नई सोच के साथ नई पहल है डिजिटल दिवाली, जानिए Digital Diwali की अवधारणा, उद्देश्य और मनाने का तरीका

इसके तहत पटाखों और अन्य प्रदूषण फैलाने वाली वस्तुओं से दूरी बनाकर डिजिटल माध्यम और साधनों के साथ दिवाली मनाने के लिए प्रेरित किया जाता है। ये कॉन्सेप्ट खासतौर पर उस समय सामने आया जब कोविड-19 महामारी के कारण सामाजिक दूरी बनाए रखना आवश्यक हो गया था। लेकिन अब यह विचार पर्यावरण संरक्षण की दिशा में भी एक स्थायी कदम माना जा रहा है। डिजिटल उपकरणों के माध्यम से त्योहार को किफायती और सुविधाजनक रूप से मनाया जा सकता है। डिजिटल दिवाली एक स्वस्थ, पर्यावरण-हितैषी और आधुनिक तरीके से पर्व मनाने का तरीका है।

New celebration Digital Diwali

Digital Diwali : जैसे जैसे समय बदल रहा है..हमारी जीवनशैली, पर्व, त्योहारों में भी बदलाव आ रहा है। इस डिजिटल युग है में हमारे परंपरागत त्योहारों को मनाने का तरीका भी बदल रहा है। डिजिटल दिवाली इसी का एक उदाहरण है। डिजिटल दिवाली तकनीक, पर्यावरण संरक्षण और जागरूकता को ध्यान में रखते हुए मनाई जाती है। इसका उद्देश्य पारंपरिक त्योहार की खुशियों को बनाए रखते हुए पर्यावरण पर इसके प्रभाव को कम करना और आधुनिक सुविधाओं का लाभ उठाना है।

डिजिटल दिवाली ऑनलाइन शॉपिंग, डिजिटल ग्रीटिंग्स और ऐप्स जैसी तकनीक का उपयोग करके रोशनी का त्योहार मनाने का एक तरीका है। पर्यावरण-संरक्षण और समाज में जागरूकता बढ़ाने के संदर्भ में कई लोग अब ये पहल कर रहे हैं। हालांकि अभी ये बहुत प्रचलित धारणा नहीं है लेकिन धीरे धीरे कई लोगों का रुझान इस तरफ़ बढ़ रहा है। ये हमारे पारंपरिक त्योहार का एक आधुनिक और डिजिटल रूप है।

Digital Diwali : पारंपरिक पर्व का आधुनिक रूप

डिजिटल दीवाली एक नई सोच और जागरूकता का प्रतीक है, जो आधुनिक तकनीक और पर्यावरण-संवेदनशीलता को ध्यान में रखते हुए दीपोत्सव मनाने का तरीका है। डिजिटल दिवाली की पहल हमें परंपरागत त्योहारों को एक नई तकनीकी दृष्टिकोण के साथ इसे मनाने का अवसर देती है जिससे हम पर्यावरण, स्वास्थ्य और सामाजिक हितों का ध्यान रखते हुए उत्सव का आनंद ले सकते हैं।

डिजिटल दिवाली का महत्व 

जब हम बात कर रहे हैं डिजिटल दिवाली की तो इसका मुख्य उद्देश्य पारंपरिक तरीके से दिवाली मनाने के साथ-साथ डिजिटल उपकरणों और ऑनलाइन साधनों का उपयोग करके त्योहार को आधुनिक जीवनशैली के अनुकूल बनाना है। इसके माध्यम से न केवल सामाजिक दूरी का पालन किया जाता है, बल्कि पटाखों से दूरी बनाकर पर्यावरण संरक्षण का समर्थन करना भी है।

डिजिटल दिवाली मनाने के तरीके 

1. ई-ग्रीटिंग्स : डिजिटल दिवाली में लोग परंपरागत कार्ड की बजाय ई-कार्ड्स और डिजिटल ग्रीटिंग्स का उपयोग करते हैं जिससे कागज की खपत कम होती है और पर्यावरण को संरक्षित करने में मदद मिलती है।
2. ऑनलाइन शॉपिंग और गिफ्ट्स : लोग डिजिटल शॉपिंग प्लेटफॉर्म्स का उपयोग करते हुए उपहार खरीदते हैं और सीधे उन्हें अपने प्रियजनों के घर तक पहुंचाते हैं। यह समय और ऊर्जा की बचत के साथ-साथ प्रदूषण कम करने में भी मदद करता है।
3. वर्चुअल पूजा और वीडियो कॉलिंग : कोविड-19 महामारी के दौरान वर्चुअल मीटिंग्स और ऑनलाइन पूजा की शुरूआत हुई, जिसे ‘डिजिटल दिवाली’ का एक प्रमुख हिस्सा माना जा सकता है। इसमें लोग वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग ऐप्स के माध्यम से एक-दूसरे से जुड़ते हैं और सामूहिक रूप से पूजा करते हैं।
4. इको-फ्रेंडली फायरवर्क्स : डिजिटल दिवाली के तहत ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स पर वर्चुअल फायरवर्क्स भी एक लोकप्रिय विकल्प है। इससे वास्तविक पटाखों से होने वाले प्रदूषण को कम किया जा सकता है। कई ऐप्स और वेबसाइट्स पर 3D एनिमेशन के माध्यम से वर्चुअल फायरवर्क्स दिखाए जाते हैं।
5. सोशल मीडिया के माध्यम से जागरूकता : सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स का उपयोग कर पर्यावरण संरक्षण, इको-फ्रेंडली दिवाली और कम से कम प्रदूषण फैलाने के संदेश को बढ़ावा दिया जाता है। लोग अपने विचार, सुझाव और उत्सव के पलों को ऑनलाइन साझा करते हैं, जो एक स्वस्थ और प्रगतिशील समाज के निर्माण में मददगार होते हैं।

डिजिटल दिवाली के लाभ

इसके जरिए पटाखों से होने वाले वायु और ध्वनि प्रदूषण को कम करने में मदद मिलती है। वहीं आज के व्यस्त दौर में ये किफायती और समय की बचत भी करता है। कम खर्चीले और आसान तरीकों से दिवाली का उत्सव मनाया जा सकता है साथ ही आप दूरदराज़ बैठे दोस्तों और रिश्तेदारों से भी मिल सकते हैं। डिजिटल दिवाली न केवल तकनीकी प्रगति का एक उदाहरण है, बल्कि यह पर्यावरण और सामाजिक जागरूकता को भी बढ़ावा देती है। इस प्रकार के उत्सव से हम अपने परंपरागत त्योहारों को आधुनिकता और जागरूकता के साथ मनाते हैं, जिससे आने वाली पीढ़ी को एक स्वस्थ और सुरक्षित पर्यावरण प्राप्त हो सके। हालांकि, अभी ये एक कम प्रचलित अवधारणा है और दिवाली जैसे त्योहारों को अब भी लोग पारंपरिक तरीके से मनाने में ज्यादा विश्वास रखते हैं। ये पूरी तरह व्यक्तिगत अभिरूचि और आस्था का मामला है और उसी के अनुसार लोग पर्व त्योहार मनाए जाते हैं।

(डिस्क्लेमर : ये लेख सामान्य जानकारियों पर आधारित है। हम ऐसी किसी धारणा का समर्थन या विरोध नहीं करते हैं।)

 

 


About Author
श्रुति कुशवाहा

श्रुति कुशवाहा

2001 में माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय भोपाल से पत्रकारिता में स्नातकोत्तर (M.J, Masters of Journalism)। 2001 से 2013 तक ईटीवी हैदराबाद, सहारा न्यूज दिल्ली-भोपाल, लाइव इंडिया मुंबई में कार्य अनुभव। साहित्य पठन-पाठन में विशेष रूचि।

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