रसगुल्ला भारत की एक ऐसी मिठाई है, जो हर वर्ग के लोगों को पसंद है। त्योहार के साथ-साथ शादी, विवाह, मुंडन आदि में यह जरूर परोसा जाता है। आकार में गोल होने के साथ-साथ यह बहुत ही ज्यादा स्वादिष्ट होता है। यह सीजन के अनुसार कई सारे फ्लेवर में मिलते हैं। देश ही नहीं, बल्कि विदेश में भी भारत की पारंपरिक मिठाई ने अपनी अलग पहचान बनाई है। आपको हर मिठाई की दुकान में रसगुल्ला जरूर मिलेगा, जो कि छेना से बनाई जाती है। यह आमतौर पर लोगों की फिलिंग्स से भी जुड़ी होती है, जिसे रिश्तों में मिठास घोलने का प्रतीक माना जाता है। चीनी की चाशनी में डुबोकर छेने को गोल आकार दिया जाता है, जो कि नरम होता है। बच्चे से लेकर बड़े तक हर कोई इसे खाकर खुश हो जाता है। हर ऑकेजन में रसगुल्ला को जरूर से जरूर बाद में रखा जाता है।
कुछ लोग तो ऐसे हैं, जो साल के 365 दिन रसगुल्ला खाते हैं, भले ही एक ही सही। बिना रसगुल्ला खाए उनका खाना पूरा नहीं होता और ना ही उनका मन भरता है। यूं तो भारत में दूध से बनने वाली मिठाइयों की कोई कमी नहीं है, लेकिन रसगुल्ला इन सभी में से अलग है, जो सदियों से लोगों की पहली पसंद बना हुआ है। इसके स्वाद को कोई भी मिठाई रिप्लेस नहीं कर सकती। इसकी सभी मिठाइयों में एक अलग ही जगह है।
विदेशों में बना चुका है पहचान
भारत के अलावा, यह विदेश में भी लोगों द्वारा पसंद की जाती है। रस से भरा यह नरम रसगुल्ला खाते वक्त आपने भी यह सोचा होगा कि आखिर पहली बार इसे किसने बनाया होगा, किसके दिमाग में यह आइडिया आया होगा, किसने पहली बार रसगुल्ला को रखा होगा, इसका इतिहास क्या रहा है। तो चलिए आज के आर्टिकल में हम आपको इसकी पूरी जानकारी देंगे, जो कि बेहद दिलचस्प है।
इतिहास
रसगुल्ला के इतिहास को लेकर अक्सर कई कहानियां सुनने में आती हैं। कुछ लोगों का ऐसा मानना है कि यह पहली बार उड़ीसा में बनाया गया था, तो कुछ लोग इसे वेस्ट बंगाल में बनी हुई उत्पत्ति मानते हैं। उड़ीसा के लोगों का मानना है कि रसगुल्ला 700 साल पुरानी मिठाई है और इसका रहस्य और महत्व दोनों ही भगवान जगन्नाथ के मंदिर, यानी पुरी जगन्नाथ मंदिर से जुड़ा हुआ है। उनका कहना है कि रथ यात्रा के दौरान भगवान जगन्नाथ ने अपनी रूठी हुई पत्नी को मनाने के लिए उन्हें यह मिठाई दी थी। 11वीं शताब्दी में लोग इसे खीर मोहन कहते थे, जो कि देखने में बिल्कुल सफेद होता था। आज भी इस मंदिर में लक्ष्मी देवी को भोग के रूप में रसगुल्ला चढ़ाया जाता है। बिना इसके पूजा संपूर्ण नहीं मानी जाती। वहीं, आने वाले श्रद्धालुओं को भी यह मिठाई प्रसाद के तौर पर बांटी जाती है।
वहीं, पश्चिम बंगाल के लोगों का यह कहना है कि हावड़ा निवासी नवीन चंद्र दास ने साल 1868 में सबसे पहले इसका आविष्कार किया था, जिनकी दुकान कोलकाता में थी। आज भी उनके परिवार के लोग मिठाई की दुकान को चला रहे हैं और दशकों से अपने ग्राहकों के बीच रिश्तों में मिठास घोल रहे हैं। वहां के लोगों का दावा है कि रसगुल्ला पहली बार नवीन चंद्र दास ने ही बनाया था।
खासियत
अब आपको बता दें कि रसगुल्ले की खासियत क्या होती है। रसगुल्ला को आप कई दिनों तक रखकर खा सकते हैं, यह जल्दी खराब नहीं होती। फ्लेवर की बात करें, तो यह खजूर की हो सकती है, गुड़ की हो सकती है, चीनी वाली हो सकती है। इसके अलावा, आम के सीजन में लोग आम वाले रसगुल्ले भी बनाते हैं। यह खाने में एकदम नरम होती है। रस में डूबी हुई यह मिठाई आप चम्मच से काट कर भी खा सकते हैं या फिर एक बार में ही इसे मुंह में भरकर इसका आनंद उठा सकते हैं।
पश्चिम बंगाल को रसगुल्ले पर GI टैग भी मिल चुका है। हालांकि, उड़ीसा को भी रसगुल्ला के लिए GI का दर्जा दे दिया गया है। यहां रसगुल्ला के बिना कोई भी खाना नहीं खाता है। इसे बनाने की विधि भी काफी कठिन नहीं है। इसके अलावा, जब लोग एक-दूसरे के घर जाते हैं, तो वे साथ में रसगुल्ला लेकर जाते हैं। सदियों से इस परंपरा को लोग निभाते चले आ रहे हैं।





