World Environment Day: पेड़ों की कटाई और पर्यावरण का क्षरण समाज के लिए है चिंता का विषय

Pooja Khodani
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Praveen Kakkar

भोपाल, प्रवीण कक्कड़। World Environment Day: ग्लोबल वॉर्मिंग का बढ़ना हम सभी के लिए चिंता का विषय है। चिंता होना भी स्वभाविक भी है, क्योंकि जिस तरह से पिछले कुछ वर्षों में पेड़ों का क्षरण हुआ है, प्रकृति का शोषण हुआ है उससे आने वाले समय में यह ग्लोबल वॉर्मिंग के बढ़ते स्तर के रूप में एक बड़ी चुनौती बन जायेगा। आज सारा विश्व चिंतित है। धरती की सतह का तापमान बढ़ रहा है। 2050 तक यह 2 डिग्री सेंटीग्रेड बढ़ जाएगा और यह ग्लेशियर पिघलने लगेंगे।

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हमने जिस तेजी से विकास के प्रति दौड़ लगाई उसमें हमने बहुत कुछ पीछे छोड़ दिया। इनमें प्रकृति और पर्यावरण सबसे बड़े मुद्दे थे और अब आज साफ दिखाई दे रहा है कि हमारी नदियां हों, जंगल हों वायु, मिट्टी हो यह सब कहीं न कहीं खतरे में आ गयें हैं। यह सब प्रमाणित कर रहे हैं कि आज हमारे चारों तरफ जो कुछ भी हो रहा है यह सब इन्हीं कारणों से हैं। आज विश्व पर्यावरण दिवस पर हमें समझना होगा कि पेड़ों की कटाई और पर्यावरण का क्षरण समाज के लिए किस तरह चिंता का विषय है।

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बेहतर है कि हम अभी से ही पर्यावरण के प्रति सजक रहें क्योंकि अगर पर्यावरण स्वस्थ होगा तभी हम स्वस्थ होंगे। बेहतर पर्यावरण के बगैर स्वस्थ जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। मैं खुद एक जागरुक नागरिक होने के नाते पेड़ों और पर्यावरण के प्रति हमेशा चिंतित रहता हूं। जब कभी देखने में आता है कि इस जगह पर इतने पेड़ काट दिये गये, उस जगह पर इतने पेड़ काटने की प्रक्रिया निरंतर चल रही है। यह सब देख निश्चिततौर पर मन में एक आक्रोश का भाव आता है। आक्रोश होना भी चाहिए कि क्योंकि अगर हम विकास के नाम पर पेड़ों की कटाई इसी तेजी के साथ करते चले गये तो वो दिन दूर नहीं जब हम सभी के लिए पर्यावरण संरक्षण एक चुनौती के रूप में सामने खड़ा हो जाये।

नहीं भूला जा सकता वो संकटकाल

कोरोना काल का वो संकट भला कौन भूल सकता है जब पूरे देश में ऑक्सीजन के लिए हाहाकार मचा हुआ था। चारो तरफ अफरा-तफरी का माहौल था, एक-एक व्यक्ति के लिए ऑक्सीजन जुटा पाना किसी चुनौती से कम नहीं था। लेकिन हम सभी को इस पर विचार करना होगा कि प्राकृतिक सोर्सेस से कम होते ऑक्सीजन स्तर का जिम्मेदार कौन है ? कोरोना के संकटकाल में अगर हम ऑक्सीजन के लिए परेशान हुए तो इसका जिम्मेदार कौन है ? यकीन मानिए अगर आप थोड़ा भी इस पर विचार करेंगे तो आपको इसका जबाव स्वतः प्राप्त होगा कि ऑक्सीजन की कमी के जिम्मेदार कहीं न कहीं हम और हमारा समाज है।

हम दिन प्रतिदिन ऑक्सीजन के प्राकृतिक रिसोर्सेस का क्षरण करते जा रहे हैं, पेड़ों को नष्ट कर नई बिल्डिंग, इमारतें, मॉल, आदि का निर्माण कर रहे हैं। मैं किसी भी प्रदेश और शहर के विकास का विरोधी नहीं हूं लेकिन विकास के नाम पर पेड़ों का इस तरीके से क्षरण हो, मैं उसके पक्ष में बिल्कुल नहीं हूं। क्योंकि आज यदि हम और आप मिलकर इस तरह से पेड़ों की कटाई कर देंगे तो वो दिन दूर नहीं जब आने वाली पीढ़ियां ऑक्सीजन के प्राकृतिक रिसोर्सेस के लिए परेशान होंगी।

आखिर नये पेड़ लगाने की जिम्मेदारी किसकी

मैं किसी सरकार या पार्टी की बात नहीं कर रहा हूं, लेकिन पर्यावरण प्रेमी होने के नाते मेरे मन में केवल एक सवाल उठता है कि स्मार्ट सिटी के नाम पर जो भी पेड़-पौधों को काटा गया। उसके एवज में किस जमीन पर पेड़ लगाए गए। जिस समय पेड़ काटे जा रहे थे उस समय बहुत बड़ी बात हो रही थी कि इन पेड़ों को काटने के बाद नए स्थानों पर हजारों-लाखों पेड़ लगाए जाएंगे। लेकिन फिलहाल ऐसा कुछ होता दिखाई दे नहीं रहा है।

अगर कहीं होता भी है, पेड़ लगाए भी जा रहे हैं तो वे पेड़ देखभाल के अभाव में पूरी तरह से नष्ट हो रहे है। अगर हमें सही मायनें में पेड़ लगाने का कार्य और पर्यावऱण संरक्षण की दिशा में काम करना है तो हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि पेड़ लगाने की जिम्मेदारी किसकी हो।आज विश्व पर्यावरण दिवस पर हम सभी को संकल्प लेना चाहिए कि पर्यावरण संरक्षण के लिए हम सभी जिम्मेदार हैं। अपने आसपास जितने कार्य हम पर्यावरण संरक्षण के लिए कर सकते हैं, वे सभी करें।

पर्यावरण संरक्षण के लिए इन सुझावों को आप अपने जीवन में उतार सकते हैं-
1. घर की खाली जमीन, बालकनी, छत पर पौधे लगायें
2. ऑर्गैनिक खाद, गोबर खाद या जैविक खाद का उपयोग करें
3. कपड़े के बने झोले-थैले लेकर निकलें, पॉलिथीन-प्लास्टिक न लें
4. लोगों को बर्थडे, त्योहार पर पौधे गिफ्ट करें
5. वायुमंडल को शुद्ध करने के लिए पेड़ लगाएं, भले एक पेड़ लगाएं लेकिन उसे बड़ा करने की जिम्मेदारी लें।
6. प्लास्टिक के खाली डब्बों में सामान रखें या पौधे लगायें
7. कागज के दोनों तरफ प्रिन्ट लें, फालतू प्रिन्ट न करें


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खबर वह होती है जिसे कोई दबाना चाहता है। बाकी सब विज्ञापन है। मकसद तय करना दम की बात है। मायने यह रखता है कि हम क्या छापते हैं और क्या नहीं छापते। "कलम भी हूँ और कलमकार भी हूँ। खबरों के छपने का आधार भी हूँ।। मैं इस व्यवस्था की भागीदार भी हूँ। इसे बदलने की एक तलबगार भी हूँ।। दिवानी ही नहीं हूँ, दिमागदार भी हूँ। झूठे पर प्रहार, सच्चे की यार भी हूं।।" (पत्रकारिता में 8 वर्षों से सक्रिय, इलेक्ट्रानिक से लेकर डिजिटल मीडिया तक का अनुभव, सीखने की लालसा के साथ राजनैतिक खबरों पर पैनी नजर)

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