बांग्लादेश के मैमनसिंह में जुलाई 2025 को दिग्गज फिल्म निर्माता सत्यजीत रे के पैतृक घर को तोड़े जाने की घटना ने भारत और बांग्लादेश की साझा विरासत पर सवाल खड़े कर दिए हैं। बांग्लादेश प्रशासन का कहना है कि विध्वंस स्थानीय मंजूरी के साथ हुआ, जबकि ढाका के पुरातत्व विभाग ने पहले ही इस ऐतिहासिक स्थल की सुरक्षा की मांग की थी। भारत सरकार ने इस स्मारक की मरम्मत में मदद की पेशकश की है।
बढ़ रही है सांस्कृतिक असंवेदनशीलता
यह कोई पहली घटना नहीं है। फरवरी 2025 में शेख मुजीबुर रहमान के पैतृक घर का एक हिस्सा ढहा दिया गया था। वहीं जून में रवींद्रनाथ टैगोर के घर स्थित संग्रहालय को भी क्षति पहुंची। इन घटनाओं को लेकर बांग्लादेश में सांस्कृतिक विरासत की उपेक्षा को लेकर चिंता जताई जा रही है। शेख हसीना सरकार के जाने और मुहम्मद यूनुस के नेतृत्व में आई नई सरकार के बाद से भारत-बांग्लादेश संबंधों में तनाव देखने को मिल रहा है। भारत ने बांग्लादेश में हिंदी भाषी अल्पसंख्यकों पर हो रहे हमलों पर आपत्ति जताई है, जबकि ढाका ने इसे आंतरिक मामला बताते हुए भारत को हस्तक्षेप से दूर रहने की नसीहत दी है।
ममता बनर्जी की अपील: बंगाली संस्कृति को बचाइए
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने सत्यजीत रे के घर को ढहाए जाने की निंदा करते हुए कहा कि यह बंगाली संस्कृति की आत्मा पर चोट है। उन्होंने भारत और बांग्लादेश दोनों सरकारों से इस सांस्कृतिक विरासत की रक्षा की मांग की है। अल्पसंख्यक समुदायों पर हमले और जमात-ए-इस्लामी जैसे कट्टर संगठनों की वापसी ने बांग्लादेश में इस्लामीकरण की आशंका बढ़ा दी है। संविधान में धर्मनिरपेक्षता का उल्लेख होने के बावजूद इस्लाम को राज्यधर्म मान्यता दी गई है, जिससे सामाजिक तनाव बढ़ सकता है।
बांग्लादेश की दिशा क्या होगी?
बांग्लादेश की नई सरकार के आने के बाद देश में बहुलवाद और धर्मनिरपेक्षता के बीच संघर्ष गहराता जा रहा है। राष्ट्रीय सहमति आयोग की बैठकों में 38 से अधिक राजनीतिक दलों ने देश की बहुल सांस्कृतिक पहचान को बनाए रखने पर जोर दिया है। भारत और बांग्लादेश की साझा संस्कृति की जड़ें 1947 से पहले की बंगाली एकता में हैं। टैगोर, सत्यजीत रे और शेख मुजीब जैसे महान व्यक्तित्वों की विरासत दोनों देशों को जोड़ती है। लेकिन मौजूदा घटनाएं इस साझा इतिहास को मिटाने की ओर इशारा करती हैं।





