गुलाब की पंखुड़ियों से दिवाली पर बनाए टेस्टी लड्डू, भूल जाएंगे बर्फी, गुलाबजामुन का स्वाद

Gaurav Sharma
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जीवनशैली, डेस्क रिपोर्ट। दिवाली का मौका यानि कि बर्फी, लड्डू, गुलाबजामुन, गुजिया जैसे पकवानों का त्योहार, इन्हें खाने का नाम सुन सुनकर ही मुंह में पानी आने लगता है। अक्सर ये होड़ भी मचती है कि किसके घर में क्या बना, अगर आप ये चाहती हैं कि इस होड़ में अव्वल आएं तो जरूर किसी ऐसी रेसिपी की तलाश में होंगी जो इजी भी हो, आराम से बन भी जाए और लोग तारीफ करते करते थक जाएं। ऐसी इच्छा है तो आप इस बार गुलाब की पंखुड़ियों के लड्डू जरूर बनाए, जिसमें गुलाब की मीठी महक के साथ सौंधा सा स्वाद भी होगा। इन लड्डुओं के लिए आपको सबसे पहले बनाना होगा गुलकंद.

ऐसे बनाएं गुलकंद
गुलकंद बनाने के लिए आपको गुलाब के फूल की पंखूड़ियां चाहिए होंगी। सबसे पहले आप ऐसे गुलाब चुने जो ऑर्गेनिक तरीके से उगाए गए हैं। उसके बाद इनकी पंखूड़ियों को तोड़कर धोकर एक जार में शक्कर डालकर रख दे। धूप में रखने से दो या तीन दिन में ही गुलकंद तैयार होगा। जिन लोगों के पास वक्त की कमी है वो सीधे बाजार से गुलकंद लाकर ही लड्डू तैयार कर सकती हैं।

गुलकंद बनाने की सामग्री
गुलकंद
आटा
शक्कर
ड्राईफ्रूट्स
गोंद

गुलकंद के लड्डू बनाने का तरीका
सबसे पहले आप सभी तरह के ड्राईफ्रूट्स को बारीक काट कर रोस्ट कर लें, उसके बाद एक कढ़ाही में गोंद डालकर रोस्ट करें, गोंद फूल जाए तो उसे पीस भी सकते हैं या दरदरा भी कर सकते हैं। आटे को भून लें, जब तक आटा हल्का भूरा या सुनहरा नहीं हो जाता उसे सेंकते रहें। ये सारी चीजों को अच्छे से ठंडा होने दीजिए।  इसके बाद शक्कर को बारीक पीस लीजिए, गुलकंद में आटा मिक्स कीजिए। आटा उतना ही मिलाएं जितने में गुलकंद को बांधा जा सके। शक्कर भी उतनी ही मात्रा में मिलानी है जिससे गुलकंद के स्वाद पर वो हावी न हो। जब पेस्ट लड्डू बंधने लायक हो जाए, तब छोटे छोटे लड्डू बना लें और सर्व करे।


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पत्रकारिता पेशा नहीं ज़िम्मेदारी है और जब बात ज़िम्मेदारी की होती है तब ईमानदारी और जवाबदारी से दूरी बनाना असंभव हो जाता है। एक पत्रकार की जवाबदारी समाज के लिए उतनी ही आवश्यक होती है जितनी परिवार के लिए क्यूंकि समाज का हर वर्ग हर शख्स पत्रकार पर आंख बंद कर उस तरह ही भरोसा करता है जितना एक परिवार का सदस्य करता है। पत्रकारिता मनुष्य को समाज के हर परिवेश हर घटनाक्रम से अवगत कराती है, यह इतनी व्यापक है कि जीवन का कोई भी पक्ष इससे अछूता नहीं है। यह समाज की विकृतियों का पर्दाफाश कर उन्हे नष्ट करने में हर वर्ग की मदद करती है।इसलिए पं. कमलापति त्रिपाठी ने लिखा है कि," ज्ञान और विज्ञान, दर्शन और साहित्य, कला और कारीगरी, राजनीति और अर्थनीति, समाजशास्त्र और इतिहास, संघर्ष तथा क्रांति, उत्थान और पतन, निर्माण और विनाश, प्रगति और दुर्गति के छोटे-बड़े प्रवाहों को प्रतिबिंबित करने में पत्रकारिता के समान दूसरा कौन सफल हो सकता है।

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