Gopal Das Neeraj Birthday : गोपाल दास नीरज की जयंती पर पढ़िए उनके कुछ प्रसिद्ध गीत

Gopal Das Neeraj Birthday : आज पद्मभूषण से सम्मानित कवि और गीतकार गोपाल दास नीरज की जयंती है। उनका जन्म 4 जनवरी 1925 को हुआ था। उन्हें गीतों के राजकुमार भी कहा जाता है। जब वो अपने गीत सुनाते थे तो लोग मंत्रमुग्ध हो जाते थे। उनकी जीवन यात्रा भी एक गीत के ही समान रही जिसमें उन्होने विभिन्न उतार चढ़ाव देखे। कवि सम्मेलनों की अपार लोकप्रियता उन्हें मायानगरी मुंबई तक ले गई और नीरज ने फिल्मों के लिए भी कई बेहतरीन गीत लिखे हैं। सीएम शिवराज सिंह चोहान ने भी आज उन्हें श्रद्धांजलि दी है। गोपाल दास नीरज की जयंती पर पढ़ते हैं उनकी कुछ लोकप्रिय कविताएं और गीत।

मानव कवि बन जाता है

तब मानव कवि बन जाता है!
जब उसको संसार रुलाता,
वह अपनों के समीप जाता,
पर जब वे भी ठुकरा देते
वह निज मन के सम्मुख आता,
पर उसकी दुर्बलता पर जब मन भी उसका मुस्काता है!
तब मानव कवि बन जाता है!

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जीवन जहाँ खत्म हो जाता

जीवन जहाँ खत्म हो जाता !
उठते-गिरते,
जीवन-पथ पर
चलते-चलते,
पथिक पहुँच कर,
इस जीवन के चौराहे पर,
क्षणभर रुक कर,
सूनी दृष्टि डाल सम्मुख जब पीछे अपने नयन घुमाता !
जीवन वहाँ ख़त्म हो जाता !

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हार न अपनी मानूंगा मैं !

चाहे पथ में शूल बिछाओ
चाहे ज्वालामुखी बसाओ,
किन्तु मुझे जब जाना ही है —
तलवारों की धारों पर भी, हँस कर पैर बढ़ा लूँगा मैं !

मन में मरू-सी प्यास जगाओ,
रस की बूँद नहीं बरसाओ,
किन्तु मुझे जब जीना ही है —
मसल-मसल कर उर के छाले, अपनी प्यास बुझा लूँगा मैं !

हार न अपनी मानूंगा मैं !

चाहे चिर गायन सो जाए,
और ह्रदय मुरदा हो जाए,
किन्तु मुझे अब जीना ही है —
बैठ चिता की छाती पर भी, मादक गीत सुना लूँगा मैं !

हार न अपनी मानूंगा मैं !

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कारवां गुज़र गया

माँग भर चली कि एक जब नयी-नयी किरण

ढोलकें धुनुक उठीं ठुमुक उठे चरण-चरण

शोर मच गया कि लो चली दुल्हन, चली दुल्हन

गाँव सब उमड़ पडा बहक उठे नयन-नयन

पर तभी ज़हर भारी

गाज एक वह गिरी

पुंछ गया सिन्दूर तार-तार हुई चूनरी

और हम अजान से

दूर के मकान से

पालकी लिए हुए कहार देखते रहे

कारवां गुज़र गया गुबार देखते रहे

 

एक रोज़ एक गेह चांद जब नया उगा

नौबतें बजीं, हुई छटी, डठौन, रतजगा

कुण्डली बनी कि जब मुहूर्त पुण्यमय लगा

इसलिए कि दे सके न मृत्यु जन्म को दग़ा

एक दिन न पर हुआ

उड़ गया पला सुआ

कुछ न कर सके शकुन, न काम आ सकी दुआ

और हम डरे-डरे

नीर नैन में भरे

ओढ़कर कफ़न पड़े मज़ार देखते रहे

चाह थी न किन्तु बार-बार देखते रहे

कारवां गुज़र गया गुबार देखते रहे

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About Author
श्रुति कुशवाहा

श्रुति कुशवाहा

2001 में माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय भोपाल से पत्रकारिता में स्नातकोत्तर (M.J, Masters of Journalism)। 2001 से 2013 तक ईटीवी हैदराबाद, सहारा न्यूज दिल्ली-भोपाल, लाइव इंडिया मुंबई में कार्य अनुभव। साहित्य पठन-पाठन में विशेष रूचि।

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