भोपाल। मध्य प्रदेश की सियासत के कद्दावर नेता और कांग्रेस सासंद ज्यातिरादित्य सिंधिया को राष्ट्रीय माहसचिव बनाया गया है। उन्हें लोकसभा चुनाव में पश्चिम उत्तर प्रदेश में कांग्रेस को मजबूत करने की जिम्मेदारी सौंपी गई है। राजनीति के जानकारों का कहना है कि सिंधिया के यूपी जाने से मुख्यमंत्री को थोड़ी राहत मिली है। सिंधिया का हस्तक्षेप अब प्रदेश की राजनीति में कम रहेगा। समान शक्ति वाले दो दिग्गज नेताओं को टकराव से बचाने के लिए पार्टी हाई कमान ने एक तीर से दो निशाने साधने की कोशिश की है।चुनाव के बाद से सिंधिया को बड़ी जिम्मेदारी मिलने के कयास लगाए जा रहे थे, लेकिन मध्य प्रदेश की जगह उन्हें यूपी में जिम्मेदारी देना चौकाता है।
जानकारों का कहना है कि कांग्रेस के इस दांव से पार्टी को उत्तर प्रदेश में खास फायदा नहीं मिलेगा जैसा कि मध्य प्रदेश के ग्वालियर और चंबल में मिलता रहा है। लेकिन सिंधिया के एमपी की सियासत से मैदान छोड़ने से अब लोकसभा चुनाव की कमान एक तरह से सीएम कमलनाथ के हाथ में आ गई है। मुख्यमंत्री कमलनाथ अब लोकसभा चुनाव की रणनीति तैयार करेंगे और प्रचार प्रसार पर भी ध्यान देंगे। हाल ही के घटनाक्रम पर ध्यान दिया जाए तो कांग्रेस की सरकार आने के बाद भी सिंधिया की लगातार उपेक्षा की जा रही थी। गुना में किसान कर्ज माफी कार्यक्रम से उनका फोटो गायब था, अभी तक सिंधिया को भोपाल में बंगला आवंटित नहीं किया गया है। इन सब बातों से एक तरह सीएम ने संकेत देना चाहा है कि वह सरकार अपने मुताबिक चलाना चाहते हैं। जानकारों का कहना है कि इस तरह कांग्रेस ने खुद सिंधिया को यूपी भेजकर कमलनाथ को तोहफा दिया है।
सिंधिया को मुख्यमंत्री नहीं बनाए जाने से ग्वालियर-चंबल में काफी नाराजगी थी। सिंधिया को महासचिव बनाकर और उन्हें उत्तर प्रदेश में जिम्मेदारी देकर पार्टी ने उनका कद बढ़ाने और वोटरों का गुस्सा शांत करने का प्रयास किया है। अब यूपी में कांग्रेस के प्रदर्शन की जिम्मेदारी सिंधिया के कंधों पर है। इस तरह सिंधिया एक बार फिर मझधार में फंस गए हैं। यूपी के इस क्षेत्र में कांग्रेस पहले से कमजोर है। सिंधिया के होने से अगर यहां बेहतर परिणाम आते हैं तो उनका कद और बढ़ेगा लेकिन खराब नतीजे उनकी छवि को खराब भी कर सकते हैं। इससे पहले कांग्रेस ने उन्हें मप्र चुनाव प्रचार समिति का अध्यक्ष बनाया था। उनके क्षेत्र में कांग्रेस को शानदार नतीजे मिले हैं।