामिल थे।
क्या सतर्क था जिला प्रशासन
पत्रकार वार्ता में उपस्थित उक्त पत्रकार महोदय जो बाद में कोरोना से संक्रमित पाए गए उनकी बेटी लंदन से 17 या 18 मार्च को आ चुकी थी। जो भी व्यक्ति दूसरे देशों से वापस आ रहे हैं उनकी पूरी सूची जिला प्रशासन के पास थी या होनी चाहिए थी। अतः अगर जिला प्रशासन कोरोना वायरस के द्वारा फैले महामारी के बारे में जरा भी सतर्क होता तो भी उक्त पत्रकार महोदय को मुख्यमंत्री आवास में आने से रोका जा सकता था। अगर प्रशासन के पास सूचना नहीं थी तो भी पत्रकार वार्ता में आने से पहले सामान्य तौर पर भी पत्रकारों से पूछा जा सकता था कि वो स्वयं या उनके परिवार का कोई सदस्य कोरोना से संक्रमित तो नहीं है या वे स्वयं या उनके परिवार का कोई सदस्य विदेश से तो नहीं लौटा है। इतने सामान्य प्रक्रिया से भी संभव था कि उक्त पत्रकार महोदय उस पत्रकार वार्ता में नहीं आते। इसके अतिरिकत एक हेल्थ डिपार्टमेंट की टीम मुख्यमंत्री आवास गेट पर तैनात की जा सकती थी जो आने जाने वाले लोगों पर निगाह रख सकते थे की आने वालों में कोई संक्रमित तो नहीं दिख रहा।
संक्रमण को रोकने के लिए क्या कदम उठाये गए
पत्रकार वार्ता के दो दिन पश्चात यानि 22 मार्च को उक्त पत्रकार महोदय की पुत्री कोरोना से संक्रमित पायी गयी। उसको भोपाल स्थित AIIMS में भर्ती किया गया। सभी पत्रकार चाहते हैं की ईश्वर उसे जल्दी स्वस्थ करें। जहां तक जानकारी है प्रशासन को रिपोर्ट के बारे में 22 मार्च को दोपहर तक पता चल गया था पर हलचल शाम को हुयी और वो भी सिर्फ अस्पताल में भर्ती कराने हेतु। कोरोना के बारे में जैसा कि सावधानी बरती जानी चाहिए संक्रमित व्यक्ति के निवास स्थान से कम से कम 1 किलोमीटर के क्षेत्र को सैनिटाइज़ किया जाता है तथा उस पूरे एरिया को क्वारंटाइन किया जाता है। पर ऐसा तुरंत कुछ नहीं हुआ। उक्त पत्रकार महोदय की बेटी को कोरोना द्वारा संक्रमित पाए जाने पर पत्रकार महोदय का टेस्ट सम्भवतः 23 मार्च को किया गया। और रिपोर्ट 25 मार्च को आयी। पत्रकार महोदय का भी स्वैब टेस्ट पॉजिटिव निकला और उनको भी AIIMS में भर्ती किया गया। सभी पत्रकार उक्त पत्रकार महोदय के अच्छे स्वास्थ्य के लिए प्रार्थना करते हैं।22 मार्च से 25 मार्च के बीच भी प्रशासन ने उक्त क्षेत्र में संक्रमण को रोकने के लिए क्या कदम उठाये ये वहां के निवासियों से किसी भी जांच दल द्वारा पता किया जा सकता है।
पत्रकारों से नहीं किया गया संपर्क स्थापित
संक्रमण पत्रकार महोदय का कोरोना टेस्ट पॉजिटिव होने के बाद स्क्रीनिंग किया गया होता तो तत्कालीन मुख्यमंत्री आपके स्वास्थ्य कि चिंता करते हुए आपसे नहीं मिलते और वे तथा उनके मंत्री और विधायक राज भवन में आपको, राज्यपाल महोदय को और अन्य बहुत से आईएएस, आईपीएस तथा अन्य बहुत से अधिकारियों तथा कर्मचारियों को संक्रमण की किसी भी तरह की आशंका से बचाने के लिए वहां नहीं जाते। पर ऐसा कुछ नहीं हुआ।
कम से कम पत्रकारों से संपर्क तो स्थापित नहीं ही किया गया। उक्त पत्रकार महोदय के संक्रमित होने की सूचना मिलने के पश्चात् बहुत से पत्रकारों ने स्वयं आगे बढ़कर अपने आपको isolate कर लिया जिससे कि संक्रमण कि किसी भी तरह कि आशंका को टाला जा सके और उनकी वजह से दूसरों को परेशानी न हो । तब तक न तो प्रशासन ने, न जनसम्पर्क विभाग ने और न ही स्वास्थ्य विभाग के किसी भी अधिकारी और कर्मचारी ने पत्रकारों से संपर्क किया।
पर प्रशासन को दिक्कत तब हुयी जब पत्रकार बंधुओं ने प्रशासन से अपने स्वास्थ्य के जांच की मांग की। पहले टाल मटोल होता रहा और बाद में बताया गया की सभी अपना नाम कण्ट्रोल रूम में बता दें और उनके स्वास्थ्य की जांच हो जायेगी।
नोटिस और स्टीकर चिपकाकर अपराधियों से हुआ व्यवहार
बता दें कि बाद सूची बनाकर सभी पत्रकार बंधुओं के यहां नोटिस या स्टीकर चिपकाने की कार्यवाही इस तरह की गयी जैसे कोई पुलिस की टीम किसी अपराधी के यहां धावा बोलती है। कई पत्रकारों की अनुपस्थिति में उनका परिवार दहशत में आ गया और बच्चे घबरा गए। उक्त स्टीकर चिपकाने से पहले न तो पत्रकारों से इस सम्बन्ध में जिला प्रशासन द्वारा या जनसम्पर्क के अधिकारियों द्वारा कोई सूचना दी गयी, न ही कोई संपर्क स्थापित किया गया और न ही उन्हें ये बताया गया कि किस वैधानिक आधार पर उक्त सूची में उनका नाम है। क्या सूची बनाने के पहले कोई औपचारिक मीटिंग जिला प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों द्वारा की गयी? क्या इस निर्णय को आधार देने के लिए किसी भी तरह की विधिमान्य कार्रवाई की गयी। पत्रकार वार्ता में उपस्थित लोगों को वीडियो या फोटो के आधार पर पहचाना गया या उनकी उपस्थिति की जानकारी की पुष्टि किसी जनसम्पर्क महकमे के किसी अधिकारी द्वारा की गयी। और जिनकी उपस्थिति बताई जा रही है क्या उनसे पुछा गया कि वो वाकई में वहां थे भी या नहीं। अगर थे तो क्या वे उक्त संक्रमित पत्रकार महोदय के संपर्क में आये थे या नहीं। पत्रकारों से ये भी नहीं पुछा गया कि उनका स्वास्थ्य कैसा है जब तक कि पत्रकार बंधुओं ने स्वयं पहल नहीं किया जांच के लिये| कोरोना के प्रति अगर प्रशासन वाकई जागरूक होता वह टीम भेजने से पहले पत्रकारों से बात कर सकता था की नोटिस क्यों जरूरी है या नोटिस या स्टीकर जो भी लगाया जाना था ये उनके लिए भी और अन्य के लिए भी हितकर है। उल्लेखनीय है की जिन पत्रकारों ने सेल्फ isolate किया उन्होंने प्रशासन के कहने पर नहीं किया। स्वयं आगे बढ़कर किया तथा शासन और प्रशासन को बिना कहे ही उनको सहयोग दिया। प्रशासन में कोई हलचल भी नहीं होती अगर पत्रकार बन्धु अपने जांच क़ि मांग नहीं करते। अतः किसी भी पत्रकार को किसी भी तरह के नोटिस या स्टीकर से क्या आपत्ति हो सकती थी अगर वही कार्य सभ्य और विधिमान्य तरीके से किया जाता। प्रशासन का कृत्य ऐसा था क़ि जैसे पत्रकार सेल्फ-आइसोलेशन में जाने को तैयार नहीं थे और इसलिए प्रशासन को जबरदस्ती पुलिस बल का इस्तेमाल करना पड़ रहा हो।
प्रशासनिक अमले द्वारा फैलाई गयी दहशत
जिस तरह से प्रशासनिक अमले द्वारा दहशत फैलाई गयी और पत्रकारों के और उनके परिवारों के साथ अपराधियों जैसा अपमानजनक व्यवहार किया गया वह उनके और उनके परिवार के लोगों के ज़ेहन से मिटना मुश्किल है। और बात सिर्फ यहीं तक सीमित नहीं है। कई ऐसे पत्रकारों के घर पर नोटिस चस्पा किया गया जो उक्त पत्रकार वार्ता में गए ही नहीं। ऐसे पत्रकारों तथा गैर पत्रकारों में प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया दोनों के प्रतिनिधि हैं।उनका नाम उक्त सूची में किसने डाला यह आज तक पता नहीं। अरेरा कॉलोनी में रह रहे एक पत्रकार महोदय के घर पर प्रशासनिक टीम नोटिस चस्पा कर आयी। पत्रकार महोदय ही नहीं बल्कि उक्त मकान के मालिक ने भी टीम को बताया की जिन व्यक्ति को वो लोग खोज रहे हैं दुबई से ट्रेवल हिस्ट्री के कारण वे उक्त मकान को छोड़कर 6 महीने पहले जा चुके है। पर प्रशासनिक टीम ने उनकी बात को नहीं मानते हुए नोटिस वहीँ चस्पा कर दिया। एक महिला पत्रकार के घर पर नोटिस लगने के बाद उनको ये डर लगा कि कहीं उनके मकान मालिक उनको किराए का मकान छोड़ने के लिए न बोल दें।
गलत सन्देश देने की की गयी कोशिश
आश्चर्य इस बात का भी है क़ि इस पुरे घटनाक्रम में जनसम्पर्क विभाग के अधिकारी नदारत थे। एक अधिकारी को जब ये मामला बताया गया तो उन्होंने विषय को समझे बिना ही प्रशासन के उक्त कृत्य का समर्थन किया। प्रदेश भाजपा के मीडिया प्रमुख तक सूचना पहुंचाई गयी तो उन्होंने कहा क़ि मुख्यमंत्री महोदय के संज्ञान में उक्त बात ला दी गयी है। पर उनकी तरफ से भी विषय को जानने तथा उसका समाधान करने क़ि चेष्टा नहीं क़ि गयी। प्रशासन के कुछ अधिकारीयों द्वारा एक गलत सन्देश देने की कोशिश की गयी कि पत्रकार उक्त नोटिस का विरोध कर रहे हैं। ये सत्य नहीं है। विरोध रवैये का था नोटिस का नहीं। जिस वीडियो को सोशल मीडिया में वायरल किया गया उसमें भी ये देखा जा सकता है सवाल ये पूछा जा रहा है क़ि किसने ये तय किया क़ि नोटिस लगाना है। उसका वैधानिक आधार क्या है? क्या किसी व्यक्ति को बिना प्रेस कांफ्रेंस में गए ही उसके घर पर नोटिस लगा दिया जाएगा।
वहीँ अपनी बातों एवं तथ्य को रखते हुए जर्नलिस्ट संघ ने मुख्यमंत्री चौहान से अपील की है कि उपरोक्त तथ्य के मद्देनजर मुख्यमंत्री इस बात की जांच करवाएं कि किसकी लापरवाही से भोपाल में संक्रमण फैला जिससे कि देशवासियों के भी जान का खतरा उत्पन्न हो गया है। उन्होंने मुख्यमंत्री चौहान से अपील भी की है कि इस पूरे घटनाक्रम के बाद इस संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए तत्कालीन मुख्यमंत्री के पत्रकार वार्ता से पहले दौरान और उसके बाद क्या-क्या कदम उठाए गए हैं इसकी जांच भी की जाए।