जब ज़िंदगी में सब कुछ उलझा हुआ लगे, जब हालात हमारे हाथ से निकलते जा रहे हों और जब हर मोड़ पर निराशा मिले, तो गुस्सा आना बिल्कुल स्वाभाविक है। लेकिन अक्सर इस गुस्से का निशाना वो लोग बन जाते हैं, जो हमारे सबसे करीब होते हैं और जिन्होंने कोई गलती भी नहीं की होती।
ऐसे ही समय में खुद को रोकना और सही दिशा में सोचना बहुत ज़रूरी होता है। जय किशोरी जी अपने प्रवचनों में बार-बार यही समझाती हैं कि दुख और गुस्से के समय में हमें सबसे ज़्यादा समझदारी की ज़रूरत होती है। उनका एक खास संदेश है जो ना सिर्फ गुस्से को संभालना सिखाता है, बल्कि रिश्तों को भी टूटने से बचाता है।

गुस्से को दूसरों पर निकालना क्यों है गलत?
गुस्से में इंसान वो शब्द कह देता है, जो बाद में रिश्तों में दरार डाल सकते हैं। जय किशोरी जी कहती हैं कि, “जो गुस्सा किसी और की वजह से है, उसे अपनों पर निकालना न सिर्फ रिश्ते खराब करता है, बल्कि हमारी खुद की मानसिक शांति भी छीन लेता है।” आज के समय में जब लोग हर वक्त स्ट्रेस और प्रेशर में जी रहे हैं, ऐसे में ये सीख और भी जरूरी हो जाती है। सोचिए, आपकी किसी और से हुई बहस का असर आपके बच्चों, पार्टनर या दोस्तों पर क्यों पड़े? इसलिए संयम रखना और गुस्से की आग को शब्दों से भड़काने की बजाय शांति से बुझाना ही बेहतर है।
क्रोध पर नियंत्रण कैसे करें?
1. रुकिए और सोचिए
जय किशोरी जी बताती हैं कि किसी भी प्रतिक्रिया से पहले कुछ सेकंड रुकना बेहद जरूरी है। यह छोटा-सा ब्रेक हमें सोचने का वक्त देता है। जब हम तुरंत प्रतिक्रिया नहीं देते, तो गलत या कड़वे शब्दों से बच सकते हैं। यही संयम रिश्तों को बचाता है।
2. भावनाओं की जिम्मेदारी लें
अगर आपका मूड खराब है, तो इसका मतलब ये नहीं कि आप दूसरों पर गुस्सा निकालें। जय किशोरी जी कहती हैं, “आपकी भावनाएं आपकी जिम्मेदारी हैं।” दूसरों को दोषी ठहराने के बजाय, खुद को शांत करना सीखें। यही बात घर और रिश्तों में शांति बनाए रखती है।
3. बोलने से पहले खुद से सवाल करें
कुछ भी कहने से पहले खुद से एक सवाल ज़रूर पूछें, “क्या ये सही है?” अगर जवाब ना है, तो बेहतर है कि चुप रहें। जय किशोरी जी के अनुसार, चुप रहना कई बार हमें और सामने वाले को बड़ी गलती से बचा सकता है। यह समझदारी की निशानी है।
गुस्सा नहीं, समझदारी बनाएं अपनी ताकत
गुस्से पर काबू पाना कोई कमजोर इंसान की पहचान नहीं, बल्कि ये दिखाता है कि आप खुद पर कंट्रोल रखते हैं। जय किशोरी जी का यही संदेश है, भावनाएं हमारे पास हैं, हम उनके गुलाम नहीं। अगर हम अपनी भावनाओं को सही दिशा दे पाएं, तो जीवन और रिश्ते दोनों बेहतर हो सकते हैं।
आज के दौर में जहां छोटी-छोटी बातों पर लोग रिश्ते तोड़ लेते हैं, ऐसे में ये सीख हर किसी के लिए जरूरी है – खासकर युवाओं के लिए जो अकसर काम के तनाव को घर तक लेकर आते हैं।