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IPS की डायरी…गरीब मुजरिमों का जुर्माना जेब से भरकर करवाया था रिहा

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भोपाल, डेस्क रिपोर्ट। मेरी थानेदारी का पहला विचित्र केस…एनके त्रिपाठी….45 वर्ष पहले 1 मई, 1976 को मुझे IPS प्रशिक्षण के लिए खंडवा ज़िले (Khandwa District) के मान्धाता-ओंकारेश्वर थाने में दो महीनों के लिए पदस्थ किया गया। पहले दिन से ही मैंने थाने के रजिस्टर, रिकॉर्ड और रोज़नामचा आदि का अध्ययन करना आरंभ कर दिया तथा ग्राम भ्रमण एवं ग्रामों में रात्रि विश्राम करना प्रारंभ कर दिया। लेकिन अपराध की शिकायत करने वाला कोई प्रार्थी नहीं आया, जिसकी मैं प्रशिक्षण हेतु आतुरता से प्रतीक्षा कर रहा था।

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IPS लिखते है कि  8-10 दिन के बाद थाने पर ग्राम गोल के एक प्रार्थी पटेल ने आकर अपनी चार सागौन की बल्लियाँ घर के बाहर से चोरी हो जाने की शिकायत की।मैं जब उत्साहवश FIR रजिस्टर निकाल कर तत्काल अपराध पंजीबद्ध करने जा रहा था, तब प्रधान आरक्षक रामनिहोर मिश्रा ने मुझे अनावश्यक छोटी सी घटना पर सीधे FIR न करने की सलाह दी। ख़ैर, उनको समझा बुझाकर धारा 379 IPC का मुक़दमा क़ायम किया। थाने में इस प्रकार के किसी अपराधी या अपराध का कोई रिकॉर्ड (Crime Record) देखने पर नहीं मिला। मैंने प्रधान आरक्षक गश्ती रामवल्लभ को घटनास्थल चलने के लिए तैयार होने को कहा।ग्राम गोल उन बहुत थोड़े से गांवों में से एक था जहाँ सड़क से पहुँचा जा सकता था।

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Pooja Khodani

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खबर वह होती है जिसे कोई दबाना चाहता है। बाकी सब विज्ञापन है। मकसद तय करना दम की बात है। मायने यह रखता है कि हम क्या छापते हैं और क्या नहीं छापते। "कलम भी हूँ और कलमकार भी हूँ। खबरों के छपने का आधार भी हूँ।। मैं इस व्यवस्था की भागीदार भी हूँ। इसे बदलने की एक तलबगार भी हूँ।। दिवानी ही नहीं हूँ, दिमागदार भी हूँ। झूठे पर प्रहार, सच्चे की यार भी हूं।।" (पत्रकारिता में 8 वर्षों से सक्रिय, इलेक्ट्रानिक से लेकर डिजिटल मीडिया तक का अनुभव, सीखने की लालसा के साथ राजनैतिक खबरों पर पैनी नजर)