Pakistan News: सरबजीत के हत्यारे अंडरवर्ल्ड डॉन अमीर सरफराज की लाहौर में हुई मौत, अज्ञात हमलावरों ने गोलियों से भूना

सरबजीत सिंह को पाकिस्तान की कोर्ट ने लाहौर और फैसलाबाद में साल 1991 में हुए बम धमाके में आरोपी बनाकर सजा-ए-मौत की सजा सुनाई थी।

Shashank Baranwal
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Sarabjit

Pakistan News: पाकिस्तान से इस वक्त की बड़ी खबर सामने आई है। अंडरवर्ल्ड डॉन अमीर सरफराज की लाहौर में कुछ अज्ञात हमलावरों ने गोलियों से भूनकर हत्या कर दी। अंडरवर्ल्ड डॉन अमीन ने ही पाकिस्तान की जेल में बंद भारतीय नागरिक सरबजीत सिंह की हत्या की थी। अमीन ने सरबजीत की हत्या ISI के इशारे की थी। वहीं अमीर सरफराज की हत्या के बाद पाकिस्तान की पुलिस प्रशासन सक्रिय होकर हत्या करने वालों की तलाशी में जुट गई है।

लाहौर की कोट लखपत जेल में हुई थी सरबजीत की हत्या

भारतीय नागरिक सरबजीत सिंह की हत्या 2 मई 2013 को लाहौर सेंट्रल जेल (कोट लखपत जेल) में हुई थी। इस दौरान जेल में ही अमीर सरफराज ने ISI के इशारे पर ही पॉलीथीन से गला दबाकर और पीट-पीट कर हत्या कर दी थी।

पाकिस्तान की कोर्ट ने दी थी सजा-ए-मौत

गौरतलब है कि सरबजीत सिंह को पाकिस्तान की कोर्ट ने लाहौर और फैसलाबाद में साल 1991 में हुए बम धमाके में आरोपी बनाकर सजा-ए-मौत की सजा सुनाई थी। इस दौरान बम धमाके में करीब 10 लोगों की मौत हो चुकी। वहीं सरबजीत ने मार्च, 2006 में पाकिस्तान की सुप्रीम कोर्ट से दया याचिका की मांग की थी, जिसको कोर्ट ने खारिज कर दिया था।

अनजाने में पहुंच गए थे पाकिस्तान

आपको बता दें सरबजीत सिंह भारत और पाकिस्तान की सीमावर्ती इलाके पंजाब के तरनतारण जिले के भिखीविंड गांव के रहने वाले थे। 30 अगस्त साल 1990 में गलती से पाकिस्तान की सीमा में पहुंच गए थे। इस दौरान उनको पाकिस्तानी सेना गिरफ्तार कर लिया था।


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पत्रकारिता उन चुनिंदा पेशों में से है जो समाज को सार्थक रूप देने में सक्षम है। पत्रकार जितना ज्यादा अपने काम के प्रति ईमानदार होगा पत्रकारिता उतनी ही ज्यादा प्रखर और प्रभावकारी होगी। पत्रकारिता एक ऐसा क्षेत्र है जिसके जरिये हम मज़लूमों, शोषितों या वो लोग जो हाशिये पर है उनकी आवाज आसानी से उठा सकते हैं। पत्रकार समाज मे उतनी ही अहम भूमिका निभाता है जितना एक साहित्यकार, समाज विचारक। ये तीनों ही पुराने पूर्वाग्रह को तोड़ते हैं और अवचेतन समाज में चेतना जागृत करने का काम करते हैं। मशहूर शायर अकबर इलाहाबादी ने अपने इस शेर में बहुत सही तरीके से पत्रकारिता की भूमिका की बात कही है–खींचो न कमानों को न तलवार निकालो जब तोप मुक़ाबिल हो तो अख़बार निकालोमैं भी एक कलम का सिपाही हूँ और पत्रकारिता से जुड़ा हुआ हूँ। मुझे साहित्य में भी रुचि है । मैं एक समतामूलक समाज बनाने के लिये तत्पर हूँ।

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