बसंत पंचमी: कला, संगीत और प्रेम का उत्सव, जानिए इस पर्व से जुड़ी कहानियां

बसंत पंचमी वसंत ऋतु के आगमन का प्रतीक है, जो जीवन में नवचेतना और उल्लास लेकर आता है। ये दिन ज्ञान, कला और संगीत की देवी सरस्वती को समर्पित है और उनकी पूजा का विशेष महत्व होता है। ये इस बात का भी प्रतीक है कि अब प्रकृति का अनुपम सौंदर्य बिखरेगा और चारों ओर हरा-भरा और रंगबिरंगा दृश्य नजर आएगा।

Shruty Kushwaha
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Basant Panchami : दो दिन बाद बसंत पंचमी है। बसंत पंचमी हिन्दू पंचांग के अनुसार माघ माह की शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मनाई जाती है। इस दिन ज्ञान, कला और संगीत की देवी सरस्वती की पूजा की जाती है। बसंत पंचमी का दिन वसंत ऋतु के आगमन का भी प्रतीक है। इस ऋतु में प्रकृति में हरियाली और रंग-बिरंगे फूल खिलते हैं, जो जीवन में खुशहाली और ऊर्जा का संचार करते हैं।

बसंत पंचमी के दिन का धार्मिक महत्व तो है ही, साथ ही ये भारतीय संस्कृति में कला और संगीत के लिए भी बेहद महत्वपूर्ण अवसर है। इस दिन कई स्थानों पर संगीत, नृत्य और सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित होते हैं। यह दिन कला और साहित्य में रुचि रखने वाले लोगों के लिए विशेष महत्व रखता है।

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बसंत पंचमी का महत्व और इससे जुड़ी कथाएं 

बसंत पंचमी को सरस्वती पूजा के रूप में मनाया जाता है। इसे ज्ञान, कला और संगीत की देवी सरस्वती का दिन माना जाता है। इस दिन विशेष रूप से विद्यार्थी अपने किताबों, लेखन सामग्रियों और अन्य अध्ययन सामग्री को देवी सरस्वती के चरणों में रखते हैं और उनका आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। ये पर्व बसंत ऋतु के आगमन को स्वागत करता है जब प्रकृति खिल उठती है और फिजाओं में ताजगी और खुशबू फैल जाती है। इस दिन से जुड़ी कई कथाएं भी प्रचलित हैं। आज हम बसंत पंचमी से जुड़ी कुछ प्रमुख कथाएं जानेंगे।

1. देवी सरस्वती का जन्म

धार्मिक मान्यता के अनुसार, बसंत पंचमी के दिन देवी सरस्वती का जन्म हुआ था। कहा जाता है कि ब्रह्मा जी ने अपने कमंडल से जल छिड़ककर देवी सरस्वती को उत्पन्न किया, जो ज्ञान, संगीत, कला और साहित्य की देवी मानी जाती हैं। देवी सरस्वती ने वीणा बजाकर संसार में मधुर ध्वनियों का संचार किया, जिससे सृष्टि में जीवन और चेतना का आगमन हुआ। इस दिन विशेष रूप से उनकी पूजा की जाती है और विद्यार्थी अपनी किताबों और लेखन सामग्रियों को उनके चरणों में रखते हैं, ताकि उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हो सके।

2. भगवान शिव और कामदेव की कथा

एक अन्य कथा के अनुसार, भगवान शिव जब तपस्या में लीन थे उस समय कामदेव ने उनकी तपस्या भंग करने की कोशिश की। इससे रुष्ट शिवशंकर ने को अपनी तीसरी आंख से भस्म कर दिया था। लेकिन बाद में, उन्होंने कामदेव की पत्नी रति के आग्रह पर उसे पुनर्जीवित किया। इस दिन को प्रेम और सृजन के उत्सव के रूप में मनाने की परंपरा शुरू भी है।

3. राधा और श्रीकृष्ण का मिलन

कुछ कथाओं में यह भी कहा जाता है कि राधा और कृष्ण का मिलन भी बसंत पंचमी के दिन हुआ था। इस दिन राधा और कृष्ण के प्रेम का प्रतीक माना जाता है। उनके मिलन को प्रेम और भक्ति का उत्सव मानकर विशेष रूप से पूजा की जाती है। बसंत ऋतु के आगमन को प्रेम और उल्लास के दिन के रूप में देखा जाता है, जब धरती पर नए जीवन का संचार होता है।

4. राजा दशरथ की कथा

एक और कथा के अनुसार, राजा दशरथ ने देवी सरस्वती की पूजा की थी, जिससे उन्हें चारों पुत्रों का आशीर्वाद प्राप्त हुआ। इस दिन को विशेष रूप से सरस्वती पूजा के रूप में मनाया जाता है, जो ज्ञान और शिक्षा का प्रतीक है।

5. राजा विक्रमादित्य और बेताल

बसंत पंचमी के दिन राजा विक्रमादित्य और बेताल की भी एक प्रसिद्ध कथा है, जिसमें बेताल राजा विक्रमादित्य को कई तरह की कहानियां और उसमें छिपी पहेलियां सुनाता है। इन पहेलियों का उत्तर खोजते हुए राजा विक्रमादित्य ने बेताल को हराया। यह कथा ज्ञान और बुद्धिमत्ता के महत्व को दर्शाती है, जो इस दिन की पूजा का हिस्सा है।


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Shruty Kushwaha

Shruty Kushwaha

2001 में माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय भोपाल से पत्रकारिता में स्नातकोत्तर (M.J, Masters of Journalism)। 2001 से 2013 तक ईटीवी हैदराबाद, सहारा न्यूज दिल्ली-भोपाल, लाइव इंडिया मुंबई में कार्य अनुभव। साहित्य पठन-पाठन में विशेष रूचि।

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