हर रोग की जड़ है त्रिदोष का असंतुलन, आयुर्वेद में बताए गए हैं वात, पित्त और कफ को संतुलन में रखने के आसान उपाय

बदलती जीवनशैली, अनियमित दिनचर्या और मानसिक तनाव के इस दौर में आयुर्वेद एक बार फिर से लोगों के जीवन में लौट रहा है। आधुनिक चिकित्सा पद्धति जहां बीमारी के लक्षणों पर केंद्रित होती है, वहीं आयुर्वेद शरीर, मन और आत्मा के संतुलन को बनाए रखने पर ज़ोर देता है। इसका मूल उद्देश्य है “स्वस्थस्य स्वास्थ्य रक्षणं, आतुरस्य विकार प्रशमनं।” यानी..स्वस्थ व्यक्ति का स्वास्थ्य बनाए रखना और बीमार व्यक्ति के रोगों को दूर करना।

आयुर्वेद के अनुसार हमारा शरीर एक संतुलित राग की तरह होता है जिसमें वात, पित्त और कफ तीन मुख्य स्वर होते हैं। ये स्वर जितने सामंजस्य में रहते हैं शरीर और मन उतन ही स्वस्थ रहता है। लेकिन जैसे ही इनमें से कोई एक स्वर ताल से बाहर होता है, स्वास्थ्य का सुर बिगड़ने लगता है और रोग उत्पन्न हो जाते हैं।

बदलते मौसम, बिगड़ती जीवनशैली और मानसिक तनाव..इन तीनों का आपके स्वास्थ्य पर गहरा असर पड़ता है। आयुर्वेद के अनुसार, जब शरीर का आंतरिक संतुलन गड़बड़ाता है, तब अनेक बीमारियां जन्म लेती हैं। यह असंतुलन खास तौर पर शरीर के त्रिदोष  वात, पित्त और कफ के बिगड़ने से होता है। हाल ही में ‘इंटरनेशनल जर्नल ऑफ हेल्थ साइंसेज एंड रिसर्च’ में प्रकाशित एक आर्टिकल में बताया गया है कि कैसे आज की व्यस्त जीवनशैली और मौसम का पल-पल बदलता मिजाज शरीर और मन के समन्वय को डगमगाने लगता है।

क्या हैं त्रिदोष 

वात: आयुर्वेद के अनुसार, हर इंसान के शरीर में तीन प्रकार के जैविक तत्व होते हैं। इनमें पहला है वात। यह हवा और आकाश से बना है और शरीर की गति..जैसे सांस लेना, खून का दौरा और विचारों का प्रवाह को नियंत्रित करता है। वात की अधिकता होने पर बेचैनी, शुष्क त्वचा या अनिद्रा जैसी समस्याएं हो सकती हैं।
पित्त: यह अग्नि और जल का मिश्रण है जो पाचन, मेटाबॉलिज्म और शरीर के तापमान को संभालता है। पित्त का असंतुलन होने पर गुस्सा, जलन या पेट की समस्याएं हो सकती हैं।
कफ: यह जल और पृथ्वी से बना है जो शरीर को मजबूती और स्थिरता देता है। कफ ज्यादा होने पर सुस्ती, सर्दी-खांसी या वजन बढ़ने की शिकायत हो सकती है।

वात, पित्त और कफ को रखें संतुलित

आयुर्वेद हमें स्वस्थ और संतुलित जीवन जीने का आसान रास्ता दिखाती है। वात नियंत्रण के लिए गर्म खाना और गुनगुना पानी पिएं। तिल के तेल से मालिश करें। रात को समय पर सोएं और तनाव कम करें और नियमित दिनचर्या अपनाएं। पित्त संतुलन के लिए मसालेदार और तला हुआ खाना कम करें। ठंडे फल और नारियल पानी लें। तेज़ धूप से बचें, नीम और आंवले का सेवन करें। अपने गुस्से पर नियंत्रण रखें। कफ कम करने के लिए सुबह जल्दी उठें और हल्का व्यायाम करें। मीठा और दूध से बनी चीजें सीमित मात्रा में लें। अदरक, काली मिर्च, तुलसी आदि को आहार में शामिल करें। गुनगुना पानी पीते रहें।

ऋतु के अनुसार बदलें अपनी दिनचर्या

आयुर्वेद विशेषज्ञों का कहना है कि हर मौसम में त्रिदोषों का प्रभाव अलग होता है। गर्मी में पित्त, सर्दियों में कफ और बारिश में में वात बढ़ जाता है। इसलिए मौसम के अनुसार आहार और व्यवहार में बदलाव ज़रूरी है। नियमित दिनचर्या, मौसम के अनुसार खानपान और रोजाना 10-15 मिनट योग या ध्यान आपके शरीर के सभी दोषों को संतुलित रख सकता है। पर्याप्त मात्रा में गुनगुना पानी पिएं और अपनी प्रकृति के अनुसार सही जीवनशैली अपनाएं। अगर आपको लगता है कि कोई दोष बहुत असंतुलित है तो चिकित्सक से संपर्क करें।

(डिस्क्लेमर : ये लेख विभिन्न स्त्रोतों से प्राप्त जानकारियों पर आधारित है। हम इसे लेकर किसी तरह का दावा नहीं करते हैं। विशेषज्ञ का परामर्श अपेक्षित।)


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Shruty Kushwaha

Shruty Kushwaha

2001 में माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय भोपाल से पत्रकारिता में स्नातकोत्तर (M.J, Masters of Journalism)। 2001 से 2013 तक ईटीवी हैदराबाद, सहारा न्यूज दिल्ली-भोपाल, लाइव इंडिया मुंबई में कार्य अनुभव। साहित्य पठन-पाठन में विशेष रूचि।

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