होली पर बच्चों का इस तरह रखें ख्याल, न लगेगी भूख न होगी तबियत खराब

जीवनशैली, डेस्क रिपोर्ट। होली पर सबसे ज्यादा फिक्र होती है छोटे बच्चों की जिन्हें ये अंदाजा नहीं होता कि रंगों से किस तरह बच कर खेलना है, अपनी आंखों का ध्यान कैसे रखना है, रंग भरे हाथों से कुछ खाना है या नहीं। इस नासमझी के बीच रंगों से खेलने की जिद इतनी ज्यादा होती है कि लाख समझाइश के बाद भी वो पानी में भीगना या रंगो से सराबोर होना नहीं छोड़ते। ऐसे जिद्दी बच्चों का ध्यान रखने के लिए आपका अलर्ट होना जरूरी है। बच्चों पर रंगों का खुमार चढ़े उससे पहले ही कुछ इंतजाम कर लिए जाने चाहिए।

शरीर पर लगा दें खूब सारा तेल

बच्चे होली खेलने पहुंचें उससे पहले ही उनके पूरे शरीर पर अच्छे से तेल लगा दें। तेल या तो सरसों का लगाएं या फिर नारियल का। इन दोनों तेलों से बच्चों की स्किन भी अच्छी रहेगी और रंग भी नहीं चढ़ेगा।


About Author
Gaurav Sharma

Gaurav Sharma

पत्रकारिता पेशा नहीं ज़िम्मेदारी है और जब बात ज़िम्मेदारी की होती है तब ईमानदारी और जवाबदारी से दूरी बनाना असंभव हो जाता है। एक पत्रकार की जवाबदारी समाज के लिए उतनी ही आवश्यक होती है जितनी परिवार के लिए क्यूंकि समाज का हर वर्ग हर शख्स पत्रकार पर आंख बंद कर उस तरह ही भरोसा करता है जितना एक परिवार का सदस्य करता है। पत्रकारिता मनुष्य को समाज के हर परिवेश हर घटनाक्रम से अवगत कराती है, यह इतनी व्यापक है कि जीवन का कोई भी पक्ष इससे अछूता नहीं है। यह समाज की विकृतियों का पर्दाफाश कर उन्हे नष्ट करने में हर वर्ग की मदद करती है। इसलिए पं. कमलापति त्रिपाठी ने लिखा है कि," ज्ञान और विज्ञान, दर्शन और साहित्य, कला और कारीगरी, राजनीति और अर्थनीति, समाजशास्त्र और इतिहास, संघर्ष तथा क्रांति, उत्थान और पतन, निर्माण और विनाश, प्रगति और दुर्गति के छोटे-बड़े प्रवाहों को प्रतिबिंबित करने में पत्रकारिता के समान दूसरा कौन सफल हो सकता है।