ग्वालियर।अतुल सक्सेना।
अंग्रेजों की गुलामी से हम भले ही सैंकड़ों साल पहले आजाद हो गए हो लेकिन उनके दिए कुछ शब्द आज भी हमें गुलाम होने की याद दिलाते हैं। ग्वालियर में डाक्टरों और प्रशासनिक अफसरों के बीच खिंची तलवार में भी कदाचित अंग्रेजों द्वारा दिया गया शब्द ” सर” ही मूल में हैं। मंगलवार से शुरू हुआ मामला अभी शांत नहीं हुआ है समझा जा रहा है कि 28 नवम्बर को ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ डाक्टरों की प्रस्तावित मीटिंग में इस मसले का कोई हल निकले।
दरअसल ग्वालियर के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल जयारोग्य अस्पताल समूह,जिला चिकित्सालय मुरार सहित निजी अस्पतालों में पिछले कुछ महीनों से प्रशासनिक अधिकारियों का औचक निरीक्षण बढ़ गया है। कभी संभागीय आयुक्त, कभी कलेक्टर टी कभी एसडीएम निरीक्षण पर निकल पड़ते हैं। प्रशासनिक अमले का तर्क ये कि मरीजों की शिकायत आती हैं अस्पतालों में अव्यवस्थाएं रहती हैं। इसलिए मरीजों के हित को देखते हुए ये जरूरी है। लेकिन डॉक्टर इसे बेवजह की दखलंदाजी मानते हैं। ऐसा नहीं है कि डॉक्टर मरीजों का हित नहीं चाहते या वे खुद अव्यवस्थाओं को सुधारना नहीं चाहते लेकिन उन्हें प्रशासनिक मशीनरी के तरीके पर आपत्ति है। वरिष्ठ चिकित्सक और सहारा अस्पताल के संचालक डॉ एएस भल्ला कहना है कि कोई भी विधायक या एसडीएम आकर अधीक्षक की कुर्सी पर बैठ जाता है, हाइली क्वालिफाइड डॉक्टरों को मरीजों और जूनियर स्टाफ के सामने सार्वजनिक रूप से फटकार लगाता है और डॉक्टर उसे सर सर कहते नहीं थकता। जबकि कई बार उसे उस गलती के लिए भी फटकार मिलती है जो उसकी है ही नहीं। अब ये क्लिनिकल एस्टेब्लिश्मेंट एक्ट ला रहे है जो हमारे हिसाब से काला कानून है । नतीजा ये निकला कि लम्बे समय से थमा आ रहा डॉक्टरों के सब्र का बांध टूट गया और उन्होंने प्रशासनिक अफसरों के खिलाफ विरोध का एलान कर दिया। पिछले मंगलवार को मेडिकल कॉलेज में मीटिंग कर डॉक्टरों के सभी संगठनों ने एक राय होकर कहा कि हम अब किसी को सर नहीं कहेंगे,अफसरों के घर जाकर इलाज नहीं करेंगे, अपने कार्यक्रमों में उन्हें नहीं बुलायेंगे, यदि कोई निरीक्षण पर आया तो उसके साथ नहीं रहेंगे आदि आदि। बैठक में मेडिकल टीचर्स एसोसियेशन , इन्डियन मेडिकल एसोसियेशन, निजी नर्सिंग होम एसोसियेशन सहित सभी संगठन साथ थे । इस बैठक के अगले दिन प्रशासनिक अमले ने ताबड़तोड़ कार्रवाई करते हुए निजी अस्पतालों पर नोटिस चस्पा कर दिए कुछ को सील कर दिया और कुछ के रजिस्ट्रेशन रद्द कर दिए। उसके बाद एक बार सभी डॉक्टर एक साथ बैठे लेकिन कुछ मुद्दों पर सहमति नहीं होने से आइएमए बैक फुट पर आ गई और उसने खुद को अलग कर लिया। पूरे मामले पर एमटीए अध्यक्ष डॉ सुनील अग्रवाल इसे बदले की तानाशाही कार्रवाई कहते है। उन्होंने कहा कि हम किसी भी नोटिस का जवाब नहीं देंगे देखते हैं प्रशासन किस हद तक जाता है। हालांकि संभाग आयुक्त एमबी ओझा का कहना है कि ये कार्रवाई हाईकोर्ट के दिशा निर्देशों के तहत सभी संस्थानों पर की जा रही है । तलघर, पार्किन जैसे नियमों को जो नहीं मानेगा उसके खिलाफ कार्रवाई होगी। और लगातार निरीक्षण भी होंगे।
“सर” के पीछे छिपी लड़ाई की आखिर वजह क्या है?
दरअसल ग्वालियर का जयारोग्य अस्पताल अंचल का सबसे बड़ा अस्पताल है। यहाँ दूर दूर से मरीज आते हैं। भाजपा के 15 वर्षों के शासन के बाद कांग्रेस की सरकार बनी । यहाँ 1000 बिस्तरों वाला सुपर स्पेशलिटी अस्पताल निर्माणाधीन है। श्रेय लेने की होड़ के चलते इसके निरीक्षण का सिलसिला शुरू हुआ। अस्पताल से जुड़े सूत्रों की माने तो शुरुआत यहीं से हुई। जयारोग्य अस्पताल के लिए निरीक्षण के लिए कभी कांग्रेस महासचिव ज्योतिरादित्य सिंधिया ने तो कभी खाद्य मंत्री प्रद्युम्न सिंह तोमर, पशुपालन मंत्री लाखन सिंह,महिला एवं बाल विकास मंत्री इमरती देवी , विधायक मुन्नालाल गोयल, विधायक प्रवीण पाठक सहित संभाग आयुक्त एमबी ओझा, कलेक्टर अनुराग चौधरी और कई एसडीएम लगातार जाने लगे। बार बार निरीक्षणों से परेशान डॉक्टरों ने इसे अनावश्यक दखलंदाजी बताया और लामबंद हो गए। डॉक्टरों का तर्क है कि हम मरीजों की भी सुनें, नेताओं की भी सुने और अफसरों की भी सुनें और सबके पीछे सर, सर कहते भी घूमे ये अब सहनशीलता के बाहर है। डॉक्टरों के नजरिये से देखा जाए तो उनका कहना भी काफी हद तक सही है। किसी नेता या अधिकारी को सर क्यों कहा जाए ? ये अंग्रेजों के समय का दिया गया शब्द है जो गुलामी और बड़े छोटे होने का अहसास कराता है। यदि नाम के साथ जी लगाकर संबोधन किया जाए तो क्या बुराई है?
28 को सिंधिया लेंगे डॉक्टरों की बैठक, हो सकता है पटाक्षेप
ग्वालियर के विकास के लिए हमेशा चिंतित रहने वाले कांग्रेस महासचिव ज्योतिरादित्य सिंधिया तक अफसरों और डॉक्टरों के बीच का विवाद पहुँच गया है । वे 28 नवम्बर को अंचल के दौरे पर आ रहे हैं। ग्वालियर और शिवपुरी में कई कार्यक्रमों के बीच वे शाम सवा पांच बजे जयारोग्य अस्पताल पहुंचेंगे और यहाँ डॉक्टरों के साथ बैठक करेंगे। समझा जा रहा है कि इसी बैठक में प्रशासन के बड़े अधिकारियों की मौजूदगी में सिंधिया दोनों पक्षों से बात कर मामले का पटाक्षेप करा सकते हैं ।बहरहाल डॉक्टरऔर प्रशासनिक अफसर दोनों ही मरीजों की सुविधा देने के पक्षधर हैं लेकिन इसके तरीकों से डॉक्टरों के अहम् को ठेस पहुंची है और मामला संघर्ष तक पहुँच गया है। अब देखना ये होगा कि सिंधिया वो कौन सा फार्मूला अपनाते हैं जिसमें दोनों पक्ष सहमत हो जाएँ और सभी का सम्मान बना रहे।