Operation Sindoor : भारत ने जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले के जवाब में सैन्य कार्रवाई की जिसका नाम रखा गया ‘ऑपरेशन सिंदूर’। इस कार्रवाई के तहत पाकिस्तान और पीओके में स्थित नौ आतंकी ठिकानों पर एयर स्ट्राइक की गई। ‘ऑपरेशन सिंदूर’ का नाम उन महिलाओं के सम्मान में रखा गया, जिन्होंने पहलगाम हमले में अपने पति को खोया था। इस ऑपरेशन के बाद से ही ‘सिंदूर’ शब्द न सिर्फ देशभर में, बल्कि विदेशों में भी चर्चाओं में आ गया है।
‘सिंदूर’ का भारतीय परंपरा में और हिंदू धर्म में अत्यधिक महत्व है। ये लाल, केसरी या हल्का पीलापन लिए सिंदूरी रंग का होता है। पारंपरिक रूप से यह हल्दी, चूना और फूलों के अर्क (जैसे पलाश आदि) से बनाया जाता था। हल्दी में चूना मिलाने से यह लाल-नारंगी रंग का हो जाता है, जो पूरी तरह प्राकृतिक और सुरक्षित होता है। आज के समय सिंदूर में अक्सर मरक्यूरिक सल्फाइड और कृत्रिम रंग मिलाए जाते हैं। स्वास्थ्य के लिए पारंपरिक रूप से बनाए गए सिंदूर का उपयोग ही बेहतर होता है जिसमें किसी तरह के कैमिकल और कृत्रिम रंग न हो।

सिंदूर का उपयोग
सिंदूर मुख्य रूप से दो प्रकार का होता है लाल और पीला। अधिकांशतः लाल सिंदूर विवाहित महिलाएं अपनी मांग में भरती हैं, जबकि पीला सिंदूर विशेष अवसरों पर उपयोग किया जाता है। सिंदूर का उपयोग पूजा-पाठ, व्रत और त्योहारों में भी होता है, जैसे कि नवरात्रि और करवाचौथ।
सिंदूर का उपयोग हिंदू धर्म में पूजा से लेकर श्रृंगार तक विविध रूपों में होता है। हिंदू विवाह में ‘सिंदूर दान’ एक अनिवार्य रस्म है, जिसमें वर अपनी वधु की मांग में पहली बार सिंदूर भरता है। यह रस्म विवाह को पूर्णता प्रदान करती है और नववधु की वैवाहिक स्थिति को दर्शाती है। विवाहित महिलाएं अपनी मांग में सिंदूर लगाती हैं, जिसे 16 श्रृंगार का अभिन्न अंग माना जाता है।
सिंदूर की विवाह से जुड़ी धार्मिक मान्यता
हिंदू धर्म में सिंदूर को विवाहित महिलाओं के लिए सौभाग्य और सुहाग की निशानी माना जाता है। यह पति की लंबी आयु और वैवाहिक जीवन में सुख-समृद्धि की कामना का प्रतीक है। शास्त्रों के अनुसार, सिंदूर लगाने की परंपरा रामायण और पुराणों से चली आ रही है। माता सीता और देवी पार्वती द्वारा सिंदूर धारण करने का उल्लेख धार्मिक ग्रंथों में मिलता है। मान्यता है कि जब माता पार्वती ने भगवान शिव से विवाह किया, तब उन्होंने अपनी मांग में सिंदूर भरा जो उनके प्रेम और समर्पण का प्रतीक बना। वहीं, माता सीता की मांग में सिंदूर देखकर हनुमान जी ने उनसे जिज्ञासावश इस बारे में पूछा। इसके जवाब में सीता जी ने बताया कि यह उनके पति श्रीराम की लंबी आयु के लिए है। इस कथा से प्रेरित होकर हनुमान जी ने अपने पूरे शरीर पर सिंदूर चढ़ा लिया और सिंदूर हनुमान जी को अति प्रिय हो गया।
धार्मिक अनुष्ठान और पूजा-पाठ
सिंदूर का उपयोग देवी-देवताओं की पूजा में व्यापक रूप से होता है। विशेष रूप से मां दुर्गा, माता लक्ष्मी, माता पार्वती, हनुमान जी और गणेश जी को सिंदूर अर्पित किया जाता है। नवरात्रि, करवा चौथ और दीपावली जैसे पर्वों में मां दुर्गा और लक्ष्मी जी की मूर्तियों पर सिंदूर चढ़ाया जाता है, जो शक्ति और समृद्धि का प्रतीक है। हनुमान जी को चमेली के तेल में मिश्रित सिंदूर (चोला) चढ़ाने की परंपरा है।
देवी-देवताओं के साथ सिंदूर का संबंध
- मां पार्वती और मां दुर्गा: सिंदूर को मां पार्वती की ऊर्जा और मां दुर्गा की शक्ति का प्रतीक माना जाता है। स्कंद पुराण में देवी पूजा में सिंदूर के उपयोग का उल्लेख है, जो इसे दिव्य ऊर्जा का वाहक बनाता है।
- माता लक्ष्मी: सिंदूर को धन और समृद्धि की देवी माता लक्ष्मी से जोड़ा जाता है। दीपावली पर लक्ष्मी पूजा में सिंदूर का उपयोग धन-वैभव की प्राप्ति के लिए किया जाता है।
- श्री गणेश जी और श्री भैरव: गणेश जी और भैरव की मूर्तियों पर शुद्ध घी में मिश्रित सिंदूर का लेप लगाया जाता है। मान्यता है कइ इससे उनकी शक्ति और सिद्धि बढ़ती है।
- श्री हनुमान जी: हनुमान जी को सिंदूर अति प्रिय है। मान्यता है कि हनुमान जयंती या मंगलवार को सिंदूर चढ़ाने से शनि की साढ़ेसाती और ढैय्या से मुक्ति मिलती है।
वास्तु और ज्योतिषीय उपाय
ज्योतिष शास्त्र में सिंदूर को वास्तु दोष और नकारात्मक ऊर्जा को दूर करने का प्रभावी साधन माना जाता है। ज्योतिष में सिंदूर को मंगल ग्रह से जोड़ा जाता है जो शक्ति, साहस और वैवाहिक जीवन को प्रभावित करता है। माना जाता है कि इसे लगाने से मंगल दोष का प्रभाव कम होता है। मान्यतानुसार, घर के मुख्य द्वार पर तेल में मिश्रित सिंदूर से स्वास्तिक बनाने से सुख-शांति बनी रहती है। आर्थिक समस्याओं के लिए नारियल पर सिंदूर लगाकर उसे लाल वस्त्र में बांधकर पूजा करने का उपाय भी काफी प्रचलित है।
(डिस्क्लेमर : ये लेख विभिन्न स्त्रोतों से प्राप्त जानकारियों पर आधारित है। हम इसकी पुष्टि नहीं करते हैं।)