क्या रोज नहाने से पड़ सकते हैं बीमार! अत्यधिक स्नान शरीर की सुरक्षा प्रणाली को कर सकता है कमजोर, ये जानकारी आपको कर देगी हैरान

नहाना हमारी रोजमर्रा की आदतों में शामिल है। सुबह उठकर दैनिक क्रियाओं में स्नान हमेशा से आवश्यक माना जाता है। हमारे यहां इसे शारीरिक स्वच्छता के अलावा कई धार्मिक मान्यताओं से भी जोड़कर देखा जाता है। हर शुभ कार्य से पहले नहाना ज़रूरी है। लेकिन अब अगर कोई आपसे कहे कि रोज़ नहाने से कोई ख़ास लाभ नहीं है, बल्कि ये आपको किसी तरह का नुक़सान भी कर सकता है तो ये बात हमारे लिए बेहद अचरज वाली होगी। लेकिन स्नान को लेकर हुए कई शोध के बाद कुछ ऐसी घारणाएं सामने आई हैं, जो इसका समर्थन करती है कि रोज़ नहाना अच्छा नहीं है।

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Surprising facts about daily showering : रोज़ नहाना स्वास्थ्य के लिए अच्छा होता है। अब तक तो हम यही सुनते आए हैं। लेकिन अब अगर कोई कहे कि रोज़ नहाने से कोई विशेष लाभ नहीं है, बल्कि ये आपको नुक़सान भी पहुंचा सकता है तो आप क्या कहेंगे? इस मुद्दे पर कुछ शोधकर्ताओं का कहना है कि अत्यधिक स्नान करने से त्वचा पर मौजूद प्राकृतिक बैक्टीरिया और माइक्रोबायोम को नुकसान पहुंच सकता है, जो शरीर की सुरक्षा प्रणाली के लिए महत्वपूर्ण होते हैं। अगर हम रोज़ नहाते हैं तो अपनी त्वचा से प्राकृतिक तेल और स्वास्थ्यवर्धक बैक्टीरिया को हटाते हैं, जिससे त्वचा में सूखापन और जलन हो सकती है और इससे संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है।

नहाने को लेकर हुई स्टडीज़ के बाद कई विशेषज्ञों का सुझाव है कि हफ्ते में दो या तीन बार स्नान करना अधिक स्वास्थ्यवर्धक हो सकता है। ख़ासकर यदि आप शुष्क जलवायु में रहते हैं या आपकी त्वचा संवेदनशील है तो ऐसा करना ज्यादा ठीक होगा। वहीं, कई पर्यावरणविद और प्रकृति प्रेमी इसे पानी बचाने के मुद्दे से जोड़कर भी देखते हैं। इनका मानना है कि अगर नहाने को हर दिन की प्रक्रिया न माना जाए तो बहुत पानी बचाया जा सकता है।

क्या रोज़ नहाना स्वास्थ्य के लिए अच्छा नहीं है ?

इसके बाद कई विशेषज्ञों द्वारा कहा जा सकता है कि रोज़ाना नहाने के बारे में यह धारणा कि इससे शरीर का इम्यून सिस्टम कमजोर हो सकता है, कुछ वैज्ञानिक दृष्टिकोण से सही हो सकती है। अगर हमारे शरीर की सुरक्षा प्रणाली कमजोर होती है तो ये कई बीमारियों का खतरा भी पैदा कर सकती है। शोधकर्ताओं का कहना है कि अत्यधिक स्नान करने से त्वचा पर मौजूद प्राकृतिक बैक्टीरिया और माइक्रोबायोम को नुकसान पहुंच सकता है। यह भी तर्क भी दिया जाता है कि अधिक बार नहाने से त्वचा की प्राकृतिक ऑयल बैलेंस प्रभावित होती है, जो त्वचा के स्वास्थ्य के लिए अच्छी नहीं है। नियमित नहाने से त्वचा में सूखापन, जलन और अन्य समस्याएँ हो सकती हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि थोड़ी-थोड़ी मात्रा में नहाना और त्वचा को अपनी प्राकृतिक नमी को बनाए रखने देना बेहतर हो सकता है । हार्वर्ड मेडिकल स्कूल का मानना है कि हर किसी के लिए नहाने की आदर्श आवृत्ति अलग हो सकती है।

कई हस्तियों ने किया समर्थन

कुछ मशहूर हस्तियों ने भी इस मुद्दे पर अपनी राय साझा की है। हॉलीवुड अभिनेता एश्टन कचर ने एक बार कहा था कि वह नियमित रूप से नहाने की बजाय अपनी स्थिति के अनुसार नहाना पसंद करते हैं। इस पर उन्होंने कहा कि “नहाने की आदतें व्यक्तिगत होनी चाहिए।” वहीं, मॉडल किम कार्दाशियन ने भी कहा था कि वह कई बार नहाने के बजाय केवल जरूरत के समय ही नहाना पसंद करती हैं। कुछ वर्षों पहले, पत्रकार मैकार्थी ने एक लेख लिखा था जिसमें उन्होंने अपने साप्ताहिक स्नान के अनुभव साझा किए, जिसमें केवल सिंक में नहाना शामिल था। उन्होंने यह स्वीकार किया कि कभी-कभी स्नान न करने का डर उन्हें परेशान करता था, क्योंकि उन्हें उपहास का सामना करना पड़ सकता था। लेकिन लेख के प्रकाशन के बाद, कई पाठकों ने उन्हें बताया कि वे भी इसी तरह की आदतें रखते हैं, जिससे पता चलता है कि यह बात कई लोगों के लिए सामान्य है कि वो रोज न नहाएं।

पानी बचाने की मुहिम का समर्थन भी करती है ये धारणा

ऐसे समय में जब दुनियाभर में पानी बचाने को लेकर चर्चाएं हो रही हैं, कई पर्यावरणविदों का भी तर्क है कि रोज़ न नहाने से जल, ऊर्जा और संसाधनों की बचत होती है। इस बारे में कहा जाता है कि नहाने के लिए अक्सर कई लीटर पानी की आवश्यकता होती है। यदि लोग रोज़ न नहाएं, तो इससे पानी की बचत हो सकती है। विशेषकर उन क्षेत्रों में, जहाँ जल की कमी है, यह एक महत्वपूर्ण उपाय हो सकता है। वहीं, गर्म पानी का उपयोग करने के लिए ऊर्जा की आवश्यकता होती है। यदि लोग रोज़ नहाने से बचें, तो यह ऊर्जा की खपत को कम कर सकता है। इससे कार्बन उत्सर्जन में भी कमी आ सकती है। इसी के साथ शैंपू, साबुन और अन्य स्नान उत्पादों के उपयोग से भी संसाधनों की खपत होती है। जल और ऊर्जा की बचत करने से जलवायु परिवर्तन के खिलाफ लड़ाई में मदद मिलती है। छोटे-छोटे बदलाव, जैसे रोज़ नहाने से बचना, मिलकर बड़े बदलाव ला सकते हैं। हालांकि, यह ध्यान रखना ज़रूरी है कि व्यक्तिगत स्वच्छता भी महत्वपूर्ण है और रोज़ न नहाने के निर्णय को समाजिक और सांस्कृतिक संदर्भों में भी समझा जाना चाहिए। ख़ासकर उच्च तापमान वाले स्थानों में रहने वाले लोगों को अधिक स्नान करने की आवश्यकता हो सकती है। 

(डिस्क्लेमर : ये लेख सामान्य जानकारियों पर आधारित है। हम इसकी पुष्टि नहीं करते हैं।)

 


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श्रुति कुशवाहा

श्रुति कुशवाहा

2001 में माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय भोपाल से पत्रकारिता में स्नातकोत्तर (M.J, Masters of Journalism)। 2001 से 2013 तक ईटीवी हैदराबाद, सहारा न्यूज दिल्ली-भोपाल, लाइव इंडिया मुंबई में कार्य अनुभव। साहित्य पठन-पाठन में विशेष रूचि।

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