भोपाल| मध्य प्रदेश की कमलनाथ सरकार का पहला ही निर्णय, जिसे सरकार अति लोकप्रिय समझ कर जनता की वाहवाही लूटना चाह रही थी, सरकार के लिए सर दर्द बन गया है। दरअसल शपथ ग्रहण करने के तुरंत बाद कमलनाथ ने जिस पहली फाइल पर दस्तखत किए उसमें मध्य प्रदेश के किसानों का अल्पकालीन फसल ऋण दो लाख रू तक माफ करने की घोषणा की थी। इस घोषणा में ऋण माफी के लिए यह शर्त रखी गई थी कि जिन किसानों ने 31 मार्च 2018 तक ऋण लिया है, उन्हीं के ऋण माफ होंगे। अब पड़ोस की राजस्थान और छत्तीसगढ़ की कांग्रेस सरकारों ने भी ऋण माफी की घोषणा की है और इस ऋण माफी की घोषणा में कर्ज माफी के लिए नियत तिथि 30 नवंबर 2018 रखी गई है। इतना ही नहीं राजस्थान की सरकार ने तो सहकारी बैंकों के किसानों के लिए ऋण माफी की अधिकतम राशि अनलिमिटेड घोषित की है। अब ऐसे में सवाल यह है कि मध्य प्रदेश के किसान जिन्होंने 31 मार्च 2018 के बाद में फसल ऋण लिया वह इस योजना के लाभ से वंचित रहेंगे जबकि पड़ोस के राजस्थान और छत्तीसगढ़ के किसानों को इसका लाभ मिलेगा।
आने वाले समय में यह कमलनाथ की कांग्रेस सरकार के लिए सरदर्द साबित होगा और उन्हें निश्चित ही किसानों के रोष का सामना करना पड़ेगा। अब सवाल यह है कि आखिरकार कमलनाथ जैसे परिपक्व राजनेता के मुखिया होते ऐसी गलती हुई कैसे?
दरअसल पिछले 6 साल से कृषि विभाग के प्रमुख सचिव सचिव पद पर बैठे अधिकारी ने आनन-फानन में इस योजना का प्रारूप तैयार किया और मुख्यमंत्री के सामने अपने नंबर बढ़ाने के लिए इस फाइल पर दस्तखत भी करा लिए। अब इस योजना का विरोध धीरे-धीरे होने लगा है और आने वाले समय में इसका व्यापक विरोध होने की पूरी संभावना है। ऐसे में सवाल ये उठता है कि आखिरकार क्यों इस योजना को हड़बड़ी में लागू किया गया जिसके चलते कहीं न कहीं कमलनाथ सरकार की विश्वसनीयता पर सवालिया निशान खड़े हो रहे हैं।