Sanitary Napkin Can Cause Cancer : अब तक यही मुहिम चल रही है कि हर लड़की को, स्त्री को माहवारी के वक्त सैनिटरी नैपकिन उपलब्ध हो सके। इसके लिए सरकारी अभियान चल रहे हैं, सामाजिक संगठन, निजी संस्थाएं और कई लोग व्यक्तिगत स्तर पर भी प्रयास कर रहे हैं। स्वास्थ्य और हाइजीन के लिए मासिक धर्म में कपड़ा या अन्य वस्तु हानिकारक सिद्ध हो सकती है इसीलिए गांवों और सुदूर इलाकों तक सैनिटरी नैकपिन या सैनिटरी पैड्स पहुंचाने के लिए कोशिशें हो रही हैं। लेकिन हाल ही में एक स्टडी के बााद आई खबर न सिर्फ चौंकाने वाली है, बल्कि आगाह भी करती है।
रिसर्च में सामने आए खतरनाक नतीजे
दिल्ली के एक गैर-सरकारी संगठन टॉक्सिक्स लिंक ने स्वीडिश एनजीओ इंटरनेशनल पॉल्युटेंट्स इलिमिनेशन नेटवर्क (IPEN) के साथ मिलकर एक अध्ययन किया। इसमें भारत में मिलने वाले सैनिटरी नैपकिन की जांच की गई। इसमें 10 ब्रांड के नैपकिन शामिल थे, जिनमें ऐसे ब्रांड्स भी शामिल है जिनके विज्ञापन टीवी, रेडियो, अखबारों में आते हैं और जो काफी मशहूर है। इन पैड्स में थैलेट (phthalates) और अन्य वोलेटाइल ऑर्गेनिक कंपाउंड (Volatile Organic Compounds) पाए गए हैं जिनसे कैंसर सेल्स बनने का खतरा होता है। इसी के साथ जैसे कारसिनोजन, रिप्रोडक्टिव टॉक्सिन, एंडोक्राइन डिसरप्टर्स और एलरजींस जैसे खतरनाक कैमिकल भी पाए गए हैं। इनके कारण जो हृदय संबंधी विकार, डायबिटीज, मस्तिष्क से जुड़ी समस्याएं, दमा और कैंसर जैसी बीमारियां का खतरा हो सकता है। इस स्टडी के नतीजे एक रिपोर्ट के रूप में ‘मेंस्ट्रल वेस्ट 2022’ शीर्षक से प्रकाशित किए गए हैं।
रिपोर्ट को गंभीरता से लेने की जरुरत
अब तक हम यही जानते समझते आए हैं कि सैनिटरी पैड न सिर्फ ब्लड एबजॉर्ब करते हैं, बल्कि हाइजिन के साथ एक साफ सुधरा अहसास भी देते हैं। इसपर लड़कियां सबसे ज्यादा भरोसा करती हैं। चाहें वो स्कूल कॉलेज जा रही हों, किसी शादी में, पार्टी में, सफर पर या फिर कोई इंटरव्यू देने..उनके बैग में एक नैपकिन हमेशा होता है। ये उनका सबसे बेस्ट फ्रेंड रहा है जो किसी भी आपात स्थिति में साथ देता है। लेकिन ये नई रिपोर्ट चिंता पैदा करने वाली है। चिंता स्वास्थ्य की तो है ही, साथ ही मानसिकता की भी है। अब भी कई स्थानों पर ये समझाना मुश्किल है कि आखिर लोग सैनिटरी नैपकिन पर पैसे क्यों खर्च करें। उन्हें इस बात के लिए राजी करना कि इससे आपके घरों की बच्चियों का स्वास्थ्य बहुत प्रभावित होता है, एक कठिन काम है। इसपर इस तरह की रिपोर्ट इस मानसिकता को और बढ़ावा दे सकती है कि पुराने जमाने का तरीका ही सही था, जिसमें कैसे भी कपड़े का इस्तेमाल कर लिया जाता था। इस रिपोर्ट के बारे में गंभीरता से सोचने और सरकारी स्तर पर कदम उठाने की जरुरत है क्योंकि ये मामला दस बीस या कुछ हजार नहीं, बल्कि लाखों लड़कियों/स्त्रियों की सेहत से जुड़ा है।