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Sun, Dec 7, 2025

आखिर क्यों देखा जाता है छलनी से पति का चेहरा? जानिए इस रस्म के पीछे की रहस्यमयी कहानी

Written by:Bhawna Choubey
करवाचौथ पर महिलाएं पूरे दिन निर्जला व्रत रखकर जब चांद का दीदार करती हैं, तो छलनी से चांद और फिर पति का चेहरा देखने की परंपरा निभाती हैं। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि इस छलनी का संबंध सिर्फ पूजा से नहीं, बल्कि एक गहरे आध्यात्मिक रहस्य से भी जुड़ा है?
आखिर क्यों देखा जाता है छलनी से पति का चेहरा? जानिए इस रस्म के पीछे की रहस्यमयी कहानी

करवाचौथ (Karwa Chauth) का नाम आते ही मन में सजने-संवरने, मेहंदी, साड़ी और चांद का दीदार करने का दृश्य सामने आ जाता है। इस दिन का सबसे जादुई पल होता है, जब सुहागिन महिलाएं चांद के उदय का इंतजार करती हैं, हाथों में जल से भरा लोटा, थाली में दीपक और एक छलनी लिए खड़ी रहती हैं।

जैसे ही चांद निकलता है, महिलाएं छलनी से पहले चांद और फिर पति का चेहरा देखती हैं। इसके बाद पति के हाथों से जल ग्रहण कर व्रत तोड़ा जाता है। यह दृश्य जितना खूबसूरत है, उतना ही गहरा इसका आध्यात्मिक और सांकेतिक अर्थ भी है। क्या आपने कभी सोचा है कि आखिर छलनी ही क्यों? कांच या किसी और वस्तु से क्यों नहीं देखा जाता? इसके पीछे की मान्यता जानकर आप भी हैरान रह जाएंगे।

छलनी से देखने की परंपरा कैसे शुरू हुई? (Karwa Chauth Rituals)

करवा चौथ की छलनी प्रथा के पीछे कई पौराणिक और सांस्कृतिक मान्यताएं जुड़ी हैं। कहा जाता है कि जब वीरवती नामक महिला ने पहली बार छलनी से चांद को देखा, तभी यह परंपरा प्रारंभ हुई। कथा के अनुसार, वीरवती ने अपने पति की लंबी उम्र के लिए करवाचौथ का व्रत रखा था। दिनभर भूख-प्यास से बेहाल होकर जब वह बेहोश होने लगी, तो उसके भाइयों ने पेड़ के नीचे दीपक जलाकर छलनी से दिखाया गया चांद दिखा दिया। वीरवती ने सोचा चांद निकल आया है और उसने व्रत तोड़ दिया।

परंतु उस क्षण उसके पति की मृत्यु हो गई। तब से यह माना गया कि छलनी केवल प्रतीकात्मक नहीं, बल्कि सावधानी और भक्ति का प्रतीक है जो यह याद दिलाती है कि पूजा में जल्दबाज़ी नहीं करनी चाहिए। छलनी का उपयोग तभी शुभ माना गया जब वीरवती ने अगले करवाचौथ पर पूरी श्रद्धा से इसी छलनी से चांद और पति को देखा, और उसके पति को जीवनदान मिला। तभी से छलनी से पति का चेहरा देखना सौभाग्य और दीर्घायु का प्रतीक बन गया।

जब स्त्री छलनी से पहले चांद और फिर पति को देखती है, तो यह दो आत्माओं के एक होने का प्रतीकात्मक क्षण होता है। चांद यहां “शिव” का प्रतीक है शीतलता, शांति और पवित्रता का; वहीं पति “जीवन” का प्रतीक है। छलनी के पार से देखना इस बात का संकेत है कि प्रेम को हमेशा धैर्य, संयम और विश्वास की छलनी से गुजारकर देखा जाए।

छलनी का वैज्ञानिक पहलू

अगर हम इसे वैज्ञानिक दृष्टिकोण से समझें तो छलनी से देखने का कारण काफी तार्किक है। करवाचौथ की रात जब चांद पूरा और तेज चमकता है, तो उसकी रोशनी सीधे आंखों पर पड़ने से रेटिना को नुकसान हो सकता है। छलनी के जाल के बीच से देखने पर प्रकाश बिखर जाता है और आंखों पर तेज असर नहीं पड़ता।

इसके अलावा, चांद को छलनी से देखने के बाद उसी छलनी से पति का चेहरा देखने की परंपरा भी दृष्टि-समन्वय से जुड़ी मानी जाती है। यह मन और भावनाओं को स्थिर करने का प्रतीक है कि पहले आप शांत मन से चांद (शिव) को देखें, फिर अपने जीवनसाथी को उसी दिव्य दृष्टि से देखें।

 छलनी से देखने से पूर्ण होता है व्रत

हिंदू धर्मग्रंथों और लोक परंपराओं में कहा गया है कि करवाचौथ का व्रत तब तक अधूरा माना जाता है, जब तक व्रती छलनी से चांद और पति का चेहरा न देखे। चांद को छलनी से देखना, यह भगवान चंद्रदेव को अर्घ्य देने से पहले शुद्ध दृष्टि का प्रतीक है। पति को छलनी से देखना, यह यह दर्शाता है कि स्त्री अपने पति को भगवान के समान पूजनीय मानती है। पति द्वारा व्रत खोलवाना इस पवित्र बंधन को पूर्ण करता है। कई ज्योतिषाचार्य मानते हैं कि छलनी का उपयोग करने से नकारात्मक ऊर्जा छान जाती है, और पति-पत्नी के जीवन में शांति और समृद्धि आती है।

करवाचौथ की आधुनिकता में छलनी की परंपरा अब भी क्यों अटूट है

भले ही आज के दौर में पूजा-पाठ की विधियां आधुनिक रूप ले चुकी हों, लेकिन छलनी का प्रतीक आज भी वही भाव रखता है। सोशल मीडिया पर जब महिलाएं चांद दिखा क्या? जैसे पोस्ट करती हैं, तो उनके हाथों में वही पारंपरिक छलनी झलकती है जो पीढ़ियों से चली आ रही श्रद्धा की निशानी है। इस समय पर महिलाएं अपने घरों की छतों पर पूजा की थाली लेकर चांद का इंतजार करती हैं। जैसे ही चांद दिखता है, दीपक जलाकर छलनी से देखा जाता है और जल अर्पण कर व्रत पूरा किया जाता है।