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Sat, Dec 20, 2025

क्या आप भी सुबह उठते ही देखते हैं मोबाइल फोन! आपकी क्रिएटिविटी को खत्म कर रही है ये आदत, जानिए क्या कहती है रिसर्च

Written by:Shruty Kushwaha
Published:
सुबह का समय आपकी क्रिएटिविटी का गोल्डन ऑवर है। लेकिन फोन का इस्तेमाल इसे चुरा सकता है। शोध बताते हैं कि स्क्रीन टाइम आपके दिमाग के रचनात्मक नेटवर्क को कमज़ोर करता है, तनाव बढ़ाता है और फोकस बिखेर देता है। इसीलिए कई मशहूर हस्तियां सुबह के समय अपने फोन से दूरी बनाए रखती हैं। स्टीव जॉब्स सुबह के पहले घंटे को "खाली दिमाग" के लिए सुरक्षित रखते थे, बिना किसी डिजिटल हस्तक्षेप के। इसीलिए अगली बार जब आप सुबह फोन उठाने की सोचें तो थोड़ा रुकें, गहरी साँस लें और अपने दिमाग को आज़ाद छोड़ दें। कौन जानता है, आपका अगला बड़ा आइडिया बस एक शांत सुबह की दूरी पर हो।
क्या आप भी सुबह उठते ही देखते हैं मोबाइल फोन! आपकी क्रिएटिविटी को खत्म कर रही है ये आदत, जानिए क्या कहती है रिसर्च

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क्या आप सुबह आंख खुलते ही सबसे पहले अपना मोबाइल देखते हैं। फोन उठाते ही पर सोशल मीडिया स्क्रॉल करने लगते हैं? अगर हां, तो सावधान हो जाइए। विशेषज्ञों का मानना है कि यह आदत न सिर्फ मानसिक स्वास्थ्य के लिए नुकसानदेह है, बल्कि आपकी रचनात्मक क्षमता को भी धीरे-धीरे खत्म कर रही है।

सुबह की ताज़गी यानी वह समय जब दिमाग नई संभावनाओं के लिए सबसे खुला होता है। लेकिन अगर आप बिस्तर से उठते ही फोन स्क्रॉल करने लगते हैं तो हो सकता है आप अपनी क्रिएटिविटी को अनजाने में दबा रहे हों। ये सिर्फ़ समय की बर्बादी नहीं, बल्कि आपकी रचनात्मकता पर भी सीधा हमला है। आइए जानते हैं कि सुबह सुबह फोन देखना आपकी क्रिएटिविटी को कैसे प्रभावित करता है।

मानव मस्तिष्क की ‘गोल्डन अवस्था’ होती है सुबह

नींद से जागने के तुरंत बाद हमारा मस्तिष्क अल्फा वेव्स की अवस्था में होता है, जो रचनात्मक सोच, गहन चिंतन और विचारों के स्वतंत्र प्रवाह के लिए सबसे उपयुक्त मानी जाती है। अमेरिका स्थित हार्वर्ड बिज़नेस रिव्यू की एक रिपोर्ट के अनुसार, सुबह उठते ही मोबाइल स्क्रीन देखने से यह अवस्था बाधित हो जाती है और मस्तिष्क रिएक्टिव मोड में चला जाता है, जिससे व्यक्ति सिर्फ़ प्रतिक्रिया देने लगता है और उसकी सोचने की क्षमता घटती जाती है।

डोपामिन का असंतुलन बनाता है ‘डिजिटल एडिक्ट’

सुबह सोशल मीडिया, ईमेल या मैसेज चेक करने से मस्तिष्क में डोपामिन नाम का न्यूरोकेमिकल बहुत ज्यादा मात्रा में रिलीज़ होता है। यह प्रक्रिया अस्थायी रूप से अच्छा महसूस कराती है, लेकिन इसके बार-बार दोहराए जाने पर मस्तिष्क में डोपामिन संतुलन बिगड़ जाता है जिससे व्यक्ति गहरी सोच या लंबे समय तक ध्यान केंद्रित करने में अक्षम हो जाता है। इसलिए जब आप सुबह सबसे पहले फोन उठाते हैं तो सोशल मीडिया, न्यूज़, या नोटिफिकेशन्स का तेज़ रफ़्तार डोपामाइन लूप आपके दिमाग को हाईजैक कर लेता है।

न्यूरोसाइंस रिसर्च के अनुसार, सुबह का समय दिमाग के लिए “डिफॉल्ट मोड नेटवर्क” (DMN) के सक्रिय होने का होता है, जो क्रिएटिव विचारों और प्रॉब्लम-सॉल्विंग के लिए ज़िम्मेदार है। लेकिन फोन स्क्रॉलिंग इस नेटवर्क को दबा देता है। जर्नल ऑफ न्यूरोसाइंस (2023) में प्रकाशित एक अध्ययन के मुताबिक, सुबह 30 मिनट तक स्क्रीन टाइम से डीएमएन की गतिविधि में 20% तक कमी आती है, जिससे नए आइडियाज़ और इनोवेटिव सोच कमज़ोर पड़ती है।

इन्फॉर्मेशन ओवरलोड से दब जाती है कल्पनाशक्ति

अमेरिकन न्यूरोसाइंस जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन में कहा गया है कि दिन की शुरुआत में ही सूचना की बाढ़ (news, reels, chats) मस्तिष्क को आवश्यकता से अधिक प्रोसेसिंग में उलझा देती है। इससे नए विचारों के लिए जगह नहीं बचती और रचनात्मकता दब जाती है।

मल्टीटास्किंग का भ्रम

सुबह फोन देखने से आप अनजाने में मल्टीटास्किंग मोड में चले जाते हैं। ईमेल चेक करना, व्हाट्सएप मैसेज का जवाब देना, या इंस्टाग्राम रील्स देखना..यह सब आपके दिमाग को एक साथ कई दिशाओं में खींचता है। साइकोलॉजी टुडे (2024) की एक रिपोर्ट बताती है कि मल्टीटास्किंग से दिमाग की फोकस करने की क्षमता 40% तक कम हो सकती है, जो क्रिएटिव विचारों के लिए ज़रूरी “डीप थिंकिंग” को रोकती है। सुबह का समय, जब आपका दिमाग तरोताज़ा होता है, क्रिएटिव प्रोजेक्ट्स के लिए बेस्ट होता है, लेकिन फोन इसे बिखरे हुए विचारों में बदल देता है।

स्ट्रेस हार्मोन्स का बढ़ना

सुबह फोन देखने से कोर्टिसोल (तनाव हार्मोन) का स्तर बढ़ता है, खासकर अगर आप नकारात्मक न्यूज़ या तुलनात्मक सोशल मीडिया पोस्ट देखते हैं। हार्वर्ड मेडिकल स्कूल (2024) की एक स्टडी के अनुसार, सुबह 15 मिनट तक सोशल मीडिया इस्तेमाल करने से कोर्टिसोल लेवल में 25% की वृद्धि हो सकती है। यह तनाव क्रिएटिविटी का सबसे बड़ा दुश्मन है, क्योंकि रचनात्मकता के लिए शांत और खुले दिमाग की ज़रूरत होती है।

इससे बचने के लिए क्या करें

  • डिजिटल डिटॉक्स की शुरुआत: सुबह का पहला घंटा फोन-फ्री रखें। इसकी बजाय जर्नलिंग, मेडिटेशन या हल्का व्यायाम करें। एक अध्ययन के अनुसार सुबह 10 मिनट के मॉर्निंग मेडिटेशन से क्रिएटिव प्रॉब्लम-सॉल्विंग स्किल्स 15% तक बेहतर होती हैं।
  • ग्रैटिट्यूड रिचुअल अपनाएं: सुबह 5 मिनट ये काम करेंगे तो दिनभर इसकी एनर्जी फ़ील करेंगे। आप ऐसी तीन चीज़ें लिखें जिनके लिए आप आभारी हैं। यह आपके दिमाग को पॉज़िटिव और क्रिएटिव मोड में लाता है।
  • फोन को बेडरूम से बाहर रखें: फोन को रात में अपने सोने की जगह न रखें। जागने के अलार्म के लिए पुराने ज़माने का क्लॉक का इस्तेमाल करें। इससे सुबह उठते ही फोन देखने की आदत टूटेगी।
  • क्रिएटिव रूटीन बनाएं: सुबह के समय कोई रचनात्मक काम शुरू करें जैसे स्केचिंग, लेखन, या नए प्रोजेक्ट की प्लानिंग। आप अपनी हॉबी को भी इस समय पूरा कर सकते हैं। साथ ही अपने परिवार के साथ कुछ अच्छा समय बिता सकते हैं।