ग्वालियर । ग्वालियर अंचल की राजनीति में हमेशा से ही “महाराजा” यानि ज्योतिरादित्य सिंधिया और “राजा” यानि दिग्विजय सिंह खेमा आमने सामने रहता है। लोकसभा चुनाव के लिए ग्वालियर सीट से प्रत्याशी चयन करने में भी कांग्रेस कार्यकर्ताओं को इसलिए इंतजार कराना पड़ा क्योंकि “महाराजा” और “राजा” दोनों पक्ष अपने प्रत्याशी को टिकट दिलाना चाहते थे। लेकिन अंतत: जीत “राजा” की हुई और कांग्रेस ने दिग्विजय सिंह समर्थक अशोक सिंह को टिकट दे दिया ।
लंबे इंतजार के बाद मतदान से ठीक एक महीना पहले कांग्रेस ने आखिरकार ग्वालियर सीट से अपना उम्मीदवार घोषित कर दिया। कांग्रेस ने इस बार भी अशोक सिंह को ही मैदान में उतारा है। अशोक सिंह ग्वालियर सीट से पिछले तीन लोकसभा चुनाव हार चुके हैं लेकिन दिग्विजय सिंह और कमलनाथ सहित अन्य वरिष्ठ कांग्रेसियों का समर्थन होने के कारण वो टिकट पाने में सफल हो पाए हैं। हालांकि बाताया ये भी जा रहा है कि अशोक सिंह ने अपनी दावेदारी के लिए सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया को भी मना लिया था ओर तभी उनके नाम पर राहुल ने रजामंदी दी है । यानि दिग्विजय सिंह, कमलनाथ का दबाव और सिंधिया की रजामंदी से अशोक सिंह ने टिकट पाने की अपनी पहली लड़ाई जीत ली है।
उम्मीदवार को नाम को लेकर बदलते रहे समीकरण
पिछले कुछ दिनों के घटनाक्रम पर नजर डालेंगे तो चुनावों की घोषणा से पहले से ही प्रदेश उपाध्यक्ष अशोक सिंह का सिंगल नाम ग्वालियर सीट से चल रहा था, लेकिन अचानक सिंधिया गुट सक्रिय हुआ और उसने पहले सांसद सिंधिया को ग्वालियर से चुनाव लड़ाने की मांग की और फिर जिला कांग्रेस कमेटी ने उनके नाम का प्रस्ताव पारित कर दिल्ली भेज दिया । इसी बीच ग्रामीण जिला अध्यक्ष मोहन सिंह राठौर, प्रदेश महासचिव सुनील शर्मा और खाद्य मंत्री प्रद्युम्न सिंह तोमर के बड़े भाई नगर निगम के पूर्व नेता प्रतिपक्ष देवेंद्र सिंह तोमर का नाम भी चर्चा में आया । सिंधिया गुट की सक्रियता देखकर दिग्विजय सिंह, मुख्यमंत्री कमलनाथ, पूर्व नेता प्रतिपक्ष राहुल अजय सिंह, पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अरुण यादव समेत कई नेताओं ने अशोक सिंह के नाम की पैरवी की और बात राहुल गांधी तक पहुंचाई। अपनी पसंद के विपरीत नेता का नाम पर वजनदारी का अहसास होते ही सिंधिया ने जिला कांग्रेस कमेटी से अपनी पत्नी प्रियदर्शिनी राजे का प्रस्ताव पास कराकर राहुल गांधी के पास भेज दिया। बडी बात ये है कि इस प्रस्ताव पर सिंधिया समर्थक तीन कैबिनेट मंत्रियों और दो विधायकों की सिफारिश शामिल थी लेकिन 13 अप्रैल को फैसला अशोक सिंह के पक्ष में ही आया।
28 दिन में दिखानी होगी ताकत
ग्वालियर में मतदान 12 मई को होना है, चुनाव प्रचार मतदान से 48 घंटे पहले थम जाता है, इस हिसाब से अशोक सिंह और कांग्रेस के पास केवल 28 दिन ही शेष है जनता को विश्वास दिलाने के लिए कि वो ही ग्वलियर के लिए बेहतर विकल्प हैं। अब देखना ये है कि लगातार तीन लोकसभा चुनाव हारने का अशोक सिंह का सिलसिला इस बार थमता है कि नहीं और अशोक सिंह का संसद में पहुंचने का सपना पूरा होता है कि नहीं।