भोपाल।
कमलनाथ सरकार के एक आदेश ने स्वास्थ्य कर्मचारियों की नींद उड़ा दी है।सरकार के इस फरमान के बाद कर्मचारियों में आक्रोश व्याप्त हो गया है। कर्मचारियों का कहना है कि वे जिले में घर-घर जागरूकता अभियान तो चला सकते हैं, लेकिन किसी का जबर्दस्ती नसबंदी ऑपरेशन नहीं करवा सकते।
दरअसल, सरकार ने कर्मचारियों के लिए हर महीने 5 से 10 पुरुषों के नसंबदी ऑपरेशन करवाना अनिवार्य कर दिया है। ऐसा ना करने पर नो-वर्क, नो-पे के आधार पर वेतन ना देने की चेतावनी दी है। वर्तमान में मप्र की आबादी 7 करोड़ से अधिक है। प्रदेश में 25 जिले ऐसे हैं, जहां का टोटल फर्टिलिटी रेट (टीएफआर) तीन से अधिक है, जबकि मप्र में 2.1 टीएफआर का लक्ष्य है। ऐसे में हर साल 6 से 7 लाख नसबंदी ऑपरेशन के टारेगट होते हैं, लेकिन पिछले साल ये संख्या सिर्फ 2514 रही। कोई भी जिला अपना टारगेट पूरा नही कर पाया।इसी के चलते राज्य सरकार ने कर्मचारियों को परिवार नियोजन के अभियान के तहत टारगेट पूरा करने के निर्देश दिए है।
वही इन आंकड़ों पर राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन की संचालक छवि भारद्धाज ने भी नाराजगी जताई है। भारद्वाज ने सभी कलेक्टर और सीएमएचओ को पत्र लिखकर कहा है कि प्रदेश में मात्र 0.5 प्रतिशत पुरुष नसबंदी के ऑपरेशन किए जा रहे हैं। अब विभाग के पुरुषकर्मियों को जागरूकता अभियान के तहत परिवार नियोजन का टारगेट दिया जाए। उनके इस पत्र के बाद सीएमएचओ ने पत्र जारी कर कहा है कि यदि टारगेट के तहत काम नहीं किया तो अनिवार्य सेवानिवृत्ति के प्रस्ताव भेजेंगे। सरकार के इस फैसले के बाद कर्मचारियों में आक्रोश है वो इसका विरोध कर रहे है।कर्मचारियों का कहना है कि वे जिले में घर-घर जागरूकता अभियान तो चला सकते हैं, लेकिन किसी का जबर्दस्ती नसबंदी ऑपरेशन नहीं करवा सकते।