आज से 9 दिन बाद राजधानी दिल्ली के लाल किले पर स्वतंत्रता दिवस के मौके पर तिरंगा फहराया जाएगा। इस दिन पूरे देश भर में अलग ही उत्साह का माहौल देखने को मिलता है। छोटे-छोटे स्कूली बच्चे हाथों में झंडा लिए स्कूल जाते हैं, जहां वह राष्ट्रीय गान गाते हैं, झंडा फहराते हैं, साथ ही मिठाई लेकर खुशी-खुशी अपने घर वापस लौट जाते हैं। हर साल 15 अगस्त को देश के प्रधानमंत्री लाल किले पर राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा गर्व के साथ फहराते हैं। इस दौरान सुरक्षा की कड़ी व्यवस्था की जाती है, जिसके कुछ दिन पहले से ही रास्ते डायवर्ट कर दिए जाते हैं। ट्रैफिक पुलिस द्वारा लगातार डाइवर्ट रोडों पर निगरानी की जाती है।
इस दिन मेट्रो की भी टाइमिंग में बदलाव किया जाता है। लाल किले पर हजारों की संख्या में लोग मौजूद रहते हैं, जिनकी निगरानी सीसीटीवी कैमरे द्वारा भी की जाती है, ताकि किसी प्रकार की कोई अनहोनी ना हो।
अलग होता है नजारा
भारी संख्या में तैनात पुलिस फोर्स के अलावा स्वतंत्रता दिवस के मौके पर देश के प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति सहित अन्य नेता मौजूद रहते हैं। इस दिन लाल किले का नजारा कुछ अलग ही रहता है। हर कोई देशभक्ति के माहौल में डूबा हुआ नजर आता है। लेकिन क्या आपके मन में कभी यह सवाल आया है कि तिरंगा झंडा केवल लाल किले पर ही क्यों फहराया जाता है? इसे मुगलों द्वारा बनाई गई अन्य इमारत जैसे ताजमहल, फतेहपुर सीकरी, आगरा फोर्ट इत्यादि पर क्यों नहीं फहराते?
लाल किले पर ही क्यों फहराया जाता है झंडा?
आज के आर्टिकल में हम आपको बताएंगे कि आखिर लाल किले पर ही तिरंगा क्यों फहराया जाता है। मुगलों की बनाई गई किसी और इमारत पर ऐसा क्यों नहीं किया जाता? इसके पीछे का ऐतिहासिक महत्व आखिर क्या है? कई बार ऐसे प्रश्न प्रतियोगी परीक्षाओं में पूछ लिए जाते हैं इसलिए सामान्य ज्ञान के लिहाज से भी इसका जवाब जानना जरूरी है।
ऐसे हुई इस परंपरा की शुरूआत
देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने आजादी के बाद पहली बार लाल किले पर ही देश की आन, बान, शान का प्रतीक राष्ट्रीय ध्वज फहराया था। उस दौरान लोगों के अंदर अलग ही जुनूनियत थी। ब्रिटिश शासन काल खत्म होने की खुशी के साथ-साथ देश की आजादी का जश्न मनाया गया। बता दें कि साल 1947 में 15 अगस्त को जब देश आजाद हुआ, तब भारत के पहले प्रधानमंत्री ने लाल किले की प्राचीर से अंग्रेजी हुकूमत का झंडा उतार कर भारत का राष्ट्रीय ध्वज फहराया और इस तरह से उन्होंने स्वतंत्र भारत की शुरुआत की। तब से हर स्वतंत्रता दिवस पर प्रधानमंत्री द्वारा यहां झंडा फहराया जाता है।
बनाने में लगा 10 साल
अगर इससे पीछे थोड़ा और इतिहास में जाएं, तो मुगल बादशाह शाहजहां ने 17वीं शताब्दी में लाल किले का निर्माण करवाया था। उस जमाने में यहां वह युद्धकाल के दौरान छुपने और अपने परिवार के साथ रहने के लिए इसे बनवाए थे जिसे सम्राट की शक्ति और भव्यता का प्रतीक भी माना जाता था। यह सत्ता का शुरू से ही मुख्य केंद्र रहा है। 1857 तक लाल किला मुगल साम्राज्य की राजधानी के रूप में महत्वपूर्ण प्रतीक रहा। लेकिन जब अंग्रेज हमारे देश में आए तब उन्होंने इस पर कब्जा कर लिया और अपना झंडा लगा दिया जिसे पहली बार 15 अगस्त को हटाया गया था।
भारत की आजादी का प्रतीक
भारत की स्वतंत्रता के बाद भारत की राजधानी दिल्ली के लाल किले को इसलिए भी चुना गया क्योंकि यहां पर स्वतंत्रता संग्राम से जुड़ी कई यादें हैं, जिसे आज तक संजोकर रखा गया है। यह एक ऐतिहासिक महत्व रखने के साथ-साथ राष्ट्रीय समारोह के लिए भी सही है। यहां सालों भर पर्यटकों का आना-जाना लगा रहता है। 15 अगस्त के पहले यहां सुरक्षा से लेकर साफ-सफाई, लाइट, ट्रैफिक आदि के उचित प्रबंध किए जाते हैं। लाल किला केवल एक इमारत नहीं, बल्कि भारत की आजादी और गौरव का भी प्रतीक है।
आप भी जाएं
दिल्ली आने वाले पर्यटक इंडिया गेट, लोटस टेंपल के अलावा लाल किला जरूर एक्सप्लोर करते हैं। इसका असली नाम किला-ए-मुबारक है, जिसका निर्माण कार्य साल 1638 में शुरू किया गया था। इसे बनकर तैयार होने में लगभग 10 साल लगे थे। साल 2007 में यूनेस्को ने इसे अपनी वर्ल्ड हेरिटेज साइट की लिस्ट में शामिल कर लिया। यहां आपको भारतीय संस्कृति और परंपरा का अद्भुत संगम भी देखने को मिलेगा। यहां का खूबसूरत नजारा लोगों का मन मोह लेता है।





