‘गर्लहुड फोमो’ आपने भी कभी न कभी यह शब्द ज़रूर सुना होगा। यह एक ऐसी भावना है जो ज़्यादातर महिलाओं को 30 साल की उम्र के आस-पास महसूस हो सकती है। इस भावना में ऐसा महसूस होता है कि उन्होंने अपनी जवानी यार लड़कपन में कुछ अच्छे पल या मौक़े गंवा दिए हैं।
इसमें अकेलापन, पछतावा और चिंता जैसी भावनाएँ महसूस होती हैं। इस तरह की भावना उन्हें यह सोचने पर मजबूर कर देती है कि उनकी ज़िंदगी में कुछ न कुछ कमी है। अगर आपको अभी भी यह अच्छे से नहीं समझ आया है तो विस्तार से समझते हैं कि आख़िर गर्लहुड फोमो क्या होता है।

क्या होता है Girlhood FOMO?
इन दिनों सोशल मीडिया पर ‘गर्लहुड फोमो’ शब्द तेज़ी से वायरल हो रहा है। सबसे पहले तो हम इस शब्द का मतलब जानेंगे, गर्लहुड फोमो का मतलब होता है फियर ऑफ़ मिसिंग आउट ऑन गर्ल। यह आमतौर पर तब होता है जब अपनी उम्र की अन्य महिलाओं से न जुड़ पाने का डर महिलाओं में होता है। यह भावना इसलिए उत्पन्न होती है क्योंकि समाज में हमेशा बचपन से ही लड़कियों को सिखाया जाता है कि उनके लिए एक मज़बूत गर्लहुड ग्रुप यानी लड़कियों की दोस्ती बहुत ज़रूरी होती है।
क्या सच में हर दोस्ती फिल्मी होती है?
यह दोस्ती कुछ इस तरह होती है जैसा कि फ़िल्मों और TV में दिखाया जाता है, कि लड़कियाँ अपनी बाक़ी लड़कियाँ दोस्तों के साथ पार्टियां करती है, लंच पर जाती है, शॉपिंग करती है और अपने हर सुख-दुख एक दूसरे से बाँटती है। लेकिन असल में ऐसा नहीं होता है, असल ज़िंदगी फ़िल्मों में दिखाई जाने वाली दोस्ती से काफ़ी अलग होती है। हर महिला का अपना अलग व्यक्तित्व होता है, हर महिला की अपनी पसंद-नापसंद अलग होती है, और सबसे ज़रूरी बात की हर महिला की परिस्थितियां अलग होती है। ज़रूरी नहीं है कि सभी के पास ज़्यादा दोस्त या उनका बड़ा ग्रुप हो। अक्सर महिलाएँ सोशल मीडिया पर एक दूसरे की ज़िंदगियों को देखकर ख़ुद की ज़िंदगी को बोरिंग समझती है, और यहीं से शुरू होता है गर्लहुड फोमो ।
महिलाओं के सामने बढ़ती चुनौतियाँ
तेज़ी से बदलती लाइफ़स्टाइल ने लोगों की दिनचर्या, सोचने का तरीक़ा, और सोसाइटी से जुड़ाव को पूरी तरह से बदल दिया है। नई-नई तकनीक और डिजिटल दुनिया ने इंसानों को स्मार्ट बना दिया है, लेकिन कहीं न कहीं मानसिक और भावनात्मक रूप से कमज़ोर कर दिया है। ख़ासकर महिलाओं के लिए यह दिन पर दिन चुनौतीपूर्ण साबित हो रहा है, सामाजिक अपेक्षाएं, पारिवारिक जिम्मेदारियां, करियर की प्राथमिकताएं सबको साथ में मैनेज करना महिलाओं के लिए थोड़ा सा मुश्किल हो रहा है।
महिलाओं में अकेलेपन का कारण
इन सभी ज़िम्मेदारियों के चलते, कहीं न कहीं मीनिंगफुल कनेक्शन की कमी, रिश्तों में भावनात्मक दूरी, सोशल आइसोलेशन, माँ बनने के बाद बढ़ी ज़िम्मेदारियाँ, ये सब चीज़ें अकेलेपन को और भी ज़्यादा बढ़ा रही है। इन सब दबावों के चलते महिलाओं को 30 साल की उम्र के आस-पास ऐसा महसूस हो रहा है कि वे अपनी लाइफ़ में बहुत कुछ मिस कर रही है, या उनकी लाइफ़ पूरी तरह से बोरिंग बन चुकी है, और इन सबकी ज़िम्मेदार वे अपने आपको समझती है। यह सोच और मानसिक स्थिति धीरे-धीरे महिलाओं को बेहद तनाव में डाल देती है। इससे निकल पाना आसान नहीं होता है, देखते ही देखते ही अकेलेपन की भावना मानसिक तनाव, डिप्रेशन जैसी समस्याओं को जन्म देती है।
अकेलेपन से निपटने के उपाय
अब सवाल यह उठता है कि आख़िर समस्या से निपटने के लिए क्या करें, सबसे पहले अपनी लाइफ़स्टाइल में कुछ बदलाव करें, रिश्तों में गहराई लाने की कोशिश करें, परिवार और दोस्तों के साथ ज़्यादा से ज़्यादा समय बिताएँ, ढेर सारी बातें करें, अपने आप को ख़ुश रखने की कोशिश करें। अगर अकेलेपन की भावना ज़्यादा बढ़ जाए तो प्रोफ़ेशनल हेल्प लेना एक बहुत ही अच्छा ऑप्शन है। सबसे ज़रूरी बात की अपनी ज़िंदगी की तुलना दूसरों की ज़िंदगी से बिलकुल भी ना करें। उन चीज़ों के लिए वक़्त निकालें जो आपको बेहद पसंद है, जैसे जिम, डान्स, सिंगिंग, स्विमिंग आदि।