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Sat, Dec 13, 2025

MP हाईकोर्ट का फैसला, महिला भले शादीशुदा हो, उसे किसके साथ रहना है मर्जी पर निर्भर करता है

Written by:Bhawna Choubey
MP हाईकोर्ट ने इंदौर में सुनाया अहम फैसला, 25 साल की शादीशुदा महिला को माता-पिता की जिद के बावजूद अपने पति के साथ रहने की आज़ादी। न्यायालय ने याचिका खारिज कर महिला को सुरक्षा के साथ पति के सुपुर्द किया।

इंदौर हाईकोर्ट ने शुक्रवार को एक ऐसा फैसला सुनाया, जिसने महिलाओं की व्यक्तिगत स्वतंत्रता और अधिकारों को लेकर चर्चा छेड़ दी है। हाईकोर्ट ने कहा है कि कोई भी महिला, चाहे शादीशुदा ही क्यों न हो, वह अपनी मर्जी से यह तय कर सकती है कि वह किसके साथ रहेगी। 25 साल की एक शादीशुदा महिला को उसके माता-पिता जबरदस्ती अपने पास रोक रहे थे, जब महिला को कोर्ट में पुलिस सुरक्षा के साथ लाया गया।

उसने बताया कि वह अपने पति के साथ रहना चाहती है, लेकिन उसके माता-पिता उसे जबरन अपने पास रख रहे हैं। महिला के माता-पिता ने कहा कि लड़की की शादी पहले ही हो चुकी है, इसलिए उसे अपने पति के साथ रहना चाहिए। कोर्ट ने दोनों की बात सुनने के बाद फैसला दिया कि महिला वयस्क है और उसे किसी के साथ भी रहने का पूरा अधिकार है।

हाईकोर्ट ने ली अहम कार्रवाई

सवाई माधोपुर के धीरज नायक ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। उन्होंने दावा किया कि उनकी पत्नी को उसके माता-पिता जबरदस्ती अपने पास रख रहे हैं और वह उन्हें मिलने नहीं दे रहे। हाईकोर्ट ने 2 दिसंबर को महिला को पेश करने का आदेश दिया था, लेकिन माता-पिता ने महिला को कोर्ट में नहीं लाया। इसके बाद कोर्ट ने मंदसौर के सबसे वरिष्ठ ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट को भेजा, ताकि महिला का बयान दर्ज किया जा सके। महिला ने साफ कहा कि वह अपने धीरज के साथ रहना चाहती है और किसी भी दबाव के तहत नहीं रहना चाहती।

महिला की सुरक्षा का विशेष इंतजाम

महिला और उसके वकील की इंदौर तक सुरक्षित यात्रा के लिए कोर्ट ने मंदसौर एसपी और थाना पुलिस को जिम्मेदारी दी। इसके अलावा महिला के पति को भी इंदौर में सुरक्षा दी गई, क्योंकि उन्हें धमकियां मिल रही थीं। न्यायालय ने स्पष्ट किया कि यह कदम केवल महिला के अधिकारों की सुरक्षा के लिए उठाया गया है। कोर्ट ने कहा कि शादीशुदा महिला का अपने पति के साथ रहना उसका संवैधानिक अधिकार है। कोई भी धमकी या अवरोध इस अधिकार में हस्तक्षेप नहीं कर सकता, और ऐसा करना कानून के तहत दंडनीय है।

माता-पिता की जिद कानून के आगे टिक नहीं सकती

हाईकोर्ट ने यह साफ कर दिया कि माता-पिता की दलील या जिद किसी भी बालिग व्यक्ति की स्वतंत्रता के मुकाबले कोई महत्व नहीं रखती। अदालत ने कहा कि हर बालिग व्यक्ति को अपने जीवनसाथी के साथ रहने की पूरी आज़ादी है। जस्टिस प्रणय वर्मा और जस्टिस बिनोद कुमार द्विवेदी ने कहा कि महिला के व्यक्तिगत फैसले और स्वतंत्रता को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जानी चाहिए। किसी भी तरह की जबरदस्ती या दबाव डालना कानून के तहत अपराध है।