आजकल बिजी लाइफस्टाइल के कारण लोगों की नींद पूरी नहीं हो पाती है। जिसके कारण सुबह उठकर वह चिड़चिड़े और थके- थके से महसूस करते हैं। नींद पूरी नहीं हो पाने के कारण सुबह उठकर किसी से बात करने का मन नहीं होता। अकेले में समय बिताने का मन करता है। यह समस्या बिल्कुल आम हो चुकी है। कई लोग चैन की नींद सोने के लिए ड्रिंक करने लगते हैं, तो कुछ स्लीपिंग पिल्स का सहारा भी लेते हैं, लेकिन यह सब स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है। यही वजह है कि आज बड़ी संख्या में लोग अनिद्रा यानी इन्सोम्निया से जूझ रहे हैं। ज्यादातर लोग इसे बीमारी मानकर डॉक्टर से सलाह नहीं लेते, जबकि यह समस्या धीरे-धीरे गंभीर समस्या में बदल सकती है।
एक्सपर्ट्स का कहना है कि अगर नींद को नजरअंदाज किया गया, तो यह दिल, दिमाग और शरीर सभी पर बुरा असर डालती है। कभी-कभार नींद पूरी न होना सामान्य है। कोई परीक्षा पास हो, बड़ा प्रोजेक्ट सिर पर हो या घर की जिम्मेदारियां ऐसे में बेचैनी होना लाजमी है, लेकिन जब यही समस्या हफ्तों और महीनों तक जारी रहे तो यह चेतावनी है।
हेल्थ को होता है नुकसान
लोग दिनभर के स्ट्रेस और थकान को लेकर बिस्तर पर जाते हैं, लेकिन नींद नहीं आती। कोई करवटें बदलता रहता है, तो किसी की रात बार-बार नींद टूटने में गुजर जाती है। मोबाइल और लैपटॉप का ज्यादा इस्तेमाल, ऑफिस का प्रेशर, फाइनेंशियल टेंशन और अनहेल्दी लाइफस्टाइल इनसॉम्निया, मेंटल हेल्थ, शुरग जैसी बीमारियों को जन्म दे रहे हैं। इन दिनों लाइफस्टाइल में बहुत ही ज्यादा बदलाव हो चुका है। जिस कारण लोग कई सारी बीमारियों की शिकार हो जाते हैं।
पहला संकेत
अगर आप बिस्तर पर जाते ही बेचैन महसूस करते हैं। दिमाग हर तरफ की बातों को सोचने लगता है या पैरों को बार-बार हिलाने की इच्छा होती है, तो यह रेस्टलेस लेग सिंड्रोम या अनिद्रा का लक्षण हो सकता है। तनाव और एनीमिया जैसी समस्याएं इसे और बिगाड़ देती हैं। अगर लगातार तीन महीने तक नींद पूरी नहीं हो रही या लक्षण बिगड़ रहे हैं, जिससे डेली रुटिन प्रभावित हो रही है, तो डॉक्टर की सलाह लें।
दूसरा संकेत
लंच के बाद हल्की नींद आना सामान्य है, लेकिन दफ्तर में बैठकर सिर झुकना या गाड़ी चलाते समय नींद आना खतरनाक है। अक्सर यह स्लीप एप्निया की निशानी होती है। इस रोग में मरीज रात को खर्राटे लेते हैं, सांस टूटती है या हांफते हैं, लेकिन सुबह उन्हें याद नहीं रहता। दिनभर थकान, सिरदर्द और उनींदापन बना रहता है। कई मामलों में यह नार्कोलेप्सी भी हो सकती है, जिसमें अचानक स्लीप अटैक आता है। जिसमें कुछ सेकंड या मिनट के लिए नींद घेर लेती है।
तीसरा संकेत
7 से 8 के बीच-बीच में नींद टूटना सामान्य है, लेकिन अगर बार-बार लंबे अंतराल तक नींद टूटे, तो यह समस्या की ओर इशारा है। 65-80 वर्ष की आयु में तो खासतौर पर ब्लैडर की दिक्कत, तनाव और दर्द नींद बिगाड़ते हैं। इनका इलाज कराने से नींद अपने आप सामान्य हो जाती है।
साफ बताएं दिक्कतें
अगर आप नींद के डॉक्टर से मिलने की सोच रहे हैं, तो अपनी परेशानी साफ-साफ बताना जरूरी है। अचानक नींद आना, थकान, लगातार झपकी, खर्राटे या बेचैनी हर लक्षण को नोट कर लें। विशेषज्ञों के अनुसार, डॉक्टर के पास जाने से पहले कम से कम दो हफ्ते की स्लीप डायरी बनाएं। इसमें लिखें आप कब सोते हैं, कब उठते हैं, कौन सी दवा या सप्लीमेंट लेते हैं, कितना व्यायाम करते हैं, शराब या कैफीन का सेवन कितना होता है। यह जानकारी डॉक्टर को समस्या समझने और सही इलाज तय करने में मदद करेगी।
छिपी गंभीर बीमारियां
कई लोग मानते हैं कि नींद का टूटना उम्र बढ़ने के साथ सामान्य है। हालांकि, डॉक्टर चेतावनी देते हैं कि यह हमेशा सामान्य नहीं होता। पैरासोम्निया नाम की समस्या में लोग नींद में चलने, बात करने, खाने या यहां तक कि झगड़ने तक लग जाते हैं। इससे मोटापा, हाई ब्लड प्रेशर, डायबिटीज, किडनी की बीमारी या पार्किंसन जैसी न्यूरोलॉजिकल दिक्कतें हो सकती है।
(Disclaimer: यहां मुहैया सूचना सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है। MP Breaking News किसी भी तरह की मान्यता, जानकारी की पुष्टि नहीं करता है। किसी भी जानकारी या मान्यता को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें।)





