MP Breaking News
Sat, Dec 20, 2025

शादी के बाद महिला के कानूनी अधिकार क्या होते हैं? यहाँ जानें पति और ससुराल पक्ष को लेकर कानून

Published:
Last Updated:
शादी के बाद महिलाओं को कई कानूनी अधिकार मिलते हैं। कोई उन्हें जॉब करने या करियर बनाने से नहीं रोक सकता है। हर से निकाने की धमकी भी नहीं दे सकता। आइए एक नजर इन नियमों पर डालें- 
शादी के बाद महिला के कानूनी अधिकार क्या होते हैं? यहाँ जानें पति और ससुराल पक्ष को लेकर कानून

AI Generated Image

अक्सर महिलाओं के साथ उत्नेपीडन और शोषण के मामले के सामने आते रहते हैं। कभी दहेज के नाम पर ससुराल पक्ष वाले उन्हें सताते हैं तो कभी नौकरी करने से रोकते हैं। ससुराल में महिलाओं के लिए समान अधिकार, सम्मान और सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए भारत सरकार ने कई नियम बनाये हैं। कई कानूनी अधिकार भी दिए गए हैं। इसमें दहेज़ निषेध अधिनियम 1961, हिंदू विवाह अधिनियम 1955, सीआरपीसी धारा 125, हिंदू विवाह अधिनियम जैसे कानूनी प्रावधान शामिल हैं।

सभी महिलाओं को इन कानूनी अधिकारों और नियमों (Legal Rights For Married Woman) की जानकारी होनी चाहिए। ताकि वे जरूरत के समय इनकी मदद सकें। शादीशुदा महिला का अधिकार पैतृक सम्पत्ति और स्त्रीधन पर होता है। शादी से पहले या शादी के दौरान मिले उपहार (गहने या कीमत चीजों) पर केवल महिला का मालिकाना हक होता है। किसी अन्य व्यक्ति को इसे लेने की अनुमति नहीं होती। वह महिला कभी भी इसकी मांग कर सकती है।

पति और ससुराल के संपत्ति पर हक

बहू का वैवाहिक घर में रहने का पूरा अधिकार होता है। यह पति या उसके माता-पिता का भी हो सकता है। पति की संपत्ति पर महिला का सीधा अधिकार होता है। हालांकि ससुराल की संपत्ति पर अधिकार जताने के लिए पति का हिस्सा होना जरूरी होता है। यदि पति की मृत्यु हो जाती है, तो उसकी पूरी संपत्ति की उत्तराधिकारी पत्नी होती है। विधवा पेंशन, ससुराल में निवास उसका हक होता है।

जॉब और करियर का फैसला लेने का अधिकार 

प्रत्येक महिला को अपने ससुराल में सम्मान के साथ जीने का अधिकार है। शादी के बाद भी प्राइवेसी और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार होता है। वह जॉब और पढ़ाई कर सकती है। इसके अलावा फैमिली मैटर में भी अपनी राय दे सकती है। यदि कोई उसके साथ उत्पीड़न या दुर्व्यवहार करता है तो इसके खिलाफ कानूनी मदद भी ले सकती है।

इन कानूनी अधिकारों को भी जान लें 

  • महिलाओं के संरक्षण अधिनियम 2005 के तहत महिलाओं को घरेलू हिंसा से सुरक्षा मिलती है। यदि घरेलू हिंसा का शिकार होती है तो वह सुरक्षा के लिए कोर्ट में याचिका दायर कर सकती है।
  • दहेज निषेध अधिनियम 1961 के तहत दहेज लेना या देना एक कानून का अपराध है। महिला दहेज उत्पीड़न को लेकर कोर्ट का दरवाजा खटखटा सकती है। पुलिस के पास शिकायत दर्ज करवा सकती है।
  • पत्नी के भरण पोषण की पूरी जिम्मेदारी पति की होती है। यदि पति ऐसा नहीं करता है तो पत्नी इससे संबंधित याचिका कोर्ट में दायर कर सकती है।
  • एक महिला को तलाक और पुनर्विवाह का पूरा अधिकार होता है। तलाक के बाद बच्चों की कस्टडी के लिए कोर्ट में क्लेम कर सकती है। पति की जिम्मेदारी पत्नी और बच्चे दोनों के भरण-पोषण की जिम्मेदारी पति की होती है।