Holi 2025: रंगों के उत्सव को कैसे मिला ‘होली’ नाम, जानें इससे जुड़ी अनोखी कहानियां

देशभर में होली के दौरान अलग-अलग परंपराओं को निभाया जाता है। मथुरा वृंदावन से लेकर राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र सभी जगह होली मनाने का तरीका अलग-अलग है। चलिए आज हम आपको कुछ पौराणिक कहानियां बताते हैं।

Diksha Bhanupriy
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होली का त्यौहार गमों को भूलकर जिंदगी में नए रंग घोलने का समय होता है। ये ऐसा त्यौहार है जब दुख और दुश्मनी को भूल सभी एक दूसरे को प्यार से गले लगा लेते हैं। होली पर उड़ने वाले अलग-अलग रंग हमें यह बताते हैं कि जीवन भी ऐसे ही सुख और दुख के रंगों से भरा हुआ है। देश भर में इस साल 14 मार्च को होली का त्योहार धूमधाम के साथ मनाया जाएगा।

होली का त्योहार बुराई पर अच्छा है की जीत का भी प्रतीक है और राधा कृष्ण की प्रेम कहानी की याद भी दिलाता है। होली का त्यौहार तो आप हमेशा ही मानते आए होंगे। इस दिन सभी रंगों की मस्ती में डूबे अपने परिवार तथा दोस्तों के साथ मौज मस्ती करते नजर आते हैं। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है की होली का नाम कैसे पड़ा होगा। अगर नहीं तो चलिए आज हम आपको इस त्योहार से जुड़ी परंपराओं और पौराणिक कहानियों से रूबरू करवाते हैं।

किया गया था होलिका दहन

फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाने वाले होली के त्योहार से एक पौराणिक कथा जुड़ी हुई है। इस कथा के मुताबिक बहुत पहले एक हिरण्यकश्यप नाम का राजा हुआ करता था। उसे अपने पद और बल का इतना अहंकार हुआ कि वह खुद को भगवान मान बैठा। जो उसे भगवान नहीं मानता था वह उन पर अत्याचार करता था। एक समय ऐसा भी आया जब उसी के बेटे प्रहलाद में भगवान विष्णु की भक्ति शुरू की। राजा को यह बात बिल्कुल भी हजम नहीं हुई और उसने अपने ही बेटे को खत्म करने के तमाम प्रयास किए। हर बार भगवान विष्णु की कृपा से प्रहलाद की जान बच जाया करती थी।

यह देखकर हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका को बुलाया। होलिका को कभी भी ना जलने का वरदान था। हिरण्यकश्यप ने आदेश दिया की होलिका प्रहलाद को अपनी गोद में लेकर बैठेगी और आग लगाई जाएगी जिससे प्रहलाद का अंत होगा। राजा के आदेश के बाद वैसा ही किया गया। इस समय भगवान विष्णु ने अपना चमत्कार दिखाया और कभी ना जलने वाली होलिका जलकर भस्म हो गई और प्रहलाद का बाल भी बांका नहीं हुआ। इस तरह से होलिका के अंत के बाद होली का पर्व और होलिका दहन की परंपरा शुरू हुई।

राधा कृष्ण के प्रेम का प्रतीक

वैसे तो होली देश भर में खेली जाती है, लेकिन मथुरा वृंदावन में इसका अलग ही आनंद देखने को मिलता है। यहां के मंदिरों में पहले से ही रंगोत्सव की शुरुआत हो जाती है जो होली के बाद तक चलते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि राधा कृष्ण का होली से गहरा नाता रहा है। दरअसल कृष्ण के सांवले स्वरूप की वजह से सभी उन्हें राधा जी के गोरा होने की बात कह कर चिढ़ाया करते थे। भगवान कृष्ण को भी यह चिंता थी कि उनकी त्वचा सांवली है जबकि राधा गोरी हैं। अपने पुत्र की चिंता सुनकर माता यशोदा ने यह कह दिया कि बेटा तू भी राधा के गालों पर रंग लगा दे। बस फिर क्या था इसी समय से होली खेलने की परंपरा की शुरुआत हो गई।

क्या सिखाती है होली (Holi 2025)

रंगों से भरा होली का त्यौहार हमें यह सिखाता है कि जीवन के मुश्किल हमें मिलने वाली खुशी से बड़ी नहीं होती। बुराई चाहे लाख कोशिश कर ले लेकिन जीत हमेशा अच्छाई की ही होती है। यह त्यौहार किसानों से भी जुड़ा हुआ है क्योंकि इस समय वह नई फसल का स्वागत करते हैं।

देशभर में होली के अलग रंग

देशभर के अलग-अलग इलाकों में होली से अलग-अलग तरह की परंपराएं जुड़ी हुई है। मथुरा वृंदावन में रंगों से लेकर फूलों तक की होली खेली जाती है। बरसाना में लठमार होली होती है तो मथुरा वृंदावन में भी इसका आयोजन किया जाता है। राजस्थान में रॉयल होली, केरल में मंजुल कुली होली और पंजाब में होला मोहल्ला होता है। इस दिन लोग गुजिया और ठंडाई का आनंद लेते हैं।


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"पत्रकारिता का मुख्य काम है, लोकहित की महत्वपूर्ण जानकारी जुटाना और उस जानकारी को संदर्भ के साथ इस तरह रखना कि हम उसका इस्तेमाल मनुष्य की स्थिति सुधारने में कर सकें।” इसी उद्देश्य के साथ मैं पिछले 10 वर्षों से पत्रकारिता के क्षेत्र में काम कर रही हूं। मुझे डिजिटल से लेकर इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का अनुभव है। मैं कॉपी राइटिंग, वेब कॉन्टेंट राइटिंग करना जानती हूं। मेरे पसंदीदा विषय दैनिक अपडेट, मनोरंजन और जीवनशैली समेत अन्य विषयों से संबंधित है।

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