सफेद घोल का कमाल, सूनी बेल भी लाएगी भर-भर के लौकी! बस इस तरीके से जड़ों में डालें

अगर लौकी के पौधे में फल नहीं आ रहे या बेल सूखी-सूखी लग रही है, तो घबराइए नहीं। एक आसान देसी उपाय है जो न सिर्फ बेल को हरा-भरा बनाएगा बल्कि लौकी से लद भी जाएगा। छाछ और आलू के छिलकों से बना एक सफेद घोल इस समस्या का पक्का समाधान है।

घरों की छत या आंगन में सब्जियां उगाना अब ट्रेंड (Gardening Tips) बन चुका है। खासतौर पर लौकी की खेती लोग घर में करना पसंद करते हैं क्योंकि इसकी बेल जल्दी बढ़ती है और थोड़ी देखभाल में ही फल भी देने लगती है।

लेकिन कई बार पौधा बढ़ता तो है, पर उस पर फूल तो आते हैं लेकिन फल नहीं बनते। इस स्थिति में एक देसी उपाय बेहद कारगर है, एक ऐसा सफेद घोल जो बेल में नई जान डाल देगा।

छाछ और आलू के छिलकों से बना देसी घोल

घर में बची हुई छाछ और आलू के छिलके अक्सर कचरे में फेंक दिए जाते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि यही दो चीजें मिलकर एक ऐसा जैविक घोल बना सकती हैं जो आपकी लौकी की बेल को हरा-भरा और फलदार बना देगा।

कैसे बनाएं यह घोल

  • एक मटके या बाल्टी में आधा लीटर छाछ लें।
  • इसमें 2-3 आलू के छिलके डालें।
  • इस मिश्रण को ढककर 3-4 दिन के लिए छायादार जगह पर रखें।
  • जब ये अच्छे से फर्मेंट हो जाए (हल्की खटास आने लगे), तब इसे बेल की जड़ में डालें।
  • यह घोल पौधे को ज़रूरी पोषण देता है, मिट्टी की गुणवत्ता सुधारता है और जड़ों को मजबूत बनाता है। इससे न सिर्फ पत्तियां हरी-भरी होती हैं, बल्कि बेल में लगातार फूल और फल आने लगते हैं।

लौकी के लिए कौन सी बेहतर है?

केमिकल फर्टिलाइजर तेज़ असर करते हैं लेकिन इनके साइड इफेक्ट्स भी होते हैं। लंबे समय तक इस्तेमाल करने पर मिट्टी की उर्वरता कम हो जाती है और पौधों की जड़ें कमजोर हो जाती हैं। वहीं दूसरी तरफ, जैविक खाद, जैसे छाछ और आलू के छिलके से बना घोल, पूरी तरह नेचुरल होता है और धीरे-धीरे मिट्टी को पोषण देता है।

लौकी की बेल को विशेष रूप से कैल्शियम, पोटैशियम और नाइट्रोजन की ज़रूरत होती है। ये सभी तत्व छाछ और छिलके के घोल में प्राकृतिक रूप से मौजूद होते हैं। इसके अलावा, जैविक खाद से पौधे में रोगों की संभावना भी कम होती है। इसलिए अगर आप चाहते हैं कि आपकी लौकी की बेल लंबे समय तक फल देती रहे, तो देसी उपाय ही सबसे अच्छा और सुरक्षित तरीका है।

लौकी की देखभाल के जरूरी टिप्स

लौकी की बेल को रोजाना कम से कम 5-6 घंटे की धूप चाहिए। लेकिन साथ ही ज़मीन में नमी भी बनी रहनी चाहिए। बहुत ज्यादा पानी देने से जड़ें सड़ सकती हैं।

छाछ-छिलका घोल को हर रविवार बेल की जड़ में डालें। इससे पौधे को नियमित पोषण मिलता रहेगा।

बेल को ऊपर चढ़ाने के लिए कोई मजबूत सहारा जैसे रस्सी या जाली जरूर लगाएं, जिससे पौधा फैल सके और फल अच्छी तरह से लटक सकें।

लौकी में दो तरह के फूल आते हैं, नर और मादा। अगर मादा फूल में फल बनने की शुरुआत नहीं हो रही है तो नर फूल के पराग उससे संपर्क करवाना ज़रूरी है। इसे हाथ से परागण कहा जाता है, जो घरेलू खेती में कारगर तरीका है।

 


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Bhawna Choubey

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इस रंगीन दुनिया में खबरों का अपना अलग ही रंग होता है। यह रंग इतना चमकदार होता है कि सभी की आंखें खोल देता है। यह कहना बिल्कुल गलत नहीं होगा कि कलम में बहुत ताकत होती है। इसी ताकत को बरकरार रखने के लिए मैं हर रोज पत्रकारिता के नए-नए पहलुओं को समझती और सीखती हूं। मैंने श्री वैष्णव इंस्टिट्यूट ऑफ़ जर्नलिज्म एंड मास कम्युनिकेशन इंदौर से बीए स्नातक किया है। अपनी रुचि को आगे बढ़ाते हुए, मैं अब DAVV यूनिवर्सिटी में इसी विषय में स्नातकोत्तर कर रही हूं। पत्रकारिता का यह सफर अभी शुरू हुआ है, लेकिन मैं इसमें आगे बढ़ने के लिए उत्सुक हूं।मुझे कंटेंट राइटिंग, कॉपी राइटिंग और वॉइस ओवर का अच्छा ज्ञान है। मुझे मनोरंजन, जीवनशैली और धर्म जैसे विषयों पर लिखना अच्छा लगता है। मेरा मानना है कि पत्रकारिता समाज का दर्पण है। यह समाज को सच दिखाने और लोगों को जागरूक करने का एक महत्वपूर्ण माध्यम है। मैं अपनी लेखनी के माध्यम से समाज में सकारात्मक बदलाव लाने का प्रयास करूंगी।

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