Jonathon Keats Copyrighted His Brain : कल्पना कीजिए आप एक गैलरी में खड़े हैं..जहां न कोई पेंटिंग है, न मूर्ति बिक्री के लिए रखी है। यहां सजा हुआ है एक इंसान का दिमाग। जी हाँ..हम आपके किसी फिल्म या सीरियल की कहानी नहीं सुना रहे बल्कि एकदम असली बात बता रहे हैं। ये कहानी है अमेरिकी अवधारणात्मक कलाकार (Conceptual Artist) जोनाथन कीट्स की, जिन्होंने अपने मस्तिष्क को “कला का नायाब नमूना” घोषित कर इसका कॉपीराइट करवा लिया।
बात सिर्फ कॉपीराइट तक ही सीमित नहीं रही। उन्होंने सैन फ्रांसिस्को की मॉडर्निज्म गैलरी में इसकी 6 अरब न्यूरॉन्स की नीलामी भी शुरू कर दी। अब सवाल ये उठता है कि कोई अपने ही दिमाग को कैसे बेच सकता है ? आइए विस्तार से जानते हैं इस अजीबोगरीब लेकिन सच्ची कहानी के बारे में।

इस कलाकार ने कराया अपने दिमाग का ‘कॉपीराइट’
जोनाथन कीट्स, एक प्रसिद्ध अमेरिकी अवधारणात्मक कलाकार हैं। उन्होंने 2003 में अपने मस्तिष्क को एक “बौद्धिक मूर्तिकला” घोषित करते हुए उसका कॉपीराइट करवाया। अमेरिकी कॉपीराइट ऑफिस में कीट्स ने अपने को दिमाग “Intellectual Sculpture” के रूप में पंजीकृत करवाया और इसका पूर्ण अधिकार अपने पास सुरक्षित कर लिया। उनका कहना था कि अपने विचारों और अनुभवों के माध्यम से उन्होंने अपने मस्तिष्क को गढ़ा है और इसलिए ये पूरी तरह उनकी कलाकृति है जिसपर उनका पूरा स्वामित्व है। इस कॉपीराइट के तहत उनके दिमाग पर उनका अधिकार उनकी मृत्यु के 70 साल बाद तक रहेगा..जैसा कि अमेरिका के कॉपीराइट कानून में है।
अपने ही मस्तिष्क की नीलामी
बात यहीं खत्म नहीं हुई और कीट्स यहीं नहीं रुके। उन्होंने इसे एक कदम आगे ले जाकर अपने दिमाग के न्यूरॉन्स को “फ्यूचर्स कॉन्ट्रैक्ट्स” के रूप में बेचने का ऐलान कर दिया। इसका मकसद कला की सीमाओं को तोड़ना और यह सवाल उठाना कि क्या मानव चेतना भी बौद्धिक संपत्ति हो सकती है? कीट्स ने सैन फ्रांसिस्को की मॉडर्निज्म गैलरी में अपने मस्तिष्क के 6 अरब न्यूरॉन्स की नीलामी की योजना बनाई। उन्होंने “फ्यूचर्स कॉन्ट्रैक्ट्स” के माध्यम से 10 डॉलर में 10 मिलियन न्यूरॉन्स के options बेचे। आसान भाषा में समझें तो 10 डॉलर में दिमाग का एक टुकड़ा बेचा जा रहा था। यदि सभी न्यूरॉन्स बिक जाते तो 60,000 डॉलर जुटाए जा सकते थे..जिसमें से आधा गैलरी को और आधा उनके विचारों को पोषित करने के लिए उपयोग किया जाना था। हालांकि, ये नीलामी असल में दिमाग के हिस्सों को बेचना नहीं था..बल्कि एक प्रतीकात्मक कला प्रदर्शन था। खरीदारों को कोई वास्तविक “न्यूरॉन्स” नहीं मिले; यह एक कॉन्ट्रैक्ट था जो कीट्स के दिमाग के भविष्य में हिस्सेदारी का दावा करता था। यह पूरी तरह से अवधारणात्मक (conceptual) था।
एक प्रतिभाशाली कलाकार का जीनियस प्रयोग
हालांकि ये पूरी योजना एक कलात्मक प्रयोग था लेकिन कीट्स ने इसे सिर्फ हंसी-मज़ाक के लिए नहीं किया, बल्कि कॉपीराइट कानून, बौद्धिक संपत्ति और मानव चेतना पर ये एक कलाकार की गहरी टिप्पणी भी थी। एक मशहूर कला समीक्षक ने इसे “21वीं सदी का सबसे चतुर प्रयोग” करार दिया। वहीं, एक आलोचक ने टिप्पणी की कि “अगर दिमाग कॉपीराइट हो सकता है तो अगला कदम क्या? मेरी नींद के सपनों का पेटेंट?” कीट्स की इस परियोजना ने कला जगत से लेकर आम लोगों तक में हलचल मचा दी थी। तो अगर अगली बार कोई आपके भी किसी विचार या क्षमता या आइडिया की प्रशंसा करता है तो आप भी याद रखिएगा कि ये आपकी बौद्धिक संपदा है और इसपर कभी कोई जीनियस कॉपीराइट भी करवा चुका है।