झूठ बोले कौवा काटे..ये कहावत तो हम सभी ने सुनी है। लेकिन क्या कभी वाकई कौवे को काटते देखा है। क्योंकि झूठ तो हम सभी कभी न कभी बोलते ही हैं। हालांकि कोशिश होनी चाहिए कि कम से कम झूठ का सहारा लें और अगर बहुत जरूरी हो तो ये ध्यान रखें कि उससे किसी दूसरे का नुकसान न हो। लेकिन अगर किसी दूसरे का झूठ पकड़ना हो तो आप क्या करेंगे।
अब कोई स्वीकारेगा तो नहीं कि वो झूठ बोल रहा है। न ही कोई कौवा आकर काटने वाला है किसी को जिससे समझ आ जाए कि इस व्यक्ति ने झूठ बोला है। ऐसे में अगर आप किसी का झूठ पकड़ना चाहें तो थोड़ा मनोविज्ञान समझना होगा जिसमें कुछ बॉडी लैंग्वेज बताई गई है..जो संकेत देती है कि संभवतः सामने वाला झूठ बोल रहा है। मनोविज्ञान और बॉडी लैंग्वेज एक्सपर्ट्स का कहना है कि कुछ खास संकेतों को पढ़कर आप झूठ को पकड़ सकते हैं। आइए जानते हैं कि कैसे हावभाव से झूठ की पोल खुल सकती है और मनोविज्ञान इसके बारे में क्या कहता है!

आँखें जो छुपाती हैं राज़
मनोविज्ञान के अनुसार, आँखें झूठ को पकड़ने का सबसे बड़ा ज़रिया हैं। अगर कोई आपसे नज़रें मिलाने से बच रहा है या बार-बार पलकें झपक रहा है तो हो सकता है वो कुछ छुपा रहा हो। लेकिन चौंकाने वाली बात ये है कि कुछ लोग झूठ बोलते वक्त जानबूझकर आपकी आँखों में देखते हैं, ताकि आपको यकीन हो जाए। न्यूयॉर्क के मनोवैज्ञानिक डॉ. पॉल एकमैन कहते हैं, “जो लोग बहुत ज़्यादा नज़रें मिलाते हैं, वो अक्सर अपने झूठ को कवर करने की कोशिश कर रहे होते हैं।” तो अगली बार किसी की आँखों पर गौर करें, लेकिन थोड़ा सावधान रहकर।
बेचैन हाथ बेचैन मन
क्या आपने कभी किसी को बात करते वक्त अपने बालों से खेलते, नाखून चबाते या बार-बार अपनी शर्ट ठीक करते देखा है? ये छोटे-छोटे इशारे बताते हैं कि सामने वाला घबरा रहा है। मनोविज्ञान में इसे ‘Self-Soothing Behaviors’ कहा जाता है जो तनाव या झूठ बोलने की वजह से होता है। मिसाल के तौर पर..अगर कोई सवाल पूछने पर अपने चेहरे को बार-बार छूता है या अपनी नाक खुजलाता है तो ये संकेत हो सकता है कि वो सच नहीं बोल रहा।
बोलने का तरीका देता है हिंट
जब कोई झूठ बोलता है तो उसकी आवाज़ और बोलने का तरीका बदल सकता है। मनोवैज्ञानिक अध्ययनों के मुताबिक, झूठ बोलने वाले लोग अक्सर ज़्यादा रुक-रुक कर बोलते हैं क्योंकि उन्हें अपनी कहानी गढ़ने में वक्त लगता है। इसके अलावा, अगर कोई बार-बार सवाल को दोहराता है या जवाब देने में देरी करता है तो ये भी एक संकेत हो सकता है।
बॉडी लैंग्वेज का विरोधाभास
कभी-कभी लोग जो कहते हैं और उनकी बॉडी लैंग्वेज उससे उलट होती है। जैसे कोई कहता है, “मैं बिल्कुल ठीक हूँ,” लेकिन उसका चेहरा उदास है या कंधे झुके हुए हैं तो ये झूठ हो सकता है। इसे मनोविज्ञान में ‘नॉन-वर्बल लीक’ कहते हैं। एक्सपर्ट्स के अनुसार, झूठ बोलने वाले लोग अपने शब्दों और बॉडी लैंग्वेज को पूरी तरह से सिंक नहीं कर पाते। इसलिए अगली बार किसी की बात पर शक हो तो उनके चेहरे के हाव-भाव और बॉडी मूवमेंट्स पर नज़र रखें।
क्या हर बार बॉडी लैंग्वेज सही होती है
हालांकि बॉडी लैंग्वेज झूठ पकड़ने में मदद करती है लेकिन ये हमेशा 100% सटीक नहीं होती। मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि कभी-कभी लोग घबराहट या शर्मिंदगी की वजह से भी अजीब व्यवहार कर सकते हैं, जो झूठ का संकेत नहीं होता। इसलिए, किसी पर इल्ज़ाम लगाने से पहले पूरे संदर्भ को समझना ज़रूरी है।
कैसे बनें झूठ पकड़ने के मास्टर
ध्यान दें , लेकिन जल्दबाज़ी बिलकुल न करें। बॉडी लैंग्वेज के संकेतों को नोट करें लेकिन बिना पूरी तस्वीर देखे किसी नतीजे पर न पहुँचें। अगर आपको शक है तो ऐसे सवाल पूछें जो सामने वाले को उसकी ही कहानी में उलझा दें। साथ ही अपनी बॉडी लैंग्वेज को भी कंट्रोल करें। अगर आप शांत रहकर आत्मविश्वास से बात करेंगे तो झूठ बोलने वाला घबरा सकता है। और सबसे जरूरी बात..अगर किसी का झूठ पकड़ा जाए तो कोशिश करें समझने की कि उसने ऐसा क्यों किया। कहीं उसकी कोई मजबूरी तो नहीं थी या फिर ये आदतन है। झूठ की जड़ में जाने के बाद ही कोई फैसला लें।
(डिस्क्लेमर: ये लेख विभिन्न स्त्रोतों से प्राप्त जानकारियों पर आधारित है। हम इसकी पुष्टि नहीं करते हैं।)