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Thu, Dec 18, 2025

राष्ट्रीय हथकरघा दिवस: सांस्कृतिक विरासत और स्वावलंबन का प्रतीक, सीएम डॉ. मोहन यादव ने दिया ‘वोकल फॉर लोकल’ का संदेश

Written by:Shruty Kushwaha
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भारतीय हथकरघा उद्योग न सिर्फ देश की सांस्कृतिक विविधता को दर्शाता है, बल्कि यह पर्यावरण अनुकूल, रोजगारोन्मुखी और महिला सशक्तिकरण का भी माध्यम है। हथकरघा क्षेत्र भारत में कृषि के बाद दूसरा सबसे बड़ा रोजगार सृजनकर्ता है जो लगभग 43 लाख बुनकरों और श्रमिकों को रोजगार देता है, जिनमें 70% से अधिक महिलाएं हैं।
राष्ट्रीय हथकरघा दिवस: सांस्कृतिक विरासत और स्वावलंबन का प्रतीक, सीएम डॉ. मोहन यादव ने दिया ‘वोकल फॉर लोकल’ का संदेश

आज राष्ट्रीय हथकरघा दिवस है। 7 अगस्त को यह दिन भारत की समृद्ध हथकरघा परंपरा और इसके कारीगरों के योगदान को सम्मानित करने के लिए मनाया जाता है। भारत में हथकरघा उद्योग कृषि के बाद दूसरा सबसे बड़ा रोजगार प्रदान करने वाला क्षेत्र है और ये 70 प्रतिशत से अधिक महिला बुनकरों और श्रमिकों को रोज़गार प्रदान करता है।

सीएम मोहन यादव ने इस दिन की शुभकामनाएं देते हुए वोकल फॉर लोकल को बढ़ावा देने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि ‘हथकरघा हमारी सांस्कृतिक धरोहर के साथ वर्तमान समय में आत्मनिर्भर भारत का सशक्त स्तंभ भी है। अपनी सृजनशीलता और परिश्रम से विकसित भारत की पहचान गढ़ने वाले सभी बुनकरों, हस्तशिल्पियों एवं प्रदेशवासियों को राष्ट्रीय हथकरघा दिवस की हार्दिक बधाई व शुभकामनाएं। आइए, वोकल फॉर लोकल के संकल्प के साथ अपने बुनकरों व कारीगरों की मेहनत का सम्मान करें और उनकी कला को विश्व पटल तक पहुँचाने में सहयोग करें।’

राष्ट्रीय हथकरघा दिवस का इतिहास

आज देश भर में 11वां राष्ट्रीय हथकरघा दिवस मनाया जा रहा है जो 1905 में शुरू हुए स्वदेशी आंदोलन की याद दिलाता है। इस आंदोलन ने ब्रिटिश वस्तुओं, विशेष रूप से वस्त्रों, का बहिष्कार कर स्वदेशी उत्पादों, खासकर हथकरघा और खादी को बढ़ावा दिया था। महात्मा गांधी द्वारा प्रचारित इस आंदोलन ने भारतीय घरों में खादी को लोकप्रिय बनाया और स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। 7 अगस्त 2015 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चेन्नई में पहले राष्ट्रीय हथकरघा दिवस का उद्घाटन किया और उसके बाद से हर साल ये दिन मनाया जाता है।

इस दिन का उद्देश्य और महत्व

राष्ट्रीय हथकरघा दिवस का प्रमुख उद्देश्य हथकरघा उद्योग को बढ़ावा देना और बुनकरों के सशक्तिकरण को प्रोत्साहित करना है। ये दिन हमें बनारसी, जामदानी, पटोला, और संबलपुरी जैसी पारंपरिक बुनाई कलाओं को संरक्षित करने के लिए प्रोत्साहित करता है। मेक इन इंडिया और वोकल फॉर लोकल के तहत हथकरघा उत्पादों को अंतर्राष्ट्रीय बाजार में बढ़ावा दिया जा रहा है। ये ऐसा क्षेत्र है जो पर्यावरण के भी अनुकूल है और इससे ग्रामीण क्षेत्रों में बड़ी संख्या में महिलाओं को रोज़गार मिला है। हथकरघा क्षेत्र सिर्फ रोजगार नहीं, बल्कि सामाजिक समरसता और सांस्कृतिक गर्व के साथ आर्थिक सशक्तिकरण, महिला भागीदारी और सांस्कृतिक अस्मिता का प्रतीक भी है।