भोपाल, डेस्क रिपोर्ट। हिन्दू धर्म में कई त्योहार मनाए जाते हैं। इन त्योहारों के पीछे विभिन्न मान्यताएं, इनके पीछे जुड़ी पौराणिक कथाएं और तिथि के अनुसार पर्व की विशेष खासियत होती है। ऐसा ही एक त्योहार है आंवला नवमी (Amla Navmi) जो हिन्दू पंचांग के अनुसार कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को मनाया जाता है। इसे आंवला नवमी या अक्षय नवमी (Akshay Navmi) के नाम से जाना जाता है। दापीवली पर्व के बाद आंवला नवमी व्रत देव उठनी एकादशी व्रत से दो दिन पहले रखा जाता है। आंवला नवमी के दिन आंवला के पेड़ की पूजा करने का विधान है।
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आज 12 नवंबर को देश भर में आंवला नवमी मनाई जा रही है। हिंदू धर्म में हर त्योहर के पीछे कुछ रोचक पौराणिक कथाएं और मान्यताएं होती हैं। ऐसा ही आंवला नवमी पर्व से जुड़ी कुछ मान्यताए हैं। मान्यता है कि आंवला या अक्षय नवमी के दिन भगवान कृष्ण वृन्दावन से मथुरा गए थे। इस दिन उन्होंने अपने कर्मक्षेत्र में कदम रखा था। आंवला नवमी की पूजा खास तौर पर महिलाएं संतान प्राप्ति के लिए करती हैं। माना जाता है कि इस दिन दान करने से पुण्य का फल इसी जन्म में मिलता है। शास्त्रों के अनुसार इस दिन आंवले के वृक्ष की पूजा करने से व्यक्ति को पापों से मुक्ति मिलती है। इस दिन आंवले के पेड़ की पूजा करते समय परिवार की खुशहाली और सुख-समृद्धि की कामना करनी चाहिए। साथ ही पूजा के बाद आंवले के पेड़ के नीचे बैठकर भोजन कर प्रसाद के रूप में आवंला खाया जाता है। इससे सारी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
इस बार आइए जानते हैं आंवला नवमी की पूजा का शुभ मुहूर्त क्या है। साथ ही जानते हैं आंवला नवमी पूजा सामग्री और पूजा विधि के बारे में-
आंवला नवमी तिथि व शुभ मुहूर्त
कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि यानी आज 12 नवंबर दिन शुक्रवार को अक्षय नवमी का योग है। इस दिन सुबह 6 बजकर 50 मिनट से दोपहर 12 बजकर 10 मिनट तक पूजन का शुभ मुहूर्त है। इसका समापन 13 नवंबर दिन शनिवार को सुबह 05 बजकर 31 मिनट पर होगा।
आंवला नवमी पूजा सामग्री
- आंवले का पौधा पत्ते एवं फल, तुलसी पत्र
- कलश एवं जल
- कुमकुम, हल्दी, सिंदूर, अबीर, गुलाल, चावल, नारियल, सूत का धागा
- धूप, दीप
- श्रृंगार का सामान,
- दान के लिए अनाज
इस विधि से करें पूजा
आवंला के पेड़ के नीचे नतमस्तक हो जाएं। फिर हल्दी कुमकुम आदि का चढ़ावा कर पूजा करें और उसमें जल और कच्चा दूध अर्पित करें। इसके बाद आंवले के पेड़ की 9 या 108 परिक्रमा करते हुए तने में कच्चा सूत या मौली को बांधें। पूजा खत्म होने के बाद परिवार और मित्रों आदि के साथ आंवले के पेड़ के नीचे बैठकर भोजन किए जाने का महत्व है। इसके साथ ही इस दिन आवंले को खाना भी बेहद शुभ माना जाता है।