अजब गजब : जब एक राजा ने पतलून पर कर दिए करोड़ों रुपए खर्च

Gaurav Sharma
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लेखक, अनु शर्मा अनुभूति। भारत पर जब अंग्रेजों का राज्य था उस समय हमारे देश में कई छोटी-छोटी रियासतें थी ‌‌। जिस समय की यह बात है उस समय यद्यपि रियासतों पर अधिकारिक रूप से अंग्रेजों का शासन चलता था। परंतु राजाओं की शानो शौकत और फिजूलखर्चियां ज्यों की त्यों कायम थी । कुछ रंगीन मिजाज के राजा अपनी जिद और सनक के लिए प्रसिद्द थे।

ऐसे ही एक राजा को जॉर्ज पंचम की ओर से द्वितीय गोलमेज सम्मेलन में शामिल होने का निमंत्रण भेजा गया। अधेड़ उम्र के राजा साहब पोलो, ब्रिज जुआ खेलने व शराब पीने में नंबर 1 थे धड़ल्ले से अंग्रेजी बोलते थे। निमंत्रण पाते ही वे इस उधेड़बुन में लग गए ऐसा क्या किया जाए जिससे इंग्लैंड में उनके नाम की धूम हो जाए? जब उन्होंने सुना की गांधीजी गोलमेज सम्मेलन में लंगोटी पहनकर जाएंगे तो उनके दिमाग में एक विचार आया क्यों ना एक ऐसी पतलून बनवाई जाए जो गांधीजी की लंगोटी से भी अधिक चर्चित हो जाए। फिर क्या था शुरू हुई राजा साहब की पतलून बनने की प्रक्रिया।

सोने चांदी के तार और चीन की महीन रेशम से बनारस के कारीगरों ने कपड़ा तैयार किया। मुंबई की व्हाइटवे लेडला फर्म से पतलून सिलवाई गई जिसे सिलने के लिए कारीगर फ्रांस से आया। दिल्ली के 12 कारीगरों ने कारचोबी और सलमें के सहारे मोती व जवाहरात जवाहर 50 संगीन धारी पहरेदारो के पहरे में 2 माह तक टांके । डेढ़ करोड़ की लागत से बनी वह पतलून राजा के खास गाह में शीशे के शोकेस में रखी गई। एक एटिकेट मिनिस्टर राजा को अंग्रेजी कायदे कानून सिखाने के लिए रखा गया।

यात्रा के लिए खास जहाज से जाते समय पतलून की सुरक्षा के लिए स्कॉटलैंड यार्ड से आठ सुरक्षाकर्मी बुलाए और अमेरिका की प्रसिद्ध महिला जासूस को इसकी रक्षा का चार्ज दिया गया।

कायदे कानून सिखाने वाले मंत्री ने कहा गांधीजी राजा के प्रतिष्ठित मेहमान है और आप उनके अधीन राजा हैं आप पतलून नहीं पहन सकते । हम गांधी जी को मना नहीं कर सकते इंग्लैंड, एक सभ्य देश है, वहां सब एक सी ही पोशाक पहनते हैं। इतना पैसा खर्च कर बनवाई पतलून के ना पहन पाने पर उनके इंग्लैंड जाने का पूरा उत्साह ठंडा पड़ गया।

फिर क्या था लंदन से लौटते ही उन्होंने एक भव्य दरबार का आयोजन किया, राजा ,महाराजा व अंग्रेज अफसरों को बुलाया गया। बनारस के भांड दिल्ली के नक्काल व वेश्याएं और बड़े-बड़े कलाकार बुलाए गए शिकार के प्रोग्राम बने।

सभी मेहमानों के आने पर दरबार से 1 दिन पहले राजा ने पतलून पहन कर देखी, पर यह क्या उसमें एक सल आ रही थी। रियासत के दर्जी बुलाए गए पर उन्होंने उसे सही करने में असमर्थता व्यक्त कर दी।

राजा साहब ने प्रधानमंत्री को सूचित कर दरबार अनिश्चित काल के लिए स्थगित कर दिया और मुंबई तार देकर उस कारीगर को हवाई जहाज से तुरंत बुलाया। इस बीच मेहमानों की आवोभगत ,नाच रंग ,खाना-पीना चलता रहा और कारीगर आ गया, परंतु इस बीच राजा साहब शेर के शिकार के लिए चले गए थे। 12 दिन बाद अचानक उन्हें ध्यान आया तब वे शिकार से लौटकर आए।

राजा साहब ने पतलून पहनकर दिखाई। कारीगर ने तुरंत जेब से कैची निकालकर एक बटन काटकर उसे बिल्कुल जरा सा खिसका कर लगा दिया। कारीगर का बिल उस जमाने में कुल मिलाकर 22000 का था राजा साहब ने खुश होकर उसे दुगना मेहनताना दिया।

आखिर दरबार का दिन आ ही गया राजा साहब ने पतलून पहनी हर खासो आम की जबान पर केवल पतलून की ही चर्चा थी। राजा साहब शान से पतलून पहने सिंहासन पर विराजमान थे । अंततः उनकी इच्छा पूर्ण हो ही गई। दरबार के आयोजन पर भी लाखों रुपए का खर्च आया । इस तरह एक सनकी राजा ने केवल मन के एक छलावे के लिए प्रजा की मेहनत की कमाई के करोड़ों रुपए खर्च कर डाले।


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पत्रकारिता पेशा नहीं ज़िम्मेदारी है और जब बात ज़िम्मेदारी की होती है तब ईमानदारी और जवाबदारी से दूरी बनाना असंभव हो जाता है। एक पत्रकार की जवाबदारी समाज के लिए उतनी ही आवश्यक होती है जितनी परिवार के लिए क्यूंकि समाज का हर वर्ग हर शख्स पत्रकार पर आंख बंद कर उस तरह ही भरोसा करता है जितना एक परिवार का सदस्य करता है। पत्रकारिता मनुष्य को समाज के हर परिवेश हर घटनाक्रम से अवगत कराती है, यह इतनी व्यापक है कि जीवन का कोई भी पक्ष इससे अछूता नहीं है। यह समाज की विकृतियों का पर्दाफाश कर उन्हे नष्ट करने में हर वर्ग की मदद करती है।इसलिए पं. कमलापति त्रिपाठी ने लिखा है कि," ज्ञान और विज्ञान, दर्शन और साहित्य, कला और कारीगरी, राजनीति और अर्थनीति, समाजशास्त्र और इतिहास, संघर्ष तथा क्रांति, उत्थान और पतन, निर्माण और विनाश, प्रगति और दुर्गति के छोटे-बड़े प्रवाहों को प्रतिबिंबित करने में पत्रकारिता के समान दूसरा कौन सफल हो सकता है।

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