प्राचीन भारतीय काव्य का आधुनिक विज्ञान से क्या है नाता, जानिए श्लोक, ऋचाओं और कविताओं में छिपी वैज्ञानिक दृष्टि

भारतीय काव्य में वैज्ञानिक तथ्य अक्सर प्रतीकात्मक और दार्शनिक रूप में छिपे होते हैं जो प्रकृति, ब्रह्मांड और मानव जीवन को दर्शाते हैं। कालिदास का मौसम विज्ञान, वेदों का खगोलशास्त्र, गीता का मनोविज्ञान और तुलसीदास की पर्यावरणीय चेतना आधुनिक विज्ञान के साथ आश्चर्यजनक रूप से मेल खाते हैं।

कहा जाता है साहित्य, विशेषकर काव्य में कल्पना और भावात्मकता का आधिक्य होता है। लेकिन जरूरी नहीं कि हमेशा ऐसा ही हो। हमारे शास्त्रों, पुराने ग्रंथों और महाकाव्यों में ऐसे कई उदाहरण मिलते हैं..जहां सौंदर्य के साथ-साथ गूढ़ वैज्ञानिक सोच भी दिखाई देती है। इन रचनाओं में भाव तो है ही, साथ में ध्वनि-विज्ञान, खगोलशास्त्र, मौसम विज्ञान, वनस्पति विज्ञान और यहां तक कि न्यूरोसाइंस तक के संकेत मिलते हैं।

“न हि ज्ञानेन सदृशं पवित्रमिह विद्यते” यह भगवद्गीता का श्लोक हो या कालीदास के श्लोकों में प्रकृति वर्णन, भारतीय काव्यशास्त्र सिर्फ भावनाओं का नहीं, बल्कि विज्ञान का भी अद्भुत दस्तावेज़ है। आज कई वैज्ञानिक शोध उन तथ्यों की पुष्टि कर रहे हैं, जिन्हें हमारे कवियों और ऋषियों ने हजारों साल पहले शब्दों में पिरो दिया था।

प्राचीन काव्य परंपरा का विज्ञान से संबंध

भारतीय काव्य और विज्ञान का संगम एक आकर्षक विषय है। प्राचीन भारतीय साहित्य..विशेष रूप से संस्कृत काव्य में अक्सर प्रकृति, ब्रह्मांड और मानव जीवन के गहन अवलोकन छिपे होते हैं जो आधुनिक वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी प्रासंगिक हो सकते हैं। आइए आज हम कुछ ऐसे ही काव्यांश, श्लोक और उद्धरण के बारे में जानते हैं।

1. कालिदास का “मेघदूतम्” और मौसम विज्ञान

महाकवि कालीदास का “मेघदूतम्” सिर्फ प्रेमदूत कथा नहीं, बल्कि उसमें हवाओं की दिशा, बादलों की गति और जलवाष्प के संचार की वैज्ञानिक झलक भी मिलती है। “मेघदूतम्” एक लघु काव्य है, जिसमें एक यक्ष बादल के माध्यम से अपनी प्रियतमा को संदेश भेजता है। कालिदास इसमें बादल के गठन, हवाओं की दिशा, और वर्षा चक्र का वर्णन करते हैं। उदाहरण के लिए, मेघ के मार्ग का वर्णन (हिमालय से दक्षिण की ओर) मानसून की गति और दिशा से मेल खाता है। वे लिखते हैं:
 “उत्सङ्गे वा मलयमरुतो मञ्जुलं पञ्चमं ते
 गायन्ती सौम्य मृदु कुरुते मेघतुल्यं निनादम्।”
यहाँ मलय पर्वत की हवाएँ और बादल का संगीतमय प्रभाव मौसम के बदलाव और मानसून की प्रक्रिया को दर्शाता है। यह मौसम विज्ञान से जुड़ा है, जहां मानसून की हवाएं भारत में वर्षा लाती हैं। कालिदास का अवलोकन हवा के दबाव और बादल गठन की प्रक्रिया को सूक्ष्म रूप से दर्शाता है, जो आज मौसम मॉडलिंग में अध्ययन किया जाता है।

2. वेदों और उपनिषदों में खगोलीय अवलोकन

ऋग्वेद और उपनिषदों में कई काव्यात्मक छंद ब्रह्मांड, सूर्य, चंद्र, और नक्षत्रों का वर्णन करते हैं, जो खगोलशास्त्र से जुड़े हैं।
उदाहरण के लिए ऋग्वेद (1.164.48) में सूर्य को “विश्व का नेत्र” कहा गया है:
“सूर्यो विश्वेन संनादति येन सर्वं प्रभासति”
यह सूर्य को पृथ्वी के जीवन का आधार बताता है, जो प्रकाश और ऊर्जा का स्रोत है। यह सूर्य की भूमिका को दर्शाता है, जो फोटोसिंथेसिस के लिए आवश्यक है। आधुनिक विज्ञान में हम जानते हैं कि सूर्य की ऊर्जा पृथ्वी पर जीवन का आधार है और यह काव्य इस तथ्य को सहज रूप से व्यक्त करता है।

3. भगवद्गीता और मनोविज्ञान

भगवद्गीता, जो काव्यात्मक और दार्शनिक दोनों है, में मन और चेतना के बारे में गहन अंतर्दृष्टि है जो आधुनिक मनोविज्ञान से जुड़ती है। उदाहरण के लिए  गीता (6.16-17) में संतुलित जीवन की बात है:
“नात्यश्नतस्तु योगोऽस्ति न चैकान्तमनश्नतः।
न चातिस्वप्नशीलस्य जाग्रतो नैव चार्जुन।”
इसका अर्थ है न अति खाने, न उपवास करने, न अति सोने, न जागने से योग सिद्ध होता है। यह संतुलित जीवनशैली की बात करता है जो आधुनिक न्यूरोसाइंस और मनोविज्ञान में मानसिक स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है। जैसे कि नींद और आहार का संतुलन दिमागी काम और स्ट्रेस मैनेजमेंट के लिए जरूरी है।

4. तुलसीदास की रामचरितमानस और पर्यावरणीय चेतना

रामचरितमानस में प्रकृति का सुंदर चित्रण है जो पर्यावरण संरक्षण की ओर इशारा करता है। उदाहरण के लिए अरण्यकांड में वन, नदियों, और जीव-जंतुओं का वर्णन करते हुए तुलसीदास प्रकृति के प्रति श्रद्धा दर्शाते हैं:
“कानन सुंदर सैल सिखरनि, सरिता सुद्ध सलिल सुनदर।”
यहाँ प्रकृति की शुद्धता और सुंदरता का वर्णन है।
यह पर्यावरणीय संतुलन और जैव-विविधता के महत्व को दर्शाता है। आधुनिक पर्यावरण विज्ञान में वनों और नदियों का संरक्षण जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए महत्वपूर्ण है।

5. सूरदास और मानव शरीर का चित्रण

सूरदास की भक्ति कविताओं में कृष्ण-लीला के साथ मानव शरीर और भावनाओं का अद्भुत वर्णन है। उदाहरण के लिए सूरदास की पंक्तियां, जैसे “नैनन के तारे, मुरली की धुन“, मानव इंद्रियों की शक्ति को दर्शाती हैं। यह मानव संवेदनाओं और न्यूरोलॉजिकल प्रतिक्रियाओं को सूक्ष्म रूप से दर्शाता है। जैसे कि, संगीत (मुरली की धुन) मस्तिष्क में डोपामाइन रिलीज करता है जो आनंद का अनुभव कराता है जैसा कि आधुनिक न्यूरोसाइंस भी बताता है।

(डिस्क्लेमर : ये लेख विभिन्न स्त्रोतों से प्राप्त जानकारियों पर आधारित है। हम इसकी पुष्टि नहीं करते हैं।)


About Author
Shruty Kushwaha

Shruty Kushwaha

2001 में माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय भोपाल से पत्रकारिता में स्नातकोत्तर (M.J, Masters of Journalism)। 2001 से 2013 तक ईटीवी हैदराबाद, सहारा न्यूज दिल्ली-भोपाल, लाइव इंडिया मुंबई में कार्य अनुभव। साहित्य पठन-पाठन में विशेष रूचि।

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