साहित्यिकी : आईये पढ़ें चंद्रधर शर्मा गुलेरी की कालजयी कहानी ‘उसने कहा था’

“हमारी भागती जिंदगी से किताबें धीरे धीरे खोती जा रही हैं। हम पढ़ने की आदत भूल रहे हैं। पढ़ना और घूमना हमें सबसे अधिक समृद्ध करता है। इसीलिए हमारी कोशिश है कि पढ़ने की आदत को बढ़ाया जाए। साहित्यिकी इसी संदर्भ में एक कोशिश है। आईये आज हम पढ़ते हैं चंद्रधर शर्मा गुलेरी की कालजयी कहानी ‘उसने कहा था’। इसे हिंदी की पहली सर्वोत्तम कहानी का दर्जा प्राप्त है। ये एक अद्भुत प्रेम कहानी है। तो आईये पढ़ते हैं ये कहानी।”

                                                         उसने कहा था

बड़े-बडे़ शहरों के इक्के-गाड़ी वालों की जबान के कोड़ों से जिनकी पीठ छिल गई है और कान पक गए हैं, उनसे हमारी प्रार्थना है कि अमृतसर के बम्बू कार्ट वालों की बोली का मरहम लगावे। जबकि बड़े शहरों की चौड़ी सड़को पर घोड़े की पीठ को चाबुक से धुनते हुए इक्के वाले कभी घोड़े की नानी से अपना निकट यौन-संबंध स्थिर करते हैं, कभी उसके गुप्त गुह्य अंगो से डाक्टर को लजाने वाला परिचय दिखाते हैं, कभी राह चलते पैदलों की आँखो के न होने पर तरस खाते हैं, कभी उनके पैरो की अंगुलियों के पोरों की चींथकर अपने ही को सताया हुआ बताते हैं और संसार भर की ग्लानि और क्षोभ के अवतार बने नाक की सीध चले जाते हैं, तब अमृतसर में उनकी बिरादरी वाले तंग चक्करदार गलियों में हर एक लडढी वाले के लिए ठहर कर सब्र का समुद्र उमड़ा कर– बचो खालसाजी, हटो भाईज’, ठहरना भाई, आने दो लालाजी, हटो बाछा कहते हुए सफेद फेटों , खच्चरों और बतको, गन्ने और खोमचे और भारे वालों के जंगल से राह खेते हैं । क्या मजाल है कि जी और साहब बिना सुने किसी को हटना पड़े। यह बात नही कि उनकी जीभ चलती ही नही, चलती है पर मीठी छुरी की तरह महीन मार करती हुई। यदि कोई बुढ़िया बार-बार चिटौनी देने पर भी लीक से नही हटती तो उनकी वचनावली के ये नमूने हैं– हट जा जीणे जोगिए, हट जा करमाँ वालिए, हट जा, पुत्तां प्यारिए. बच जा लम्बी वालिए। समष्टि में इसका अर्थ हैं कि तू जीने योग्य है, तू भाग्योंवाली है, पुत्रो को प्यारी है, लम्बी उमर तेरे सामने है, तू क्यों मेरे पहियो के नीचे आना चाहती है? बच जा। ऐसे बम्बू कार्ट वालों के बीच में होकर एक लड़का और एक लड़की चौक की दुकान पर आ मिले। उसके बालों और इसके ढीले सुथने से जान पडता था कि दोनो सिख हैं। वह अपने मामा के केश धोने के लिए दही लेने आया था और यह रसोई के लिए बड़ियाँ। दुकानदार एक परदेशी से गुथ रहा था, जो सेर भर गीले पापड़ो की गड्डी गिने बिना हटता न था।
— तेरा घर कहाँ है?
— मगरे में। …और तेरा?
— माँझे में, यहाँ कहाँ रहती है?
— अतरसिंह की बैठक में, वह मेरे मामा होते हैं।
— मैं भी मामा के आया हूँ, उनका घर गुरु बाजार में है।
इतने में दुकानदार निबटा और इनका सौदा देने लगा। सौदा लेकर दोनो साथ-साथ चले। कुछ दूर जाकर लड़के ने मुसकरा कर पूछा– तेरी कुड़माई हो गई? इस पर लड़की कुछ आँखे चढ़ाकर ‘धत्’ कहकर दौड़ गई और लड़का मुँह देखता रह गया।


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श्रुति कुशवाहा

श्रुति कुशवाहा

2001 में माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय भोपाल से पत्रकारिता में स्नातकोत्तर (M.J, Masters of Journalism)। 2001 से 2013 तक ईटीवी हैदराबाद, सहारा न्यूज दिल्ली-भोपाल, लाइव इंडिया मुंबई में कार्य अनुभव। साहित्य पठन-पाठन में विशेष रूचि।