काशी में क्यों नहीं जलाई जाती इन पांच लोगों की लाश?श्मशान से भी लौट जाती है ये बॉडी, जानिए क्या है यह राज!

क्या आप जानते हैं कि काशी में पाँच तरह की बॉडीज को नहीं जलाया जाता? वैसे तो काशी को मोक्ष का द्वार कहा जाता है, लेकिन यहां पर कुछ विशेष परंपराएं भी निभाई जाती हैं। चलिए जानते हैं आखिर यह रहस्य क्या है।

जैसा कि सभी जानते हैं, काशी को मोक्ष का द्वार माना जाता है। इसे भारत के सबसे महत्वपूर्ण तीर्थ स्थलों में शामिल किया गया है। हर तीर्थ स्थल की अपनी-अपनी खासियत और अहमियत होती है। कहते हैं, तीर्थ स्थलों पर जाने से आपके सारे पाप मिट जाते हैं और रोगों से मुक्ति मिलती है। इंसान को जो भी कष्ट होता है, वह तीर्थ स्नान या दर्शन से खत्म हो जाता है।

आप यह भी जानते होंगे कि काशी में अगर किसी के प्राण छूटते हैं, तो वह सीधे वैकुंठ को चला जाता है। ऐसे में कई लोग अपनी आखिरी सांस लेने के लिए काशी जाते हैं और वहीं प्राण त्यागते हैं। काशी में आपको ऐसे कई लोग मिल जाएंगे जो न जाने कितने समय से वहीं रह रहे हैं ताकि उनकी मृत्यु काशी में हो। आप यह भी जानते होंगे कि काशी के मणिकर्णिका घाट पर चिता जलाई जाती है। ऐसा एक भी दिन नहीं होता जब काशी के घाट पर चिता न जलती हो। लेकिन आप शायद यह नहीं जानते होंगे कि काशी में पाँच तरह की बॉडीज को लौटा दिया जाता है। कहते हैं कि इन बॉडीज को श्मशान से भी लौटा दिया जाता है।

साधुओं का शरीर

दरअसल, इसमें पहले नंबर पर साधुओं का नाम आता है। साधुओं की लाश को काशी के घाट पर नहीं जलाया जाता। कहा जाता है कि साधुओं की बॉडी को या तो जल में समाधि दी जाती है या फिर थल समाधि, यानी उन्हें पानी में बहा दिया जाता है या जमीन में दफन किया जाता है।

छोटे बच्चों की बॉडी को भी

इसके अलावा छोटे बच्चों की बॉडी को भी काशी में कभी नहीं जलाया जाता। अगर किसी बच्चे की उम्र 12 साल से कम है, तो उसे यहां नहीं जलाया जाएगा। इन बच्चों को भगवान का स्वरूप माना जाता है, यही कारण है कि काशी में इन्हें जलाने पर पाबंदी है।

प्रेग्नेंट महिलाओं को

वहीं तीसरे नंबर पर प्रेग्नेंट महिलाओं का नाम आता है। काशी में प्रेग्नेंट महिलाओं की बॉडी को कभी नहीं जलाया जाता, क्योंकि अगर उनकी बॉडी को जलाया गया तो पेट फट सकता है और अंदर पल रहा बच्चा उछलकर ऊपर की ओर उड़ सकता है। इस कारण से उनकी बॉडी को जलाना वर्जित है।

सांप के काटने से मौत

इसके अलावा अगर किसी इंसान की मौत सांप के काटने से होती है, तो उसे भी काशी में नहीं जलाया जाता। माना जाता है कि ऐसी लाशों के दिमाग में 21 दिन तक प्राण रहते हैं। ऐसी बॉडीज को केले के तने से बांधकर पानी में बहा दिया जाता है। इसके पीछे एक मान्यता है कि अगर किसी तांत्रिक की नजर इस लाश पर पड़ जाती है, तो वह उसे जिंदा कर सकता है। इसी कारण इन बॉडीज को जलाया नहीं जाता।

चर्म रोग या किसी संक्रामक रोग से मरे व्यक्ति

पाँचवी बॉडी उन लोगों की होती है जो चर्म रोग या किसी संक्रामक रोग से मरे होते हैं। ऐसी बॉडी को भी नहीं जलाया जाता, क्योंकि इनके बैक्टीरिया हवा में फैल सकते हैं, जिससे अन्य लोग भी बीमार हो सकते हैं। यही कारण है कि इन बॉडीज को जलाना मना है।

Disclaimer- यहां दी गई सूचना सामान्य जानकारी के आधार पर बताई गई है। इनके सत्य और सटीक होने का दावा MP Breaking News न्यूज़ नहीं करता।


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Rishabh Namdev

Rishabh Namdev

मैंने श्री वैष्णव विद्यापीठ विश्वविद्यालय इंदौर से जनसंचार एवं पत्रकारिता में स्नातक की पढ़ाई पूरी की है। मैं पत्रकारिता में आने वाले समय में अच्छे प्रदर्शन और कार्य अनुभव की आशा कर रहा हूं। मैंने अपने जीवन में काम करते हुए देश के निचले स्तर को गहराई से जाना है। जिसके चलते मैं एक सामाजिक कार्यकर्ता और पत्रकार बनने की इच्छा रखता हूं।

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