जानिये हिंदी की इन लोकप्रिय कहावतों-मुहावरों का अर्थ

भोपाल, डेस्क रिपोर्ट। नाच न आवै आँगन टेढ़ा, घर घाट एक करना या फिर घोड़े बेचकर सोना..ये वो कहावतें, लोकोक्ति (Proverb) या मुहावरें (idioms) हैं जिनका उपयोग हम अक्सर अपनी रोजमर्रा की बातचीत में करते हैं। लेकिन क्या आपको इनका सही सही अर्थ पता है। हमारी भाषा और जीवन में कहावत या लोकोक्ति और मुहावरे का बड़ा महत्व है। ये गागर में सागर हैं। बड़ी बात को समझाने, संकेत करने, गूढ़ अर्थ या फिर विलक्षण अर्थ की प्रतीति के लिए इनका उपयोग होता है। आज हम हिंदी के कुछ प्रसिद्ध और लोकप्रिय कहावतों-मुहावरों का अर्थ जानेंगे।

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  • अंटी में न धेला, देखन चली मेला – इस कहावत का अर्थ है कि रुपये पैसे पास न होने पर भी तरह तरह के शौक सूझना।
  • अंधा क्या चाहे दो आंखें – मनवांछित वस्तु प्राप्त होना।
  • अंगूर खट्टे हैं – जब किसी व्यक्ति के पास सुख सुविधा, विलासिता के साधन या वो वस्तु न हो जो उसकी इच्छा में हो और व कहे कि मुझे तो ये सब चाहिए ही नहीं, तो ये कहावत होती है।
  • अधजल गगरी छलकत जाय – ज्ञान कम प्रदर्शन अधिक।
  •  नाच न आवै आँगन टेढ़ा – अपनी कमी का ठीकरा या दोष दूसरे को देना।ॉ
  • अंधा बांटे रेवड़ी, फिर फिर अपने देय – किसी भी मौके या वस्तु का लाभ खुद उठाना या अपने लोगों को दिलाना।
  • अपना रख, पराया चख– अपनी चीज बचाकर दूसरे की उपयोग करना।
  • अंडा सिखावे बच्चे को कि चीं चीं न कर – जब कोई आयु, बुद्धि या पद में छोटा हो और अपने से बड़े व बुद्धिमान व्यक्ति को अनावश्यक सीख देता दे तो ये कहा जाता है।
  • अंधेर नगरी चौपट राजा, टके सेर भाजी टके सेर खाजा – इस कहावत का प्रयोग किसी देश व समाज में व्याप्त भ्रष्टाचार, अन्याय और अराजकता को दर्शाने के लिए किया जाता है।
  • जाके पाँव न फटी बिबाई, वो क्या जाने पीर पराई – जो खुद किसी परेशानी या दुख से न गुजरा हो वह दूसरे की तकलीफ कैसे समझ पाएगा।
  • अपनी करनी, पार उतरनी– अपनी मेहनत से ही काम होना।
  • अब पछताए होत क्या, जब चिड़िया चुग गयी खेत– समय निकल जाने पर पछताना बेकार है।
  • तेतो पांव पसारिये, जितनी लम्बी सौर– सामर्थ्य अनुसार व्यय करना।
  • चित भी मेरी, पट भी मेरी– सब तरह से लाभ ही होना।
  • दिन भर ऊनी ऊनी, रात को चरखा पूनी –दिन में समय बर्बाद किया और रात में चरखा और पूनी लेकर बैठ गए।गलत समय पर उल्टा सीधा काम करने वाले लोग।
  • दुधारू गाय की लात भी सहनी पड़ती है– जिससे लाभ हो, उसका अप्रिय या खराब व्यवहार भी सहना करना पड़ता है।
  • नौ नकद, न तेरह उधार– नकद का कम लाभ भी उधार के अधिक लाभ से अच्छा है।
  • बोया पेड़ बबूल का, आम कहाँ से होय– जैसा कर्म करेंगे, वैसा ही फल मिलेगा।

     


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श्रुति कुशवाहा

श्रुति कुशवाहा

2001 में माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय भोपाल से पत्रकारिता में स्नातकोत्तर (M.J, Masters of Journalism)। 2001 से 2013 तक ईटीवी हैदराबाद, सहारा न्यूज दिल्ली-भोपाल, लाइव इंडिया मुंबई में कार्य अनुभव। साहित्य पठन-पाठन में विशेष रूचि।

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