Hachi- A Dog’s Tale : आज से ठीक डेढ़ सौ बरस पहले यानी 19 नवम्बर 1872 को जन्मा ईज़ाबूरो उएनो बावन साल की उम्र तक अपनी साधारण प्रतिभा के साथ जीवन में जितनी दूर जा सकता था, जा चुका था। टोक्यो यूनिवर्सिटी में कृषि विज्ञान पढ़ाने वाले इस प्रोफेसर के जीवन में आगे भी किसी ऐसे उल्लेखनीय के घटने का अवसर भी नहीं था। चार-छः सालों में उसने रिटायर होकर अपनी पार्टनर याइको साकानो के साथ बुढ़ापा गुजारने की योजनाएं बनाना शुरू करना था।
उएनो लम्बे समय से एक कुत्ता पालने की फिराक में था और उसे उम्दा पहाड़ी नस्ल के किसी विशुद्ध जापानी कुत्ते की तलाश थी लेकिन सही इत्तफाक नहीं बन पा रहा था। आखिरकार 1924 की जनवरी में अपने एक छात्र के बताने पर उएनो ने उस ज़माने के लिहाज़ से तीस येन की बड़ी रकम चुका कर टोक्यो के उत्तर में ख़ासी दूरी पर स्थित एक फ़ार्म से अकीता प्रजाति का एक दो माह का पिल्ला हासिल कर किया। पिल्ले को फ़ार्म से टोक्यो पहुँचने में रेलगाड़ी से बीस घंटे का सफ़र भी करना पड़ा।
पिल्ले के आने से उएनो के घर में रोशनी आ गई। पिल्ले का नाम धरा गया हाची। जापानी भाषा में इसका अर्थ हुआ आठ। वहां यह एक बेहद शुभ संख्या मानी जाती है। उसे मोहब्बत से हाचीको भी कहा जाता था। हाची अपने मालिक का ऐसा भक्त बना कि उसने रोज़ उएनो को छोड़ने और लेने उस रेलवे स्टेशन तक जाने का मामूल बांध लिया जहाँ से उसका यूनिवर्सिटी आना-जाना होता था। अपनी प्रजाति के हिसाब से हाची जल्द ही एक हट्टा-कट्टा वयस्क बन गया। उएनो के घर से स्टेशन के बीच दो दफा आते-जाते तमाम लोग उसके मोहिल व्यक्तित्व से जुड़ गए। मालिक के अलावा वह अनेक दूसरे लोगों का भी दोस्त बन गया।
करीब डेढ़ साल तक यह सिलसिला चला जब 21 मई 1925 के दिन अपनी प्रयोगशाला में काम करते हुए उएनो को दिल का दौरा पड़ा और वहीं उसकी मौत हो गयी। हाची उस शाम भी मालिक को लेने आया। उसने ट्रेन से अपने मालिक के उतरने का इंतज़ार किया। जब ट्रेन चली गयी वह वापस घर लौट आया। उएनो की मौत के बाद उसके घर में आने वाले एक माली ने हाची को अपने साथ रखा लेकिन उस शाम के बाद से अपनी मौत के दिन तक हाची अगली तमाम शामों को यूनीवर्सिटी स्टेशन से शिबूया स्टेशन पर आने वाली लोकल ट्रेन के आने के नियत समय अपने मालिक के इंतज़ार में पहुंचा।
ऐसा उसने कुछ हफ्ते या महीने नहीं बल्कि कुल दस साल तक किया..बिला नागा। वह रोज उएनो के उतरने का इंतज़ार करता और लौट जाता। शुरू में उसे ऐसा करते देखते लोगों को उस पर लाड़ आया। फिर हैरत होने लगी। आखिरकार वे उसके मुरीद बन गए। उसके प्रति उनके मन में कैसी श्रद्धा उमड़ती होगी इसकी कल्पना करने के लिए आपको इस लेख के साथ लगी फोटो गौर से देखना चाहिए। मृत हाची के सामने नतमस्तक लोग कौन-क्या होंगे आप अपने हिसाब से अनुमान लगा सकते हैं। हाची के बारे में कुछ भी अनुमान लगाने की जरूरत नहीं.
हाची के प्रेम, दर्द और अकेलेपन की यह कथा, जिसके बारे में आपमें से ज्यादातर को मालूम ही होगा, समूची दुनिया में कुत्तों की वफादारी के उच्चतम आदर्श के रूप में स्थापित हो चुकी है। टोक्यो के शिबूया स्टेशन पर जीते जी किंवदंती बन चुके इस कुत्ते की मूर्ति उसी की उपस्थिति में स्थापित की गयी। जिस जगह वह स्थापित है उसे आज किसी तीर्थ का महात्म्य हासिल है।
फर्ज कीजिये वह शानदार पहाड़ी कुत्ता न होता तो यूनिवर्सिटी के बच्चों को खेतों का उपजाऊपन बढ़ाने जैसे बोझिल और उबाऊ विषय पर लेक्चर देने वाले उस प्रोफ़ेसर को कौन याद रखता। हाल के सालों में टोक्यो के भीतर हाची के मालिक ईज़ाबूरो उएनो की प्रतिमा भी स्थापित की गई। ईज़ाबूरो उएनो की यह मूर्ति तस्दीक करती है कि मोहब्बत आज भी दुनिया की सबसे अधिक पूजी जाने वाली शै है। वफ़ा उससे भी बड़ी।
(ख्यात लेखक अनुवादक श्री अशोक पांडे की फेसबुक वॉल से साभार)