बैतूल की अजब-गजब परंपरा : कांटो पर लोटते है लोग, वजह कर देगी हैरान!

बैतूल, वाजिद खान। इक्कीसवीं सदी में कोई कहे कि लोग सत्य की परीक्षा कांटो पर लेट कर देते है तो आपको आश्चर्य होगा लेकिन ये हकीकत है और ये हकीकत मध्य प्रदेश के बैतूल में देखने को मिलती है, जहां लोग सत्य की परिक्षा कांटो के बिस्तर पर लेट कर देते है । अगर हमे अपनी उंगली में एक काँटा भी गड़ जाये तो हम कराह उठते है, लेकिन आज हम आपको ऐसे लोगों के बारे में बताने जा रहे है जो कांटो से गुलाब की तरह  खेलते है | कांटो को सिर्फ अपने हाथों से पकड़ते ही नहीं बल्कि कांटो पर लोटते है, कांटो पर सोते है और अपना  आसन जमाते है | हम बात कर रहे है मध्य प्रदेश के बैतूल के रज्जढ समुदाय की जहां के लोग अपने आप को पांडवों के वंशज मानते है|  पांडवो के ये वंशज हर साल अगहन मास में जश्न मानते है, दुःख जताते है और कांटो पर लोटते है ।

कांटो से बनाया जाता है बिस्तर


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Gaurav Sharma

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पत्रकारिता पेशा नहीं ज़िम्मेदारी है और जब बात ज़िम्मेदारी की होती है तब ईमानदारी और जवाबदारी से दूरी बनाना असंभव हो जाता है। एक पत्रकार की जवाबदारी समाज के लिए उतनी ही आवश्यक होती है जितनी परिवार के लिए क्यूंकि समाज का हर वर्ग हर शख्स पत्रकार पर आंख बंद कर उस तरह ही भरोसा करता है जितना एक परिवार का सदस्य करता है। पत्रकारिता मनुष्य को समाज के हर परिवेश हर घटनाक्रम से अवगत कराती है, यह इतनी व्यापक है कि जीवन का कोई भी पक्ष इससे अछूता नहीं है। यह समाज की विकृतियों का पर्दाफाश कर उन्हे नष्ट करने में हर वर्ग की मदद करती है। इसलिए पं. कमलापति त्रिपाठी ने लिखा है कि," ज्ञान और विज्ञान, दर्शन और साहित्य, कला और कारीगरी, राजनीति और अर्थनीति, समाजशास्त्र और इतिहास, संघर्ष तथा क्रांति, उत्थान और पतन, निर्माण और विनाश, प्रगति और दुर्गति के छोटे-बड़े प्रवाहों को प्रतिबिंबित करने में पत्रकारिता के समान दूसरा कौन सफल हो सकता है।