IPS लिखते है कि 8-10 दिन के बाद थाने पर ग्राम गोल के एक प्रार्थी पटेल ने आकर अपनी चार सागौन की बल्लियाँ घर के बाहर से चोरी हो जाने की शिकायत की।मैं जब उत्साहवश FIR रजिस्टर निकाल कर तत्काल अपराध पंजीबद्ध करने जा रहा था, तब प्रधान आरक्षक रामनिहोर मिश्रा ने मुझे अनावश्यक छोटी सी घटना पर सीधे FIR न करने की सलाह दी। ख़ैर, उनको समझा बुझाकर धारा 379 IPC का मुक़दमा क़ायम किया। थाने में इस प्रकार के किसी अपराधी या अपराध का कोई रिकॉर्ड (Crime Record) देखने पर नहीं मिला। मैंने प्रधान आरक्षक गश्ती रामवल्लभ को घटनास्थल चलने के लिए तैयार होने को कहा।ग्राम गोल उन बहुत थोड़े से गांवों में से एक था जहाँ सड़क से पहुँचा जा सकता था।
IPS लिखते है कि एक आरक्षक मांधाता बस स्टैंड पर भेजा गया और खंडवा जाने वाली बस जब तैयार हो गई तो उसे वह थाना परिसर में लेकर आया और मैं और रामवल्लभ बस से रवाना हुए। रामवल्लभ के बैग में केस डायरी के काग़ज़, सादे काग़ज़ और कार्बन पेपर आदि थे। मान्धाता से 12 किमी चल कर मोरटक्का से इंदौर खंडवा मेन रोड पर बायीं और मुड़कर कुछ आगे हम लोग सनावद पहुँच गए। बस से उतर कर सामने वहाँ के थाने पहुँचे और दूसरी बस का इंतज़ार करने लगे। वहाँ के थाना प्रभारी, जिन्हें लोग भय से चट्टान सिंह कहते थे, ने हमें चाय पिलाई और फिर हम लोग पुनासा वाली बस से ग्राम गोल के लिए रवाना हो गए हैं।
IPS आगे लिखते है कि ग्राम गोल पहुँच कर पर देखा कि प्रार्थी पहले ही गाँव पहुँच चुका था। मैंने खाट पर बैठ कर संबंधित लोगों के बयान ख़ुद अपने हाथ से लिखे, घटनास्थल का नक़्शा बनाया और केस डायरी लिखी। इसके बाद मैं सोचने लगा कि चार बल्लियों की चोरी की विवेचना कैसे की जाए।पूछताछ से यह स्पष्ट था कि चोरी इस गाँव के किसी व्यक्ति द्वारा किए जाने की संभावना बहुत कम थी। निमाड़ की भीषण गर्मी की तपती धूप में वर्दी पहने हम और रामवल्लभ आस पास के कुछ गांवों में पूछताछ के लिए बैलगाड़ी पर बैठकर रवाना हुए। इन गांवों में चोरी का कोई सुराग़ नहीं मिला।हताश हम वापस ग्राम गोल लौट आये और उस रात वहीं बाहर चारपाई पर बिना बिस्तर के सो गए।
IPS लिखते है कि सुबह फिर बैलगाड़ी से पूरब दिशा में जंगलों के बीच बसे छोटे गाँवों की तरफ़ रवाना हुए।मैंने प्रार्थी को अपने साथ न चलने के लिए कह दिया। मेरी जाँच पड़ताल के तरीक़े से प्रधान आरक्षक राम वल्लभ के साथ- साथ प्रार्थी भी हतप्रभ था।जंगलों के बीच में बसे एक छोटे से गाँव में मुझे आशातीत सफलता मिली। एक गवाह ने बताया कि उसने चार राठिया भील आदिवासियों को कंधे पर एक- एक सागौन की बल्ली लेकर जाते हुए देखा था।उसका बयान लेकर उसकी बतायी हुई दिशा में हम लोग और आगे बढ़े और क़रीब चार किलोमीटर दूर जंगल के बीच कुछ ही झोपड़ियों के एक गाँव में थोड़ी जाँच पड़ताल के बाद हमें माल और मुल्ज़िम दोनों मिल गये। अभियुक्तों ने बिना किसी प्रयत्न के चोरी करना स्वीकार कर लिया।
IPS लिखते है कि घटना स्थल पर ही चोरी के माल की विधिवत ज़ब्ती बना कर बल्लियाँ बैलगाड़ी में लादकर विजयी भाव से हम लोग वापस ग्राम गोल की तरफ़ लौट पड़े।चारों अभियुक्त पैदल हमारे साथ चल रहे थे। ग्राम गोल से पहले ही कुछ टपरों के सामने हम लोगों ने एक और रात के लिए पड़ाव डाल दिया। अगली सुबह बैलगाड़ी से हम लोग कच्चे सीधे रास्ते से थाने के लिए रवाना हुए।थाने पर अभियुक्तों से पूछताछ करने पर चौंकाने वाले तथ्य सामने आए। इन चारों निरीह राठिया आदिवासियों ने प्रार्थी पटेल के यहाँ मज़दूरी की थी और उसने मज़दूरी के पैसे देने से इंकार कर दिया था। उसके जवाब में ये लोग उसकी चार बल्लियाँ उठाकर ले आए थे।
IPS लिखते है कि अभियुक्तों का मैंने गिरफ़्तारी पंचनामा बनाया और अगले दिन प्रकरण ग़ैर ज़मानती होने के कारण उन्हें आरक्षक के साथ केस डायरी सहित बस से खंडवा न्यायालय रवाना किया।परंपरा से हटकर मैंने साहस के साथ केस डायरी में लिखा कि विवेचक के तौर पर मैं इनकी ज़मानत की अनुशंसा करता हूँ और मजिस्ट्रेट ने अभियुक्तों को केवल मुचलके पर ज़मानत दे दी। इस चोरी के प्रकरण को सुलझाकर अपनी सफल विवेचना पर मैं प्रसन्न था। चोरी के माल की कम क़ीमत होने के कारण यह केस उस समय प्रचलित ओंकारेश्वर न्याय पंचायत के समक्ष गया।
IPS लिखते है कि न्याय पंचायत के सरपंच रोहित इन्दौर (Indore) के पढ़े लिखे थे।उनसे मैंने प्रकरण में सहानुभूति प्रदर्शित करने का निवेदन किया।ठोस साक्ष्य पर आधारित यह प्रकरण न्यायालय में सिद्ध हुआ और प्रत्येक अभियुक्त हैं पर 10 रुपये का जुर्माना किया गया।न्याय पंचायत कार्रवाई समाप्त होने तथा सजा दिलाने में सफल पुलिस कार्रवाई के बाद मैं थाने पर आ गया। थाना भवन ही मेरा निवास था।देर शाम को एक आरक्षक चारों अभियुक्तों को लेकर फिर थाने पर आया और चारों अभियुक्त मेरे सामने सिर लटकाकर खड़े हो गए। आरक्षक ने बताया कि न्याय पंचायत ने इन्हें वापस हिरासत में लेने का निर्देश दिया है क्योंकि इन्होंने जुर्माना नहीं दिया है।
IPS आगे लिखते है कि अभियुक्तों ने बताया कि उनके पास कोई पैसा है ही नहीं।मैंने रात में उनके खाने का इंतज़ाम किया और सुबह उन्हें 40 रुपये देकर न्याय पंचायत कार्यालय भेज दिया।अभियुक्त वापस थाने पर आए। इमरजेंसी के दिन थे इसलिए जब प्रार्थी को बुलाकर आदिवासियों की मज़दूरी के पैसे वापस करने के लिए कहा तो वह घबरा गया और उसने तुरंत मज़दूरी के पूरे पैसे वापस कर दिये।मेरे अभियुक्तों ने मुझे पैसे वापस करने का प्रयास किया जिसे मैंने मना कर दिया। जाने से पहले उन्होंने पहली बार सिर उठा कर मेरी आँखों में देखा और फिर शाम की मद्धिम रोशनी में थाने के पीछे की पहाड़ियों की ओर अंतर्ध्यान हो गये।