डेस्क रिपोर्ट। बदलते वक्त के साथ बच्चों के लिए भी आजकल का माहौल बदला बदला सा है। अब नासमझ, नादान और नन्हीं सी उम्र की बातें बेमानी सी लगती हैं। जिस उम्र में ककहरा सीखना होता है पेंसिल पर पकड़ बनाने का हुनर सीखना होता है उसी उम्र में उन्हें शब्द नहीं टच की सीख देना जरूरी हो गया है। तकरीबन हर रोज कुछ ऐसी खबर पढ़ने को मिल ही जाती है जो इस डर का अहसास कराती है कि स्कूल, पार्क, कोचिंग बच्चे- शायद कहीं भी पूरी तरह सुरक्षित नहीं हैं। नन्हीं सी उम्र का मन इतना साफ होता है कि दूसरे मन का मैल भी नजर नहीं आता. हालात तो ये हैं कि न सिर्फ लड़कियां, लड़के भी यौन शोषण का शिकार हो सकते हैं। इसलिए ये जरूरी है कि बच्चों को अभी से ये समझाएं कि अच्छे और बुरे टच में अंतर क्या है! हर टच स्नेह भरा नहीं होता मन के मंसूबे कभी कभी टच की भाषा में बच्चों को सही गलत का भेद समझा ही जाते हैं।
गुड टच
बच्चों को समझाए कि जिसके छूने से उन्हें हर्ट न हो. बल्कि जिसका टच उन्हें सुरक्षित फील करवाए उसे ही गुड टच कहते हैं। इस टच को समझाने के लिए खुद बच्चों को ये फील करवाएं कि कौन सा टच उन्हें सुरक्षा का अहसास दिलवाता है। बच्चों को उनके दोस्तों के जरिए समझाएं कि जैसा उन्हें अपने दोस्तों के टच से फील होता है उसे ही गुड टच कहते हैं.
उन्हें ये जरूर समझाएं कि किसी के भी छून से उन्हें थोड़ा सा भी दर्द हो तो बिना डरें वे अपने माता पिता को बताएं।
इसके लिए ये भी जरूरी है कि माता पिता अपने बच्चों से इतना खुलकर बात करें कि खेल खेल में या बिना डरे उन्हें सब कुछ बता सकें।