रवींद्रनाथ टैगोर जयंती: साहित्य, संगीत और राष्ट्रीय चेतना गढ़ने वाले विश्वकवि, एकमात्र साहित्यकार जिनकी रचनाएं बनीं दो देशों का राष्ट्रगान

टैगोर ने कभी कोई औपचारिक विश्वविद्यालय डिग्री प्राप्त नहीं की। उन्होंने कोलकाता के सेंट जेवियर स्कूल और अन्य संस्थानों में पढ़ाई की, लेकिन औपचारिक शिक्षा से अधिक उनकी रुचि स्वाध्याय में थी। 1878 में वे कानून की पढ़ाई के लिए इंग्लैंड गए, लेकिन इसे पूरा नहीं किया। उन्होंने 60 वर्ष की आयु के बाद चित्रकला शुरू की और लगभग 2500 चित्र बनाए। उनकी पेंटिंग्स की प्रदर्शनियां यूरोप और भारत में आयोजित हुईं और आज वे राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय संग्रहालयों में संरक्षित हैं। टैगोर ने अपने जीवनकाल में तीस से अधिक देशों की यात्रा की जो साहित्यिक व्याख्यान, सांस्कृतिक आदान-प्रदान और शांति-संदेशों के लिए थीं।

Rabindranath Tagore Jayanti : आज विश्वविख्यात कवि, साहित्यकार, दार्शनिक और नोबेल पुरस्कार विजेता रवींद्रनाथ टैगोर की जयंती है। वे एक ऐसे बहुआयामी व्यक्तित्व थे जिन्होंने साहित्य, संगीत, कला और शिक्षा के क्षेत्र में अमूल्य योगदान दिया। टैगोर न सिर्फ भारत के पहले नोबेल पुरस्कार विजेता थे, बल्कि वे पहले गैर-यूरोपीय भी थे जिन्हें 1913 में साहित्य के लिए यह सम्मान प्राप्त हुआ और इसी कारण उन्हें विश्वकवि भी कहा जाता है।

टैगोर, जिन्हें ‘गुरुदेव’, ‘कविगुरु’, और ‘विश्वकवि’ के नाम से जाना जाता है, ने अपनी साहित्यिक रचनाओं, संगीत, और सामाजिक सुधारों के माध्यम से भारतीय संस्कृति को वैश्विक मंच पर नई पहचान दी। उनकी कालजयी रचनाएँ और दो देशों के राष्ट्रगान आज भी उनकी सृजनशीलता और मानवतावादी दृष्टिकोण का प्रमाण हैं। आज उनकी जयंती पर मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव ने उन्हें नमन किया है।

विश्वकवि रवींद्रनाथ टैगोर की जयंती

रवींद्रनाथ टैगोर का जन्म 7 मई 1861 को कोलकाता के जोड़ासाँको ठाकुरबाड़ी में एक समृद्ध बंगाली परिवार में हुआ था। उनके पिता देवेंद्रनाथ टैगोर एक प्रसिद्ध धार्मिक सुधारक थे और माता शारदा देवी थीं। बचपन से ही साहित्य और कला के प्रति रुझान रखने वाले टैगोर ने मात्र आठ वर्ष की आयु में अपनी पहली कविता लिखी थी। उनकी प्रारंभिक शिक्षा सेंट जेवियर स्कूल में हुई और बाद में वे कानून की पढ़ाई के लिए इंग्लैंड गए लेकिन डिग्री लिए बिना ही लौट आए।

टैगोर सामाजिक सुधारक भी थे। उन्होंने बाल विवाह, दहेज प्रथा, और अन्य सामाजिक बुराइयों के खिलाफ अपनी रचनाओं के माध्यम से आवाज़ उठाई। उनके विचार मानवतावाद, प्रकृतिवाद, और अंतरराष्ट्रीयतावाद पर आधारित थे। उन्होंने 1901 में शांति निकेतन में एक ओपन-एयर स्कूल की स्थापना की, जो बाद में 1921 में विश्व भारती विश्वविद्यालय बना। इस संस्थान का उद्देश्य प्राचीन गुरुकुल परंपरा को पुनर्जनन देना और भारतीय संस्कृति को वैश्विक शिक्षा के साथ जोड़ना था। विश्व भारती आज भी उनकी शैक्षिक दृष्टि का प्रतीक है।

नोबेल पुरस्कार प्राप्त करने वाले पहले एशियाई 

टैगोर ने 1913 में अपनी काव्य रचना गीतांजलि के लिए साहित्य का नोबेल पुरस्कार जीता। वे इस सम्मान को प्राप्त करने वाले पहले गैर-यूरोपीय और एशियाई बने। नोबेल समिति ने उनकी कविताओं को “गहन संवेदनशील, ताज़ा और सुंदर” बताया। इस पुरस्कार ने भारतीय साहित्य को विश्व स्तर पर प्रतिष्ठा दिलाई। 1915 में उन्हें ब्रिटिश सरकार ने नाइटहुड की उपाधि दी लेकिन 1919 में जलियांवाला बाग हत्याकांड के विरोध में उन्होंने इसे लौटा दिया जो उनके राष्ट्रीयता और मानवता के प्रति समर्पण को दर्शाता है।

टैगोर की प्रमुख कृतियां

गुरुदेव टैगोर की रचनाएं साहित्य, संगीत, और कला के क्षेत्र में अमूल्य योगदान देती हैं। उनकी कुछ प्रमुख कृतियों में गीतांजलि का नाम सबसे पहले आता है। 1910 में लिखी गया काव्य संग्रह उनकी सबसे प्रसिद्ध रचना है, जिसके लिए उन्हें नोबेल पुरस्कार मिला। इसमें आध्यात्मिक और प्रकृति से प्रेरित कविताएँ हैं, जिनका टैगोर ने स्वयं अंग्रेजी में अनुवाद भी किया था। इसके साथ गोरा, चोखेर बाली, काबुलीवाला, घरे बाइरे के साथ ही रवींद्र संगीत भी विश्वप्रसिद्ध है जिसमें टैगोर ने लगभग 2230 गीतों की रचना की है।  ये गीत बंगाली संस्कृति का अभिन्न हिस्सा हैं और विभिन्न रागों में रचे गए हैं। टैगोर ने नाटक, निबंध, और चित्रकला के क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया।

दो देशों के राष्ट्रगान के रचयिता

रवींद्रनाथ टैगोर विश्व के एकमात्र साहित्यकार हैं, जिनकी रचनाएं दो देशों का राष्ट्रगान बनीं। “जन गण मन” भारत का राष्ट्रगान है जिसे उन्होंने 1911 में लिखा था। इसे 1950 में स्वतंत्र भारत के राष्ट्रगान के रूप में अपनाया गया। यह गीत भारतीय एकता और विविधता का प्रतीक है। यह पहली बार 1911 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के कोलकाता अधिवेशन में गाया गया था। वहीं, “आमार सोनार बांग्ला’ बांग्लादेश का राष्ट्रगान, जिसे टैगोर ने 1905 में बंगाल विभाजन के विरोध में लिखा था। यह गीत बंगाल की सांस्कृतिक और प्राकृतिक सुंदरता का गुणगान करता है। इसके अतिरिक्त, श्रीलंका के राष्ट्रगान का एक हिस्सा भी टैगोर की कविता से प्रेरित है जो उनकी रचनाओं की वैश्विक पहुंच को दर्शाता है।


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Shruty Kushwaha

Shruty Kushwaha

2001 में माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय भोपाल से पत्रकारिता में स्नातकोत्तर (M.J, Masters of Journalism)। 2001 से 2013 तक ईटीवी हैदराबाद, सहारा न्यूज दिल्ली-भोपाल, लाइव इंडिया मुंबई में कार्य अनुभव। साहित्य पठन-पाठन में विशेष रूचि।

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